कैराना से राष्ट्रीय लोकदल की तबस्सुम हसन को यूं तो समाजवादी पार्टी, बसपा और कांग्रेस का समर्थन मिल रहा है, लेकिन इन पार्टियों के बड़े नेताओं की अभी तक न तो यहां कोई सभा हुई और न ही किसी दल का कोई बड़ा नेता चुनाव प्रचार करने आया। जहां तक सपा, बसपा या फिर कांग्रेस के बड़े नेताओं के चुनाव प्रचार में न आने की बात है तो इन पार्टियों के नेता इसके पीछे कोई सियासी वजह नहीं देखते। सपा नेता ने बताया कि पार्टी के सभी कार्यकर्ता आरएलडी उम्मीदवार के समर्थन में मतदाताओं को अपनी ओर कर रहे हैं। यह हमारा गठबंधन यहां भी सफल होगा और आगे भी चलेगा। यहां पर लड़ाई गठबंधन के नाम पर भले ही लड़ी जा रही हो लेकिन दरअसल, यहां राष्ट्रीय लोकदल के नेता अजित सिंह और उनके बेटे जयंत चौधरी का अस्तित्व दांव पर लगा है। यही वजह है कि बड़े नेताओं के नाम पर गठबंधन की ओर से सिर्फ अजीत सिंह और जयंत चौधरी ही प्रचार करते नजर आ रहे हैं। कैराना के सामाजिक समीकरण को देखते हुए भाजपा के साथ ही विपक्ष जोड़ तोड़ में जुटा हुआ है। अंतिम लक्ष्य वोट पाना है। भले ही यहां पर सभी राजनीतिक दल कितने भी पासे फेंक ले पर पशोपेश में पड़ा वोटर कोई भी संकेत नहीं दे रहा और वो अपने पत्ते अंतिम समय में ही खोलेगा।

कैराना लोकसभा उपचुनाव : चुनाव प्रचार का आज अंतिम दिन, नहीं पहुंचे अखिलेश

उत्तर प्रदेश की कैराना लोकसभा उपचुनाव के लिए 28 मई को मतदान होना है। इसके लिए प्रचार आज शाम को पांच बजे थम जाएगा। यहां पर भारतीय जनता पार्टी की प्रत्याशी मृगांका सिंह के खिलाफ विरोधी दलों के साथ ही मौलाना भी सक्रिय है। गठबंधन की प्रत्याशी तबस्सुम हसन के पक्ष में यहां पर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने प्रचार नहीं किया जबकि राष्ट्रीय लोकदल ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है।कैराना से राष्ट्रीय लोकदल की तबस्सुम हसन को यूं तो समाजवादी पार्टी, बसपा और कांग्रेस का समर्थन मिल रहा है, लेकिन इन पार्टियों के बड़े नेताओं की अभी तक न तो यहां कोई सभा हुई और न ही किसी दल का कोई बड़ा नेता चुनाव प्रचार करने आया। जहां तक सपा, बसपा या फिर कांग्रेस के बड़े नेताओं के चुनाव प्रचार में न आने की बात है तो इन पार्टियों के नेता इसके पीछे कोई सियासी वजह नहीं देखते। सपा नेता ने बताया कि पार्टी के सभी कार्यकर्ता आरएलडी उम्मीदवार के समर्थन में मतदाताओं को अपनी ओर कर रहे हैं। यह हमारा गठबंधन यहां भी सफल होगा और आगे भी चलेगा।  यहां पर लड़ाई गठबंधन के नाम पर भले ही लड़ी जा रही हो लेकिन दरअसल, यहां राष्ट्रीय लोकदल के नेता अजित सिंह और उनके बेटे जयंत चौधरी का अस्तित्व दांव पर लगा है। यही वजह है कि बड़े नेताओं के नाम पर गठबंधन की ओर से सिर्फ अजीत सिंह और जयंत चौधरी ही प्रचार करते नजर आ रहे हैं।  कैराना के सामाजिक समीकरण को देखते हुए भाजपा के साथ ही विपक्ष जोड़ तोड़ में जुटा हुआ है। अंतिम लक्ष्य वोट पाना है। भले ही यहां पर सभी राजनीतिक दल कितने भी पासे फेंक ले पर पशोपेश में पड़ा वोटर कोई भी संकेत नहीं दे रहा और वो अपने पत्ते अंतिम समय में ही खोलेगा।

शामली जिले की कैराना लोकसभा सीट पर उपचुनाव के लिए आज प्रचार का शोर शाम पांच बजे थम जाएगा। यहां पर 28 मई को मतदान होगा जबकि परिणाम 31 मई को आ जाएगा। कैराना लोकसभा सीट भाजपा सांसद हुकुम सिंह के फरवरी में हुए निधन के कारण खाली हुई है। सांसद हुकुम सिंह के निधन के बाद खाली हुई कैराना लोकसभा सीट पर बीजेपी ने मृगांका सिंह को अपना प्रत्याशी बनाया है। विपक्ष ने संयुक्त रूप से समाजवादी पार्टी की नेता तबस्सुम हसन को राष्ट्रीय लोकदल के बैनर पर मैदान में उतारा है। विपक्ष इस सीट को जीतने की हरसंभव कोशिश कर रहा है। विपक्ष का मानना है कि अगर इस सीट को जीतते हैं तो उनको 2019 के लोकसभा चुनाव में सत्ता पर काबिज भाजपा के खिलाफ लडऩे में बड़ी मनोवैज्ञानिक जीत मिलेगी।

गोरखपुर व फूलपुर लोकसभा सीटों के उपचुनावों में हार के बाद भाजपा अब कैराना में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। सूबे में सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील इस लोकसभा क्षेत्र में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत पांच मंत्रियों ने यहां चुनावी सभी की।

कैराना उपचुनाव में मतदाता अभी भी अपना मूड बना नहीं पा रहा है। वह काफी असमंजस्य की स्थिति में है। यहां दल की काफी पसोपेश में हैं। जमीन पर सभी दल के कार्यकर्ता भले ही इकट्ठे होकर उपचुनाव लड़ रहे हों, लेकिन प्रचार की कमान अकेले राष्ट्रीय लोकदल के दिग्गजों को ही संभालनी पड़ी। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ ही बसपा तथा कांग्रेस के नेता यहां प्रचार के मैदान में नही उतरे। गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव में विपक्षी एकता सामने दिख रही थी और विपक्षी दिग्गजों ने भी जनसभाएं की थी।

कैराना से राष्ट्रीय लोकदल की तबस्सुम हसन को यूं तो समाजवादी पार्टी, बसपा और कांग्रेस का समर्थन मिल रहा है, लेकिन इन पार्टियों के बड़े नेताओं की अभी तक न तो यहां कोई सभा हुई और न ही किसी दल का कोई बड़ा नेता चुनाव प्रचार करने आया। जहां तक सपा, बसपा या फिर कांग्रेस के बड़े नेताओं के चुनाव प्रचार में न आने की बात है तो इन पार्टियों के नेता इसके पीछे कोई सियासी वजह नहीं देखते। सपा नेता ने बताया कि पार्टी के सभी कार्यकर्ता आरएलडी उम्मीदवार के समर्थन में मतदाताओं को अपनी ओर कर रहे हैं। यह हमारा गठबंधन यहां भी सफल होगा और आगे भी चलेगा।

यहां पर लड़ाई गठबंधन के नाम पर भले ही लड़ी जा रही हो लेकिन दरअसल, यहां राष्ट्रीय लोकदल के नेता अजित सिंह और उनके बेटे जयंत चौधरी का अस्तित्व दांव पर लगा है। यही वजह है कि बड़े नेताओं के नाम पर गठबंधन की ओर से सिर्फ अजीत सिंह और जयंत चौधरी ही प्रचार करते नजर आ रहे हैं।

कैराना के सामाजिक समीकरण को देखते हुए भाजपा के साथ ही विपक्ष जोड़ तोड़ में जुटा हुआ है। अंतिम लक्ष्य वोट पाना है। भले ही यहां पर सभी राजनीतिक दल कितने भी पासे फेंक ले पर पशोपेश में पड़ा वोटर कोई भी संकेत नहीं दे रहा और वो अपने पत्ते अंतिम समय में ही खोलेगा।

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