एक घर में सैकड़ों सांपों का डेरा न सिर्फ रोंगेटे खड़े कर देने वाला है, बल्कि विज्ञान के रहस्यों को भी गहरा करता है। चूंकि सांप झुंड में नहीं रहते, ऐसे में वन्य जीवों का सिर चकरा गया है। कोई बता रहा है कि यह पर्यावरण में घातक बदलावों का संकेत हो सकता है। तो कोई कह रहा है कि अंडे देने वाली मादा मर गई होगी या बाद में अपने बच्चों को खाना भूल गई होगी। एक विशेषज्ञ ने काफी पड़ताल के बाद संभावना जताई कि यह एक विशेष प्रजाति का सांप हो सकता है जो झुंड में रहता है। लेकिन उन्होंने इससे इंकार किया कि यह इतने बड़े झुंड में नहीं रहता है कि एक साथ किसी एक कमरे में बने छेद में से सैकड़ों की संख्या में निकल पड़े। मेरठ, उप्र के मवाना टाउन एरिया का मुन्नाालाल मोहल्ला चर्चा का केंद्र बना हुआ है। 11 मई की रात यहां सलीम के घर में सैकड़ों सांप एक साथ निकल पड़े, जिसमें से कई को मार दिया गया। तमाशबीनों का कहना था कि 400 से अधिक सांप निकले। लोगों ने फोटो भी खींची। तमाम वन्य जीव विशेषज्ञों ने अपने-अपने तकोर् से इस रहस्य को सुलझाने का प्रयास किया, किंतु यह सांपों की कुंडली की तरह उलझा रह गया। चूंकि सांप सरीसृप वर्ग का प्राणी है, जिसमें आपसी सामाजिक रिश्ता नहीं होता। ऐसे में एक साथ सैकड़ों सांप एक बिल में कैसे पहुंच गए? वन्य जीव विशेषज्ञ एवं दुधवा नेशनल पार्क के पूर्व निदेशक डा. राम लखन सिंह का कहना है कि सरीसृप वर्ग की मादाएं हजारों अंडे देती हैं। घडिय़ाल के बच्चों को अंडे से निकलने के दौरान पक्षी एवं अन्य रेंगने वाले जीव शिकार कर लेते हैं, जबकि मादा सर्प अपने बच्चों को खुद खा जाती है। प्रकृति इसी बहाने सांपों की संख्या संतुलित रखती है। सरीसृप वर्ग के 90 फीसद बच्चे मर जाते हैं। संभव है कि यहां पर मादा किसी कारण से मर गई हो, ऐसे में अंडों से बच्चे निकलकर बड़े होते गए। इस वजह से एक स्थान पर सांपों की संख्या सौ से ज्यादा हो गई। अन्य बड़े सांप छोटे सांपों का शिकार कर लेते हैं, किंतु अंडों से निकले सांपों को खत्म करने का जिम्मा सिर्फ मादा उठाती है। सभी जीवों में जैविक घड़ी होती है। इसके जरिए जीव वायुमंडल के संकेतों को समझता है। माना जा रहा है कि हाल के दिलों में ग्लोबल वार्मिंग का असर पर्यावरण पर साफ नजर आने लगा है। कई वन्य जीवों के स्वभावों में बदलाव से विशेषज्ञ हैरान हैं। वन्य जीवों की प्रवृत्ति में घातक परिवर्तन से भी असंतुलन का खतरा बन गया है। अगर ऐसा है तो आने वाले दिनों में झुंड में सांप निकलने की घटनाएं बढ़ सकती हैं। मेरठ की डीएफओ अदिति शर्मा ने बताया कि डिप्टी रेंजर विनोद कुमार के साथ वन विभाग की टीम मोहल्ले में गई थी। बातचीत में लोगों ने बताया कि कुछ सांप मार दिए गए और कुछ सांपों को मोहल्ले के लोगों ने कागज व प्लास्टिक में बंद कर नाले में फेंक दिया था। सभी सांप दो से तीन फुट के बीच के हल्के पीले व सफेद थे। टीम को सांप नहीं मिलने से उनकी प्रजाति की पहचान नहीं हो सकी। सलीम ने बताया कि घर में 400 से अधिक सांपों को देखकर उसका परिवार हफ्तेभर तक खौफ में रहा। 10 मई को सफाई के दौरान पत्नी कमरजहां को दो फुट लंबा सांप मिला था। जिसे मारकर फेंक दिया था। 11 मई की शाम एक के बाद एक सांप निकलने शुरू हो गए थे। उस समय परिवार के साथ मोहल्ले के लोग भी खौफ में आ गए थे। हो सकता है चैकर्ड कीलबैक- हालही पद्मश्री से सम्मानित किए गए सर्प विशेषज्ञ रोमुलस विटेकर की सहयोगी संस्था स्नेकबाइट हीलिंग एंड एजुकेशन सोसायटी (शी) मुंबई की सर्प विशेषज्ञ प्रियंका कदम ने बताया कि यह घटना चौंकाने वाली है लेकिन इस पर अब तक जो तर्क विशेषज्ञों ने दिए हैं वे सटीक नहीं हैं। वन्य विभाग ने भी वहां से निकले सांपों की पहचान नहीं की। प्रियंका ने कहा कि संभावना इस बात की है कि यह चैकर्ड कीलबैक प्रजाति का सांप हो। हल्के पीले चौकड़ियों वाले यह सांप समूह में रहते हैं। किसी बड़े नाले या ऐसी जगह पर जहां इन्हें चूहे, मैंढक वगैरह खाने को मिल सकें, वहां इनकी संख्या देखी जा सकती है। मेरठ के जिस घर से ये निकले, वहां ठीक पीछे एक नाला बहता है।

कमरे से निकले एक साथ सैकड़ों सांप, हैरत में लोग

एक घर में सैकड़ों सांपों का डेरा न सिर्फ रोंगेटे खड़े कर देने वाला है, बल्कि विज्ञान के रहस्यों को भी गहरा करता है। चूंकि सांप झुंड में नहीं रहते, ऐसे में वन्य जीवों का सिर चकरा गया है। कोई बता रहा है कि यह पर्यावरण में घातक बदलावों का संकेत हो सकता है। तो कोई कह रहा है कि अंडे देने वाली मादा मर गई होगी या बाद में अपने बच्चों को खाना भूल गई होगी।एक घर में सैकड़ों सांपों का डेरा न सिर्फ रोंगेटे खड़े कर देने वाला है, बल्कि विज्ञान के रहस्यों को भी गहरा करता है। चूंकि सांप झुंड में नहीं रहते, ऐसे में वन्य जीवों का सिर चकरा गया है। कोई बता रहा है कि यह पर्यावरण में घातक बदलावों का संकेत हो सकता है। तो कोई कह रहा है कि अंडे देने वाली मादा मर गई होगी या बाद में अपने बच्चों को खाना भूल गई होगी।  एक विशेषज्ञ ने काफी पड़ताल के बाद संभावना जताई कि यह एक विशेष प्रजाति का सांप हो सकता है जो झुंड में रहता है। लेकिन उन्होंने इससे इंकार किया कि यह इतने बड़े झुंड में नहीं रहता है कि एक साथ किसी एक कमरे में बने छेद में से सैकड़ों की संख्या में निकल पड़े।  मेरठ, उप्र के मवाना टाउन एरिया का मुन्नाालाल मोहल्ला चर्चा का केंद्र बना हुआ है। 11 मई की रात यहां सलीम के घर में सैकड़ों सांप एक साथ निकल पड़े, जिसमें से कई को मार दिया गया। तमाशबीनों का कहना था कि 400 से अधिक सांप निकले। लोगों ने फोटो भी खींची।  तमाम वन्य जीव विशेषज्ञों ने अपने-अपने तकोर् से इस रहस्य को सुलझाने का प्रयास किया, किंतु यह सांपों की कुंडली की तरह उलझा रह गया। चूंकि सांप सरीसृप वर्ग का प्राणी है, जिसमें आपसी सामाजिक रिश्ता नहीं होता। ऐसे में एक साथ सैकड़ों सांप एक बिल में कैसे पहुंच गए?  वन्य जीव विशेषज्ञ एवं दुधवा नेशनल पार्क के पूर्व निदेशक डा. राम लखन सिंह का कहना है कि सरीसृप वर्ग की मादाएं हजारों अंडे देती हैं। घडिय़ाल के बच्चों को अंडे से निकलने के दौरान पक्षी एवं अन्य रेंगने वाले जीव शिकार कर लेते हैं, जबकि मादा सर्प अपने बच्चों को खुद खा जाती है। प्रकृति इसी बहाने सांपों की संख्या संतुलित रखती है। सरीसृप वर्ग के 90 फीसद बच्चे मर जाते हैं।  संभव है कि यहां पर मादा किसी कारण से मर गई हो, ऐसे में अंडों से बच्चे निकलकर बड़े होते गए। इस वजह से एक स्थान पर सांपों की संख्या सौ से ज्यादा हो गई। अन्य बड़े सांप छोटे सांपों का शिकार कर लेते हैं, किंतु अंडों से निकले सांपों को खत्म करने का जिम्मा सिर्फ मादा उठाती है। सभी जीवों में जैविक घड़ी होती है। इसके जरिए जीव वायुमंडल के संकेतों को समझता है।  माना जा रहा है कि हाल के दिलों में ग्लोबल वार्मिंग का असर पर्यावरण पर साफ नजर आने लगा है। कई वन्य जीवों के स्वभावों में बदलाव से विशेषज्ञ हैरान हैं। वन्य जीवों की प्रवृत्ति में घातक परिवर्तन से भी असंतुलन का खतरा बन गया है। अगर ऐसा है तो आने वाले दिनों में झुंड में सांप निकलने की घटनाएं बढ़ सकती हैं।  मेरठ की डीएफओ अदिति शर्मा ने बताया कि डिप्टी रेंजर विनोद कुमार के साथ वन विभाग की टीम मोहल्ले में गई थी। बातचीत में लोगों ने बताया कि कुछ सांप मार दिए गए और कुछ सांपों को मोहल्ले के लोगों ने कागज व प्लास्टिक में बंद कर नाले में फेंक दिया था। सभी सांप दो से तीन फुट के बीच के हल्के पीले व सफेद थे।  टीम को सांप नहीं मिलने से उनकी प्रजाति की पहचान नहीं हो सकी। सलीम ने बताया कि घर में 400 से अधिक सांपों को देखकर उसका परिवार हफ्तेभर तक खौफ में रहा। 10 मई को सफाई के दौरान पत्नी कमरजहां को दो फुट लंबा सांप मिला था। जिसे मारकर फेंक दिया था। 11 मई की शाम एक के बाद एक सांप निकलने शुरू हो गए थे। उस समय परिवार के साथ मोहल्ले के लोग भी खौफ में आ गए थे।  हो सकता है चैकर्ड कीलबैक-  हालही पद्मश्री से सम्मानित किए गए सर्प विशेषज्ञ रोमुलस विटेकर की सहयोगी संस्था स्नेकबाइट हीलिंग एंड एजुकेशन सोसायटी (शी) मुंबई की सर्प विशेषज्ञ प्रियंका कदम ने बताया कि यह घटना चौंकाने वाली है लेकिन इस पर अब तक जो तर्क विशेषज्ञों ने दिए हैं वे सटीक नहीं हैं। वन्य विभाग ने भी वहां से निकले सांपों की पहचान नहीं की।  प्रियंका ने कहा कि संभावना इस बात की है कि यह चैकर्ड कीलबैक प्रजाति का सांप हो। हल्के पीले चौकड़ियों वाले यह सांप समूह में रहते हैं। किसी बड़े नाले या ऐसी जगह पर जहां इन्हें चूहे, मैंढक वगैरह खाने को मिल सकें, वहां इनकी संख्या देखी जा सकती है। मेरठ के जिस घर से ये निकले, वहां ठीक पीछे एक नाला बहता है।

एक विशेषज्ञ ने काफी पड़ताल के बाद संभावना जताई कि यह एक विशेष प्रजाति का सांप हो सकता है जो झुंड में रहता है। लेकिन उन्होंने इससे इंकार किया कि यह इतने बड़े झुंड में नहीं रहता है कि एक साथ किसी एक कमरे में बने छेद में से सैकड़ों की संख्या में निकल पड़े।

मेरठ, उप्र के मवाना टाउन एरिया का मुन्नाालाल मोहल्ला चर्चा का केंद्र बना हुआ है। 11 मई की रात यहां सलीम के घर में सैकड़ों सांप एक साथ निकल पड़े, जिसमें से कई को मार दिया गया। तमाशबीनों का कहना था कि 400 से अधिक सांप निकले। लोगों ने फोटो भी खींची।

तमाम वन्य जीव विशेषज्ञों ने अपने-अपने तकोर् से इस रहस्य को सुलझाने का प्रयास किया, किंतु यह सांपों की कुंडली की तरह उलझा रह गया। चूंकि सांप सरीसृप वर्ग का प्राणी है, जिसमें आपसी सामाजिक रिश्ता नहीं होता। ऐसे में एक साथ सैकड़ों सांप एक बिल में कैसे पहुंच गए?

वन्य जीव विशेषज्ञ एवं दुधवा नेशनल पार्क के पूर्व निदेशक डा. राम लखन सिंह का कहना है कि सरीसृप वर्ग की मादाएं हजारों अंडे देती हैं। घडिय़ाल के बच्चों को अंडे से निकलने के दौरान पक्षी एवं अन्य रेंगने वाले जीव शिकार कर लेते हैं, जबकि मादा सर्प अपने बच्चों को खुद खा जाती है। प्रकृति इसी बहाने सांपों की संख्या संतुलित रखती है। सरीसृप वर्ग के 90 फीसद बच्चे मर जाते हैं।

संभव है कि यहां पर मादा किसी कारण से मर गई हो, ऐसे में अंडों से बच्चे निकलकर बड़े होते गए। इस वजह से एक स्थान पर सांपों की संख्या सौ से ज्यादा हो गई। अन्य बड़े सांप छोटे सांपों का शिकार कर लेते हैं, किंतु अंडों से निकले सांपों को खत्म करने का जिम्मा सिर्फ मादा उठाती है। सभी जीवों में जैविक घड़ी होती है। इसके जरिए जीव वायुमंडल के संकेतों को समझता है।

माना जा रहा है कि हाल के दिलों में ग्लोबल वार्मिंग का असर पर्यावरण पर साफ नजर आने लगा है। कई वन्य जीवों के स्वभावों में बदलाव से विशेषज्ञ हैरान हैं। वन्य जीवों की प्रवृत्ति में घातक परिवर्तन से भी असंतुलन का खतरा बन गया है। अगर ऐसा है तो आने वाले दिनों में झुंड में सांप निकलने की घटनाएं बढ़ सकती हैं।

मेरठ की डीएफओ अदिति शर्मा ने बताया कि डिप्टी रेंजर विनोद कुमार के साथ वन विभाग की टीम मोहल्ले में गई थी। बातचीत में लोगों ने बताया कि कुछ सांप मार दिए गए और कुछ सांपों को मोहल्ले के लोगों ने कागज व प्लास्टिक में बंद कर नाले में फेंक दिया था। सभी सांप दो से तीन फुट के बीच के हल्के पीले व सफेद थे।

टीम को सांप नहीं मिलने से उनकी प्रजाति की पहचान नहीं हो सकी। सलीम ने बताया कि घर में 400 से अधिक सांपों को देखकर उसका परिवार हफ्तेभर तक खौफ में रहा। 10 मई को सफाई के दौरान पत्नी कमरजहां को दो फुट लंबा सांप मिला था। जिसे मारकर फेंक दिया था। 11 मई की शाम एक के बाद एक सांप निकलने शुरू हो गए थे। उस समय परिवार के साथ मोहल्ले के लोग भी खौफ में आ गए थे।

हो सकता है चैकर्ड कीलबैक-

हालही पद्मश्री से सम्मानित किए गए सर्प विशेषज्ञ रोमुलस विटेकर की सहयोगी संस्था स्नेकबाइट हीलिंग एंड एजुकेशन सोसायटी (शी) मुंबई की सर्प विशेषज्ञ प्रियंका कदम ने बताया कि यह घटना चौंकाने वाली है लेकिन इस पर अब तक जो तर्क विशेषज्ञों ने दिए हैं वे सटीक नहीं हैं। वन्य विभाग ने भी वहां से निकले सांपों की पहचान नहीं की।

प्रियंका ने कहा कि संभावना इस बात की है कि यह चैकर्ड कीलबैक प्रजाति का सांप हो। हल्के पीले चौकड़ियों वाले यह सांप समूह में रहते हैं। किसी बड़े नाले या ऐसी जगह पर जहां इन्हें चूहे, मैंढक वगैरह खाने को मिल सकें, वहां इनकी संख्या देखी जा सकती है। मेरठ के जिस घर से ये निकले, वहां ठीक पीछे एक नाला बहता है।

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