निर्जला एकादशी की पौराणिक कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार महाभारत के संदर्भ में निर्जला एकादशी की कथा मिलती है। कथानुसार सभी पांडवों को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्ति के लिए महर्षि वेदव्यास ने एकादशी व्रत का संकल्प करवाया। अब माता कुंती और द्रौपदी सहित सभी एकादशी का व्रत रखते लेकिन भीम को मुश्किल थी, जो कि गदा चलाने और भोजन करने के मामले में काफी प्रसिद्ध थे। उन्हें भूख बहुत लगती थी। उनके लिये महीने में दो दिन उपवास करना बहुत कठिन था। जब पूरे परिवार का उन पर व्रत के लिये दबाव पड़ने लगा तो वे इसकी युक्ति ढूंढने लगे कि उन्हें भूखा भी न रहना पड़े और उपवास का पुण्य भी मिल जाए।

अपने उदर पर आई इस विपत्ति का समाधान भी उन्होंने महर्षि वेदव्यास से ही जाना। भीम पूछने लगे हे पितामह मेरे परिवार के सभी सदस्य एकादशी का उपवास रखते हैं और मुझ पर भी दबाव बनाते हैं। मैं धर्म-कर्म, पूजा-पाठ, दानादि कर सकता हूं लेकिन उपवास रखना मेरे सामर्थ्य की बात नहीं हैं। तब व्यास जी ने कहा, भीम यदि तुम स्वर्ग और नरक में यकीन रखते हो तो तुम्हारे लिए भी यह व्रत करना जरूरी है। इस पर भीम की चिंता और भी बढ़ गई, उसने व्यास जी कहा, हे महर्षि कोई ऐसा उपवास बताने की कृपा करें जिसे साल में एक बार रखने पर ही मोक्ष की प्राप्ति हो।

इस पर महर्षि वेदव्यास ने गदाधारी भीम को कहा कि हे वत्स यह उपवास है तो बड़ा ही कठिन लेकिन इसे रखने से तुम्हें सभी एकादशियों के उपवास का फल प्राप्त हो जाएगा। उन्होंने कहा कि इस उपवास के पुण्य के बारे में स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने मुझे बताया है। तुम ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का उपवास करो। इसमें आचमन व स्नान के अलावा जल भी ग्रहण नहीं किया जाता है।

इस एकादशी की तिथि पर निर्जला उपवास रखकर भगवान केशव यानी श्री हरि की पूजा करना और अगले दिन स्नानादि कर ब्राह्मण को दान-दक्षिणा देकर, भोजन करवाकर फिर स्वयं भोजन करना। इस प्रकार तुम्हें केवल एक दिन के उपवास से ही साल भर के उपवासों जितना पुण्य मिलेगा। महर्षि वेदव्यास के बताने पर भीम ने यही उपवास रखा और मोक्ष प्राप्ति की।

भीम द्वारा उपवास रखे जाने के कारण ही निर्जला एकादशी को भीमसेन एकादशी और चूंकि पांडवों ने भी इस दिन का उपवास रखा तो इस कारण इसे पांडव एकादशी भी कहा जाता है। इन नामों से भी यह प्रसिद्ध है।

निर्जला एकादशी व्रत है कठिन

जैसा महर्षि वेदव्यास ने भीम को बताया था एकादशी का यह उपवास निर्जला रहकर करना होता है इसलिए इसे रखना कठिन होता है। क्योंकि एक तो इसमें पानी तक पीने की मनाही होती है दूसरा एकादशी के उपवास को द्वादशी के दिन सूर्योदय के पश्चात खोला जाता है। अत: इसकी समयावधि भी काफी लंबी हो जाती है।

मरीज व्रत से परहेज करें, नाम जपें

श्री विष्णु की कृपा पाने के लिए लोग इस व्रत को करते हैं लेकिन बीमार और डायबीटिज जैसी बीमारियों से जूझने वाले व्यक्तियों को ऐसे व्रत को करने से पहले विचार करना चाहिए। यह उनकी सेहत के लिए मुश्किल हो सकता है। ऐसे में भगवद् स्मरण ज्यादा उचित है।

निर्जला एकादशी पूजा विधि

सभी व्रत, उपवासों में निर्जला एकादशी को श्रेष्ठ माना जाता है इसलिये पूरे यत्न के साथ इस व्रत को करना चाहिए। व्रत करने से पहले भगवान से प्रार्थना करनी चाहिए कि प्रभु आपकी दया दृष्टि मुझ पर बनी रहे, मेरे समस्त पाप नष्ट हों। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करें। एकादशी के सूर्योदय से लेकर द्वादशी के सूर्योदय तक अन्न् व जल का त्याग करें। अन्न्, वस्त्र, जूती आदि का अपनी क्षमतानुसार दान कर सकते हैं। जल से भरे घड़े को भी वस्त्र से ढककर उसका दान भी किया जाता है व साथ में क्षमतानुसार स्वर्ण भी दिया जाता है। ब्राह्मणों अथवा किसी गरीब व जरुरतमंद को मिष्ठान्न् व दक्षिणा भी देनी चाहिए।

‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का उच्चारण भी करना चाहिए। साथ ही निर्जला एकादशी की कथा भी पढ़नी या सुननी चाहिए। द्वादशी के सूर्योदय के बाद विधिपूर्वक ब्राह्मण को भोजन करवाकर तत्पश्चात अन्ना व जल ग्रहण करें। व्रती को ध्यान रखना चाहिए कि गलती से भी स्नान व आचमन के अलावा जल ग्रहण न हों। आचमन में भी नाममात्र जल ही ग्रहण करना चाहिए। जो व्रत न कर सकें वे नाम जपें।