अब राज्यसभा एवं विधानपरिषदों के चुनाव में मतपत्रों में नाेटा यानी ‘नन ऑफ द एबव’ का विकल्प नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद केंद्रीय चुनाव आयोग ने इससे जुड़े निर्देश राज्य चुनाव आयोग को दे दिए हैं। आयोग ने बैलेट पेपर से नोटा का विकल्प हटाने को कहा है। दरअसल, 21 अगस्त, 2018 को सुप्रीम कोर्ट के एक अहम फैसले के बाद आयोग ने यह फैसला लिया है। आइए जानते हैं कि क्या है नोटा। भारत की चुनाव प्रक्रिया में कब और कैसे शामिल हुआ नोटा। क्या है उसका इतिहास। कितने देशों में लागू है नोटा। इसके साथ नोटा पर अब तक सुप्रीम कोर्ट का रूख।
शीर्ष अदालत की टिप्पणी
दरअलस, 21 अगस्त 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि नोटा दल-बदल (डिफेक्शन) को बढ़ावा देगा और इससे भ्रष्टाचार के लिए दरवाजे खुलेंगे। सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि नोटा को सिर्फ प्रत्यक्ष चुनाव में ही यानी लोकसभा और राज्यों के विधानसभा चुनावों में ही लागू किया जाना चाहिए। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा है अप्रत्यक्ष चुनाव जहां औसत प्रतिनिधत्वि की बात हो वहां लागू नहीं होगा। इसके साथ ही राज्यसभा चुनाव में नोटा लागू करने से एक मत के औसत मुल्यांकन की धारणा नष्ट होगी। अदालत ने कहा कि नोटा पहली नजर में लुभावना लग सकता है, लेकिन गंभीर जांच करने पर ये आधारहीन दिखता है। क्यों कि इससे ऐसे चुनाव में मतदाता की भूमिका को नजरअंदाज कर दिया गया है। इससे लोकतांत्रिक मूल्यों का पतन होता है। इसके साथ ही नोटा के प्रयोग से अप्रत्यक्ष चुनाव में समाहित चुनावी निष्पक्षता खत्म होती है। वह भी तब भी जब मतदाता के मूल्य हो और वह मूल्य ट्रांसफरेबल हो। ऐसे में नोटा एक बाधा है।