पंजाब में कर्ज में डूबे किसानों द्वारा की जा रही आत्महत्या को रोकने के लिए पंजाब सरकार मास्टर प्लान बना रही है। पंजाब सरकार ने जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट को यह जानकारी दी। सरकार ने कहा कि वह इस समस्या को जड़ से ही ख़त्म करने में जुटी है और कानून में जरूरी संशोधन किया जा रहा है। इसके लिए सरकार ने हाई कोर्ट से कुछ और समय दिए जाने की मांग की ताकि वह इस दिशा में की जा रही कार्यवाही की हाई कोर्ट को पूरी जानकारी दे सके।Breaking: अभी-अभी पाकिस्तानी फायरिंग में बीएसएफ जवान हुआ शहीद
जस्टिस एके मित्तल एवं जस्टिस अमित रावल की खंडपीठ ने सरकार को समय देते हुए याचिका पर सुनवाई 30 अक्तूूबर तक स्थगित कर दी है। बता दें कि, मोमेंट अगेंस्ट स्टेट रेप्रेशन नामक संस्था ने एडवोकेट आरएस बैंस के जरिये हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर बताया है कि पंजाब में कर्ज में डूबे किसान आत्महत्या कर रहे हैं । बावजूद इसके राज्य सरकार द्वारा पिछले आठ वर्षों से इसका कोई सर्वे तक ही नहीं करवाया गया है।
इस कारण केंद्र सरकार से किसान और खेतिहर मजदूरों के आत्महत्या से संबंधित अनुदान में से महज एक प्रतिशत पंजाब को मिल पाया है। क्योंकि पंजाब के पास आत्महत्या कर चुके किसानों का कोई आंकड़ा ही नहीं है। सरकार ने पहले हाईकोर्ट को बताया था की पीड़ित परिवारों का सर्वे करवाया जा रहा है। फिर कहा गया की इनके पुनर्वास की नीति बनाई जा रही है। हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर पीड़ित परिवारों का सर्वे कराये जाने की मांग की गई है।
याचिका में बताया गया है कि राज्य सरकार ने इन किसानों के कल्याण के लिए कोई नीति तक नहीं बनाई है। यहाँ तक की कर्ज के बोझ तले दबे किसानों द्वारा की गई आत्महत्याओं पर उनके परिवारों को वर्ष 2001 में 2 लाख 50 हजार देने का जो प्रावधान था, उसमें भी कटौती करते हुए उसे वर्ष 2012 में दो लाख रुपये कर दिया गया है। बावजूद इसेक राज्य सरकार इन पीड़ित परिवारों को न तो उचित मुआवजा और न ही इनका पुनर्वास करवाने में सफल हुई है।
सर्वे के लिए जारी किए मात्र 30 लाख रुपये
सरकार ने पिछली जनगणना के आधार पर ही मुआवजा जारी कर दिया और पीड़ित परिवारों के सर्वे का काम अधूरा ही छोड़ दिया गया है। राज्य की तीनों यूनिवर्सिटी पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला, पीएयू लुधियाना और जीएनडीयू अमृतसर को सरकार ने इसका सर्वे करने को कहा था लेकिन इन तीनों ही यूनिवर्सिटी को सरकार ने इसके लिए महज 30 लाख रुपये जारी किये हैं। जो कि इतने व्यापक सर्वे के लिए बेहद ही कम हैं। हाईकोर्ट से मांग की गई है की वह सरकार को निर्देश दे कि वह तीनों यूनिवर्सिटी से राज्य में किसानों और खेतिहर मजदूरों द्वारा की गयी आत्महत्याओं का सर्वे करवाए और जरुरत पड़े तो इसके लिए किसी निष्पक्ष एजेंसी ले।