अटल बिहारी वाजपेयी और डॉ. अब्दुल कलाम, एक धरोहर की दो धूरियां थे

अटल बिहारी वाजपेयी और डॉ. अब्दुल कलाम, एक धरोहर की दो धूरियां थे

अटल बिहारी वाजपेयी और अब्दुल कलाम ये दोनों ही देश और दुनिया में कई लोगों के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं। यह दोनों ही ऐसी प्रतिभा के धनी थे कि लोग इन्हें सदियों याद रखेंगे। एक वाजपेयी थे, जिन्हें भारतीय राजनीति का पुरोधा माना जाता है और एक ‘अग्निपंख’ लगाकर भारत के मिसाइल मैन कहलाए। अटल बिहारी वाजपेयी और डॉ. अब्दुल कलाम, एक धरोहर की दो धूरियां थे

इन दोनों हस्तियों का जीवन भी काफी लंबे समय तक एक साथ, एक पटरी पर चला। यही कारण है कि आज पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपयी के निधन की दुखद खबर के बीच हम इन दोनों की बात कर रहे हैं। इन दोनों हस्तियों का जीवन एक-दूसरे से किस तरह जुड़ा हुआ था, यह समझने के लिए आगे पढ़ें…

पोखरण विस्फोट और अटल-कलाम
भारत ने इतिहास में दूसरी बार परमाणु परीक्षण के लिए पोखरण को चुना। 11 मई से 13 मई 1998 के बीच गुपचुप हुए इस न्यूक्लियर टेस्ट के समय अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री थे। जिस पोखरण विस्फोट 2 से भारत ने एक बार फिर अपने परमाणु शक्ति समपन्न होने की बात को फिर से मुहर लगाई उसके केंद्र में डॉ. अब्दुल कलाम भी थे। कलाम ने इसमें मुख्य संगठनात्मक, तकनीकी और राजनीतिक भूमिका निभायी। 

प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति
साल 1999 में हुए आम चुनावों में भाजपा के नेतृत्व में एनडीए एक बार फिर सत्ता में लौटी। एक बार फिर भाजपा के करिश्माई नेता अटल बिहारी वाजपेयी देश के राष्ट्रपति बने। 1996 में 13 दिन, और 1998-99 में 13 महीने की सरकार चलाने के बाज इस बार वाजपेयी ने एनडीए के नेता के रूप में अपना कार्यकाल पूरा किया। वे साल 2004 तक देश के प्रधानमंत्री रहे। इस बीच साल 2002 में देश को नया राष्ट्रपति चुनना था। वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए ने मिसाइल मैन अब्दुल कलाम को अपना उम्मीदवार बनाया। विपक्ष ने भी कलाम को राष्ट्रपति बनाने में सरकार का साथ दिया। इस तरह से एक बार फिर वाजपेयी और कलाम एक दूसरे के सहयोगी के रूप में दिखे।

हालांकि इसके बाद साल 2004 में हुए आम चुनावों में एनडीए सत्ता में नहीं लौटी। लेकिन राष्ट्रपति की कुर्सी पर अब्दुल कलाम बैठे थे और वो हमेशा की तरह जनता के प्रिय बने रहे। इसके बाद एक अवसर ऐसा भी आता है जब डॉ. कलाम को राष्ट्रपति के रूप में दूसरा कार्यकाल देने की बात आती है। लेकिन इस बार कलाम का साथ देने के लिए पूर्व में उनके सहयोगी रह चुके अटल बिहारी वाजपेयी सत्ता में नहीं थे। इस तरह इन दोनों करिश्माई नेताओं का जिक्र साथ-साथ आना सार्थक होता है और जब भी यह दोनों साथ आते हैं, तब-तब एक नया इतिहास भी रचते हैं।

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