इंटरनेशनल टाइगर्स डेः बाघों के लिए ये चिड़ियाघर सबसे बेहतर ब्रीडिंग सेंटर में से एक...

इंटरनेशनल टाइगर्स डेः बाघों के लिए ये चिड़ियाघर सबसे बेहतर ब्रीडिंग सेंटर में से है एक…

इंटरनेशनल टाइगर्स डे पर आज यूपी के लिए बड़ी गर्व की बात है। बाघों के जीवन और उनके प्रजनन के लिए प्रदेश का कानपुर जू प्रमुख केंद्र बन गया है। तीन महीने पहले बाघिन त्रुशा चार शावकों को जन्म दे चुकी है। अब यहां पर 11 बाघ-बाघिन हैं। जहां भारत समेत दुनिया भर में वन्य जीव प्रेमी बाघों की घटती संख्या से चिंतित हैं, वहीं कानपुर जू के ब्रीडिंग सेंटर से लगातार सकारात्मक खबरें एनिमल लवर्स को खुश कर रही हैं। इंटरनेशनल टाइगर्स डेः बाघों के लिए ये चिड़ियाघर सबसे बेहतर ब्रीडिंग सेंटर में से है एक...आज तक उजागर नहीं हो सका चंदेलकालीन, जानिए ‘शिव मंदिर का रहस्य’…

कानपुर जू में बाघिन अपने बच्चों के साथ

प्रदेश के अन्य चिड़ियाघरों और इटावा की लायन सफारी से ज्यादा अच्छा प्राकृतिक आवरण होने से यहां जानवरों के लिए अनुकूल माहौल है। घना जंगल और बड़ा क्षेत्रफल जीव-जंतुओं के पालन-पोषण के लिए बेहतर जगह है। चिड़ियाघर में प्रशांत, त्रुशा, अभय, बादल, बरखा और सफेद बाघ लव और बाघिन सावित्री समेत प्रशांत व त्रुशा के चार शावक भी हैं। इस वर्ष की शुरुआत में बाघ बादशाह और बाघिन चित्रा रायपुर चिड़ियाघर भेजे गए थे। इसके बदले में जू में शेर-शेरनी का जोड़ा आया है। 2016 में हुए सर्वे के मुताबिक दुनिया में कुल बाघों की संख्या के 70 फीसदी बाघ भारत में पाए जाते हैं। इस समय देश में 2226 बाघ-बाघिन हैं। करीब दस साल पहले भारत में यह संख्या 1411 थी। भारत बाघों को बचाने की मुहिम में सबसे तेजी से कामयाब होने वाला देश है।
आज एचएएल लेगा तीन जानवरों का गोद

हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) शनिवार को एक साल के लिए तीन जानवरों को गोद लेगा। इनके खाने पीने और दवा-इलाज का खर्च एचएएल अपने फंड से देगा। खर्च की राशि साढ़े छह से सात लाख रुपये शनिवार को जू में चिड़ियाघर निदेशक को सौंप दी जाएगी। एचएएल प्रबंधन टाइगर प्रशांत, गैंडा मानू और गिद्ध को गोद लेगा। यह तीनों प्रजातियां संरक्षित हैं। इनको बचाने के लिए दुनिया के तमाम देश कोशिशें कर रहे हैं। जू निदेशक दीपक कुमार ने बताया कि एचएएल प्रबंधन शनिवार को तीनों जानवरों को एक साल के खर्च की राशि का चेक देगा।
इंटरनेशनल टाइगर्स डेः बाघों के लिए ये चिड़ियाघर सबसे बेहतर ब्रीडिंग सेंटर में से है एक...इसलिए मनाया जाता है बाघ दिवस

अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस हर साल 29 जुलाई को मनाया जाता है। यह पिछले सात सालों से मनाया जा रहा है। सेंट पीटर्सबर्ग में टाइगर समिट (बाघ सम्मेलन) में 29 जुलाई 2010 को अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस मनाने का फैसला लिया गया था। इसका उद्देश्य तेजी से घट रही बाघों की संख्या के प्रति लोगों को जागरूक करना है। इससे लोग बाघों का शिकार न करें बल्कि उनको जिंदगी देने के लिए पहल करें। इस कांफ्रेंस में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन और वर्ल्ड बैंक  के मुखिया रॉबर्ट जोएलिक की पहल से हुई थी। दुनिया भर में बाघों की संख्या 2022 तक दोगुनी करने के मकसद से इसकी शुुरुआत की गई थी। 
बाघ की नौ प्रजातियों में से तीन विलुप्त 
बाघ की नौ प्रजातियों में से तीन अब विलुप्त हो चुकी हैं। भारत में बाघों की घटती जनसंख्या देख अप्रैल 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर; बाघ परियोजना शुरू की गई थी। अब तक इस परियोजना के अधीन बाघ के 27 आरक्षित क्षेत्र हैं। बाघ मांसाहारी स्तनधारी पशु है। यह अपनी प्रजाति में सबसे बड़ा और ताकतवर पशु है। यह तिब्बत, श्रीलंका और अंडमान निकोबार द्वीप समूह को छोड़कर एशिया के अन्य सभी भागों में पाया जाता है। शरीर का रंग लाल और पीला का मिश्रण है। इस पर काले रंग की पट्टी पाई जाती हैं। बाघ 13 फीट लंबा और 300 किलो तक वजनी हो सकता है। बाघ का वैज्ञानिक नाम पेंथेरा टिग्रिस है। यह भारत का राष्ट्रीय पशु है। बाघ शब्द संस्कृत के व्याघ्र का तद्भव रूप है। बाघ की सुनने, सूंघने और देखने की क्षमता बहुत तीव्र होती है। बाघ अधिकतर अकेले ही रहता है। हर बाघ का अपना एक निश्चित क्षेत्र होता है। केवल प्रजननकाल में नर-मादा इकट्ठा होते हैं। बाघ के बच्चे शिकार पकड़ने की कला अपनी मां से सीखते हैं। इनकी आयु लगभग 19 वर्ष होती है। 
चीन से भारत आया बाघ
बाघ के पूर्वजों के चीन में रहने के निशान मिले हैं। हाल ही में मिले बाघ की एक विलुप्त उप प्रजाति के डीएनए जांच से पता चला है कि बाघ के पूर्वज मध्य चीन से भारत आए थे। वे जिस रास्ते से भारत आए थे, कई शताब्दियों बाद इसी रास्ते को रेशम मार्ग (सिल्क रूट) के नाम से जाना गया। बाघ चीन के संकरे गांसु गलियारे से गुजरकर भारत पहुंचे। इसके हजारों साल बाद यही मार्ग व्यापारिक सिल्क रूट के नाम से विख्यात हुआ। 1970 में विलुप्त हो जाने वाले मध्य एशिया के कैस्पियन बाघ व रूस के सुदूर पूर्व में मिलने वाले साइबेरियाई या एमुर बाघ एक जैसे हैं। खोज से पता चलता है कि किस तरह बाघ मध्य एशिया और रूस पहुंचे। 
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