अमेरिका से: क्या सीरिया के लिए लड़ेगा भारत?

सीरिया पर हो रहे भीषण हमले और उन हमले में मारे जा रहे निर्दोष लोगों की दुनियाभर में चर्चा है, सभी देश सीरिया में शांति कायम करने के लिए अपनी-अपनी राय रख रहे हैं, वहीं कुछ देश सीरिया के खिलाफ भी हैं. लेकिन इस मुद्दे पर भारत अब तक चुप्पी बनाए रखा है, भारत की ओर से अभी तक सीरिया के लिए कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है कि वो सीरिया की जंग में उसके साथ खड़ा होगा या उसके खिलाफ.

 सीरिया पर हमला करने वाले अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस  जैसे देश इस हमले के समर्थन में हैं तो रूस, चीन, ईरान जैसे देशों ने इस हमले का विरोध किया है. वहीं भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा है कि भारत इस मामले पर बारीकी से नजर बनाए हुए है. उन्होंने कहा, अगर सीरिया में रसायनिक हथियारों का इस्तेमाल हुआ है तो यह निंदनीय है.  आपको बता दें कि भारत के इस विवाद से दूर रहने की अलग वजहें हैं. भारत इस समय दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक देश है. इस वजह से उसकी अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, इस्राइल के साथ ही रूस से भी दोस्ती है. यही नहीं, अब वह खुद को भी एक हथियार निर्यातक देश के तौर पर देखता है और दक्षिण एशिया में छोटे देशों को उसने हथियार सप्लाई शुरू भी कर दी है.

गुट निरपेक्ष देशों के एकजुट होने के समय भारत का करीबी देश रूस था. इस समय भारत अमेरिका के ज्यादा करीब है. भारत-अमेरिका के बीच रिश्तों की गर्माहट 1990 के दशक यानी उदारीकरण के दौर के बाद से दर्ज की जाती है. ऐसे में इस समय भारत अमेरिका को नाराज करने का खतरा मोल नहीं ले सकता है. अगर इन देशों में तनाव बढ़ता है तो भारत की स्थिति ऐसी भी नहीं है कि वह बीचबचाव करते हुए शांति के दूत की भूमिका निभाए. हां, जंग से दूसरे देशों की तरह उसे भी अंतरराष्ट्रीय बाजार को होने वाले नुकसान के दुष्परिणाम उठाने पड़ सकते हैं. ऐसे में भारत संयुक्त राष्ट्र के जरिए इस विवाद का हल निकालने का पक्षधर है.

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