हाड़ कंपाती ठंड, ने तपाती गर्मी नहीं जवानों को अफसरों की अफसरी तोड़ती है

ठेकेदारों के भरोसे का खाना-पानी भले ही गुणवत्ता पूर्ण न हो लेकिन सेना और अर्ध सैनिक बलों का जवान हार नहीं मानता। सेना हो या अर्ध सैनिक बल, जवान को सबसे ज्यादा अफसरों की अफसरी तोड़ती है। सेना मुख्यालय से लेकर सीजीओ काम्पलेक्स में तैनात जवान मुंह नहीं खोलना चाहते, लेकिन जैसे ही अफसरों की अफसरी पर तंज और आपूर्तिकर्ता ठेकेदारों की रईसी सुनते हैं, मुस्कराना नहीं भूलते। इसी रूप में बृहस्पतिवार को भी उनकी प्रतिक्रिया मिली। यहां तक कि शास्त्री भवन में सुरक्षा के तैनात सीआईएसएफ के जवानों का कहना है कि वह सुरक्षा के मानक के हिसाब से केवल आदेश का पालन करते हैं, मुंह नहीं खोलते।
 
ठेकेदारों के भरोसे का खाना-पानी भले ही गुणवत्ता पूर्ण न हो लेकिन सेना और अर्ध सैनिक बलों का जवान हार नहीं मानता। सेना हो या अर्ध सैनिक बल, जवान को सबसे ज्यादा अफसरों की अफसरी तोड़ती है। सेना मुख्यालय से लेकर सीजीओ काम्पलेक्स में तैनात जवान मुंह नहीं खोलना चाहते, लेकिन जैसे ही अफसरों की अफसरी पर तंज और आपूर्तिकर्ता ठेकेदारों की रईसी सुनते हैं, मुस्कराना नहीं भूलते। इसी रूप में बृहस्पतिवार को भी उनकी प्रतिक्रिया मिली। यहां तक कि शास्त्री भवन में सुरक्षा के तैनात सीआईएसएफ के जवानों का कहना है कि वह सुरक्षा के मानक के हिसाब से केवल आदेश का पालन करते हैं, मुंह नहीं खोलते। Sponsored Links You May Like Watch Kapoor and Sons - Start Your 30 Day Free Trial Amazon Prime Video by Taboola सीजीओ काम्पलेक्स में तैनात अर्ध सैनिक बल के एक जवान ने माना कि दिल्ली में तो मेस का खाना मिल जाता है। क्वालिटी घटिया-बढ़िया होती रहती है, लेकिन सीमा पर दूर-दराज के इलाके में यह शिकायत है। सेना और सीमा सुरक्षा बल के सूत्रों ने भी इस कमी को स्वीकार किया और माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री कार्यालय के संज्ञान में लेने के बाद जल्द ही खाने की गुणवत्ता ठीक करने संबंधी दिशा-निर्देशों को अमल में लाया जाएगा। जवान नहीं करते परवाह सियाचिन, बेस कैंप (थ्वॉयस) का तापमान जानकर ही शरीर में रोंगटे खड़े हो जाते हैं। सात साल पहले जाना हुआ था और सुबह उठने पर देखा कि बैस कैंप के पास ठहराए गए कमरे के बाथरूम का पानी टोटी से टपक नहीं रहा है। टोटी छूने पर बर्फ छूने सा एहसास हो रहा है और पानी जम गया है। पता चला कि यह यहां के लिए आम है और इस हालात में जवान सीना ताने खड़े रहते हैं। बैस कैंप से ऊपर की हालत तो और कठिन हैं। सबसे ऊंचे दुनिया के युद्धस्थल पर जवान टोलियां बनाकर एक दूसरे को रस्सी से पकड़े साथ चलते हैं। पता नहीं कहां पैर पड़े, बर्फ में धंस जाएं। इतना ही नहीं दूर-दूर तक परिंदा नहीं दिखता, लेकिन सेना का जवान हार नहीं मानता। जोशीमठ के आगे आईटीबीपी का जवान मिलता है। लेह-लद्दाख में चीन की सीमा के निकट आईटीबीपी मिलती है। जम्मू-कश्मीर की अंतरराष्ट्रीय सीमा बीएसएफ के हवाले हैं। असम राइफल चुनौती पूर्ण भूमिका निभा रही है। सिक्किम के पास सीमा पर (नाथुला पास) जाना हुआ, चीरती बर्फीली हवा जान निकाल रही थी लेकिन सीमा के प्रहरी सजग थे। ये जवान हैं जो दुश्मन के सामने खड़े रहते हैं। हार नहीं मानते। 55-60 डिग्री का तापमान पारे के 40 डिग्री को छूते ही दिल्ली की रायसीना पहाड़ी लाल हो जाती है। गर्मी के मारे बुरा हाल, लेकिन जरा फर्ज कीजिए कि एक टैंक के भीतर पोखरण में कितना तापमान होता है। वह भी तब लाइव फायरिंग हो। लाठी-महाजन रेंज का रेगिस्तान आसानी से पारे 55-60 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचा देता है। लेकिन जवान चाहे सेना के हो या अर्धसैनिक बल के गश्त नियम के हिसाब से करते हैं। जवानों को काटना पड़ता है अंग काटना पड़ता है अंग सियाचिन जैसे तैनाती स्थल पर तापमान शून्य से 40-45 डिग्री नीचे तक चला जाता है। जवानों को सलाह दी जाती है कि कोई भी अंग खुली हवा के संपर्क में न आए। मेटल तो छूएं ही नहीं। सोचिए जरा क्यों? छूए नहीं कि बर्फ से वह अंग झूलता जाता है। धमनियां, तंत्रिका प्रणाली सब। फिर एक ही रास्ता है कि वह अंग(आईस बर्न) शरीर से अलग कर दिया जाए। लेकिन जवान नहीं हारता। लेकिन टूट जाता है सेना के जवानों के तनाव पर डीआरडीओ के वैज्ञानिक मानस मंडल ने काफी किया है। लाइफ साइंसेज विभाग के प्रमुख रहे डा. डब्ल्यू सेल्वामूर्ति के समय में काफी समाधान के प्रयास हुए थे। नतीजे में निकलकर आया था कि सेना के जवान दुश्मन की चुनौतियों से नहीं हारते, लेकिन अफसरों की अफसरी से टूट जाते हैं। खाने की घटिया गुणवत्ता उन्हें आक्त्रसेश से भर देती है। अफसरों के अंग्रेजी दां रवैय्ये, लाट साहबी से जवान झल्ला उठता है। परिवार-समाज (बेटे, बेटी, शादी ब्याह) की समस्याओं से जूझ रहा जवान जब छुट्टी नहीं पाता या छुट्टी से लौटता है तो टूट जाता है। ऐसे समय में वह या तो खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर लेता है या फिर साथियों, अफसरों पर निशाना साध देता है। इस रिपोर्ट पर रक्षा मंत्रालय, सेना मुख्यालय ने ध्यान देकर मिनिमम आपरेटिंग प्रोसीजर(एसओपी) को बदल दिया था। अफसर-जवान के तालमेल, संवाद को बढ़ावा देकर योगा आदि को शामिल किया था। सेना मुख्यालय के सूत्र बताते हैं कि इसमें भी समय के साथ काफी बदलाव आ गया है। कमियां हैं और समीक्षा की जरूरत है। खाने में रही है शिकायत सरकार बाजार से माचिस की तीली भी नहीं खरीदती। टेंडर जारी होता है, ठेकेदार इसकी आपूर्ति करता है। ऐसे में मरी मुर्गियों की आपूर्ति की रही है शिकायत। सेना में भी मीट घोटाला, राशन घोटाला हुआ है। अर्ध सैनिक बलों में भी खाने की गुणवत्ता पर सवाल उठे हैं। ठेकेदार की सब्जी आपूर्ति में गुणवत्ता की कमी, खराब राशन की आपूर्ति, घटिया मीट, किरासन की आपूर्ति में धांधली को लेकर समय-समय पर शिकायतें रही हैं। जब सवाल उठे तब कुछ समाधान हुए। कमियों को सुधारने में जुटी एजेंसियां बीएसएफ के अधिकारी भी मान रहे हैं खाने की आपूर्ति में कुछ कमियां हैं। इसे दूर कर लिया जाएगा। फिलहाल गृहमंत्रालय के अफसर प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा मांगी गई रिपोर्ट में व्यस्त है। बीएसएफ सफाई देने में व्यस्त है। बीएसएफ के महानिदेशक केके शर्मा बृहस्पतिवार को भी नार्थ ब्लाक में थे। सीजीओ काम्पलेक्स में तेज बहादुर के वाइरल हुए वीडियो ने तापमान चढ़ा रखा है। इसकी आंच न केवल बीएसएफ के मुख्यालय तक है बल्कि सीआईएसएफ, सीआरपीएफ, आईटीबीपी, आर्मी समेत सभी एजेंसियां अपनी कमियों को मैनेज करने में जुट गई हैं।
 
 
सीजीओ काम्पलेक्स में तैनात अर्ध सैनिक बल के एक जवान ने माना कि दिल्ली में तो मेस का खाना मिल जाता है। क्वालिटी घटिया-बढ़िया होती रहती है, लेकिन सीमा पर दूर-दराज के इलाके में यह शिकायत है। सेना और सीमा सुरक्षा बल के सूत्रों ने भी इस कमी को स्वीकार किया और माना जा रहा है कि  प्रधानमंत्री कार्यालय के संज्ञान में लेने के बाद जल्द ही खाने की गुणवत्ता ठीक करने संबंधी दिशा-निर्देशों को अमल में लाया जाएगा।जवान नहीं करते परवाह
सियाचिन, बेस कैंप (थ्वॉयस) का तापमान जानकर ही शरीर में रोंगटे खड़े हो जाते हैं। सात साल पहले जाना हुआ था और सुबह उठने पर देखा कि बैस कैंप के पास ठहराए गए कमरे के बाथरूम का पानी टोटी से टपक नहीं रहा है। टोटी छूने पर बर्फ छूने सा एहसास हो रहा है और पानी जम गया है। पता चला कि यह यहां के लिए आम है और इस हालात में जवान सीना ताने खड़े रहते हैं। बैस कैंप से ऊपर की हालत तो और कठिन हैं। सबसे ऊंचे दुनिया के युद्धस्थल पर जवान टोलियां बनाकर एक दूसरे को रस्सी से पकड़े साथ चलते हैं। पता नहीं कहां पैर पड़े, बर्फ में धंस जाएं। इतना ही नहीं दूर-दूर तक परिंदा नहीं दिखता, लेकिन सेना का जवान हार नहीं मानता।

जोशीमठ के आगे आईटीबीपी का जवान मिलता है। लेह-लद्दाख में चीन की सीमा के निकट आईटीबीपी मिलती है। जम्मू-कश्मीर की अंतरराष्ट्रीय  सीमा बीएसएफ के हवाले हैं। असम राइफल चुनौती पूर्ण भूमिका निभा रही है। सिक्किम के पास सीमा पर (नाथुला पास) जाना हुआ, चीरती बर्फीली हवा जान निकाल रही थी लेकिन सीमा के प्रहरी सजग थे। ये जवान हैं जो दुश्मन के सामने खड़े रहते हैं। हार नहीं मानते।

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55-60 डिग्री का तापमान
पारे के 40 डिग्री को छूते ही दिल्ली की रायसीना पहाड़ी लाल हो जाती है। गर्मी के मारे बुरा हाल, लेकिन जरा फर्ज कीजिए कि एक टैंक के भीतर पोखरण में कितना तापमान होता है। वह भी तब लाइव फायरिंग हो। लाठी-महाजन रेंज का रेगिस्तान आसानी से पारे 55-60 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचा देता है। लेकिन जवान चाहे सेना के हो या अर्धसैनिक बल के गश्त नियम के हिसाब से करते हैं।

जवानों को काटना पड़ता है अंग

काटना पड़ता है अंग
सियाचिन जैसे तैनाती स्थल पर तापमान शून्य से 40-45 डिग्री नीचे तक चला जाता है। जवानों को सलाह दी जाती है कि कोई भी अंग खुली हवा के संपर्क में न आए। मेटल तो छूएं ही नहीं। सोचिए जरा क्यों? छूए नहीं कि बर्फ से वह अंग झूलता जाता है। धमनियां, तंत्रिका प्रणाली सब। फिर एक ही रास्ता है कि वह अंग(आईस बर्न) शरीर से अलग कर दिया जाए।  लेकिन जवान नहीं हारता।लेकिन टूट जाता है
सेना के जवानों के तनाव पर डीआरडीओ के वैज्ञानिक मानस मंडल ने काफी किया है। लाइफ साइंसेज विभाग के प्रमुख रहे डा. डब्ल्यू सेल्वामूर्ति के समय में काफी समाधान के प्रयास हुए थे। नतीजे में निकलकर आया था कि सेना के जवान दुश्मन की चुनौतियों से नहीं हारते, लेकिन अफसरों की अफसरी से टूट जाते हैं। खाने की घटिया गुणवत्ता उन्हें आक्त्रसेश से भर देती है। अफसरों के अंग्रेजी दां रवैय्ये, लाट साहबी से जवान झल्ला उठता है। परिवार-समाज (बेटे, बेटी, शादी ब्याह) की समस्याओं से जूझ रहा जवान जब छुट्टी नहीं पाता या छुट्टी से लौटता है तो टूट जाता है। ऐसे समय में वह या तो खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर लेता है या फिर साथियों, अफसरों पर निशाना साध देता है।इस रिपोर्ट पर रक्षा मंत्रालय, सेना मुख्यालय ने ध्यान देकर मिनिमम आपरेटिंग प्रोसीजर(एसओपी) को बदल दिया था। अफसर-जवान के तालमेल, संवाद को बढ़ावा देकर योगा आदि को शामिल किया था। सेना मुख्यालय के सूत्र बताते हैं कि इसमें भी समय के साथ काफी बदलाव आ गया है। कमियां हैं और समीक्षा की जरूरत है।

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खाने में रही है शिकायत
सरकार बाजार से माचिस की तीली भी नहीं खरीदती। टेंडर जारी होता है, ठेकेदार इसकी आपूर्ति करता है। ऐसे में मरी मुर्गियों की आपूर्ति की रही है शिकायत। सेना में भी मीट घोटाला, राशन घोटाला हुआ है। अर्ध सैनिक बलों में भी खाने की गुणवत्ता पर सवाल उठे हैं। ठेकेदार की सब्जी आपूर्ति में गुणवत्ता की कमी, खराब राशन की आपूर्ति, घटिया मीट, किरासन की आपूर्ति में धांधली को लेकर समय-समय पर शिकायतें रही हैं। जब सवाल उठे तब कुछ समाधान हुए।कमियों को सुधारने में जुटी एजेंसियां
बीएसएफ के अधिकारी भी मान रहे हैं खाने की आपूर्ति में कुछ कमियां हैं। इसे दूर कर लिया जाएगा। फिलहाल गृहमंत्रालय के अफसर प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा मांगी गई रिपोर्ट में व्यस्त है। बीएसएफ सफाई देने में व्यस्त है। बीएसएफ के महानिदेशक केके शर्मा बृहस्पतिवार को भी नार्थ ब्लाक में थे। सीजीओ काम्पलेक्स में तेज बहादुर के वाइरल हुए वीडियो ने तापमान चढ़ा रखा है। इसकी आंच न केवल बीएसएफ के मुख्यालय तक है बल्कि सीआईएसएफ, सीआरपीएफ, आईटीबीपी, आर्मी समेत सभी एजेंसियां अपनी कमियों को मैनेज करने में जुट गई हैं।

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