अश्वगंधा को अंग्रेजी में भारतीय जिनसेंग (indian ginseng) कहा जाता है और इसको घोड़े की गन्द के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इसके पेड़ कि जड़ में से घोड़ो के पसीने जैसी गन्द आती है. अश्वगंधा को एक टॉनिक कहा जाता है, क्योंकि यह शारीरिक क्षमता और आरोग्य वृद्धि करने में सहायक होता है. भारत में औषधि के रूप में इसका उपयोग प्राचीन समय से किया जा रहा है . अश्वगंधा कद बढ़ाने के लिए भी किया जाता है. अश्वगंधा की पैदावार की प्रमुख बाधाओं में उसके बीजों की निम्न जीवन क्षमता और कम प्रतिशत में अंकुरण के साथ-साथ अंकुरित पौधों का कम समय तक जीवित रह पाना शामिल है.इसके जीवन को बढ़ाने के लिए किये गए रिसर्च में कुछ तथ्य पाया गया है. एक ताजा अध्ययन में पाया है कि जैविक तरीके से उत्पादन किया जाए तो अश्वगंधा के पौधे की जीवन दर और उसके औषधीय गुणों में बढ़ोत्तरी हो सकती है. सामान्य परिस्थितियों में उगाए गए अश्वगंधा की अपेक्षा वर्मी-कम्पोस्ट से उपचारित अश्वगंधा की पत्तियों में विथेफैरिन-ए, विथेनोलाइड-ए और विथेनोन नामक तीन विथेनोलाइड्स जैव-रसायनों की मात्रा लगभग 50 से 80 प्रतिशत अधिक पायी गई है. ये जैव-रसायन अश्वगंधा के गुणों में बढ़ोत्तरी के लिए जिम्मेदार माने जाते हैं.

अश्वगंधा की पैदावार और जीवन को बढ़ाने के लिए एक नयी खोज

अश्वगंधा को अंग्रेजी में भारतीय जिनसेंग (indian ginseng) कहा जाता है और इसको घोड़े की गन्द के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इसके पेड़ कि जड़ में से घोड़ो के पसीने जैसी गन्द आती है. अश्वगंधा को एक टॉनिक कहा जाता है, क्योंकि यह शारीरिक क्षमता और आरोग्य वृद्धि करने में सहायक होता है. भारत में औषधि के रूप में इसका उपयोग प्राचीन समय से किया जा रहा है . अश्वगंधा कद बढ़ाने के लिए भी किया जाता है.अश्वगंधा को अंग्रेजी में भारतीय जिनसेंग (indian ginseng) कहा जाता है और इसको घोड़े की गन्द के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इसके पेड़ कि जड़ में से घोड़ो के पसीने जैसी गन्द आती है. अश्वगंधा को एक टॉनिक कहा जाता है, क्योंकि यह शारीरिक क्षमता और आरोग्य वृद्धि करने में सहायक होता है. भारत में औषधि के रूप में इसका उपयोग प्राचीन समय से किया जा रहा है . अश्वगंधा कद बढ़ाने के लिए भी किया जाता है.  अश्वगंधा की पैदावार की प्रमुख बाधाओं में उसके बीजों की निम्न जीवन क्षमता और कम प्रतिशत में अंकुरण के साथ-साथ अंकुरित पौधों का कम समय तक जीवित रह पाना शामिल है.इसके जीवन को बढ़ाने के लिए किये गए रिसर्च में कुछ तथ्य पाया गया है.  एक ताजा अध्ययन में पाया है कि जैविक तरीके से उत्पादन किया जाए तो अश्वगंधा के पौधे की जीवन दर और उसके औषधीय गुणों में बढ़ोत्तरी हो सकती है. सामान्य परिस्थितियों में उगाए गए अश्वगंधा की अपेक्षा वर्मी-कम्पोस्ट से उपचारित अश्वगंधा की पत्तियों में विथेफैरिन-ए, विथेनोलाइड-ए और विथेनोन नामक तीन विथेनोलाइड्स जैव-रसायनों की मात्रा लगभग 50 से 80 प्रतिशत अधिक पायी गई है. ये जैव-रसायन अश्वगंधा के गुणों में बढ़ोत्तरी के लिए जिम्मेदार माने जाते हैं.

अश्वगंधा की पैदावार की प्रमुख बाधाओं में उसके बीजों की निम्न जीवन क्षमता और कम प्रतिशत में अंकुरण के साथ-साथ अंकुरित पौधों का कम समय तक जीवित रह पाना शामिल है.इसके जीवन को बढ़ाने के लिए किये गए रिसर्च में कुछ तथ्य पाया गया है.

एक ताजा अध्ययन में पाया है कि जैविक तरीके से उत्पादन किया जाए तो अश्वगंधा के पौधे की जीवन दर और उसके औषधीय गुणों में बढ़ोत्तरी हो सकती है. सामान्य परिस्थितियों में उगाए गए अश्वगंधा की अपेक्षा वर्मी-कम्पोस्ट से उपचारित अश्वगंधा की पत्तियों में विथेफैरिन-ए, विथेनोलाइड-ए और विथेनोन नामक तीन विथेनोलाइड्स जैव-रसायनों की मात्रा लगभग 50 से 80 प्रतिशत अधिक पायी गई है. ये जैव-रसायन अश्वगंधा के गुणों में बढ़ोत्तरी के लिए जिम्मेदार माने जाते हैं.

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