क्या कहती हैं भोलेनाथ के मस्तक पर बनी तीन रेखाएं

हर साल आने वाला महाशिवरात्रि का पर्व इस साल भी आने वाला है। यह पर्व शिवभक्तों के लिए बड़ा ही ख़ास होता है। शिवभक्त महाशिवरात्रि का इंतज़ार करते हैं और उसके आने पर शिव भगवान की धूम-धाम से पूजा करते हैं। हिन्दू धर्म में महाशिवरात्रि एक बहुत ही बड़ा और महत्वपूर्ण त्यौहार है। यह पर्व बहुत ही ख़ास और अहम माना जाता है। इस पर्व को हिन्दू धर्म के लोग मनाते हैं और शिव जी को खुश करने के लिए पूजन करते हैं। इसी के साथ शिव जी का शृंगार भी करते हैं। भोले का शृंगार बहुत ही आसान है क्योंकि वह अपने शरीर पर अधिक वस्तुओं को ग्रहण नहीं करते हैं। उनके श्रृंगार में ही शामिल है उनका त्रिपुण्ड। जी हाँ, शिव जी के माथे पर विराजमान होता है त्रिपुण्ड और इस त्रिपुण्ड को लगाना बहुत ही शुभ माना जाता है। त्रिपुण्ड शिव भगवान का पहला श्रृंगार है जो उनके माथे से शुरू होता है। खैर आज हम आपको बताने जा रहे हैं त्रिपुण्ड क्यों लगाया जाता है और त्रिपुण्ड को कहाँ-कहाँ लगाया जा सकता है।

कब है महाशिवरात्रि- इस साल महाशिवरात्रि का पर्व 11 मार्च, गुरूवार के दिन मनाया जाने वाला है।

भोले बाबा का श्रृंगार- भोलेनाथ का श्रृंगार करने के लिए आपको कड़ा, मृगछाला, रुद्राक्ष, नागदेवता, खप्पर, डमरू, त्रिशूल, बेलपत्र, भांग, भस्म, धतूरा, त्रिपुण्ड चाहिए होगा क्योंकि यह सभी भोलेनाथ की प्रिय वस्तुएं हैं। अगर आप भोले बाबा को खुश करना चाहते हैं, उनका आशीर्वाद चाहते हैं तो आप इन सभी वस्तुओं से भोले बाबा को सजा सकते हैं। उनका श्रृंगार कर सकते हैं।

क्या है त्रिपुण्ड- भगवान शिव के मस्तक पर तीन उँगलियों के माध्यम से जो रेखाएं बनाई जाती है उसे त्रिपुण्ड कहा जाता है। यह रेखाएं श्वेत चंदन या भस्म से लगाई जाती है। जो लोग शैव सन्यासी होते हैं वह अपने मस्तक पर त्रिपुण्ड बनाते हैं।

कितना बड़ा होना चाहिए त्रिपुण्ड- त्रिपुण्ड बायीं आँख से दाहिनी आँख तक लम्बा होना चाहिए। त्रिपुण्ड को ना अधिक लम्बा लगाए ना ही अधिक छोटा। इसके पीछे भी एक रहस्य है। जी दरअसल कहा जाता है त्रिपुण्ड ज्यादा लम्बा होता है तो तप को कम करता है और ज्यादा छोटा होने पर आयु को। इस वजह से त्रिपुण्ड को केवल उतना ही बड़ा लगाए जितना शास्त्रों में बताया गया है। इसे माथे से लेकर भौहों तक लगाया जाता है। ध्यान रहे शाम के समय केवल सुखी भस्म की भस्म लगाए क्योंकि यही सही तरीका है।

क्या कहती हैं त्रिपुण्ड की तीन रेखाएं- त्रिपुण्ड को हमेशा तीन रेखाओं से ही बनाया जाता है लेकिन इसके पीछे भी एक रहस्य है। जी दरअसल तरपुण्ड की तीनों रेखाओं में देवताओं का वास है। तरपुण्ड की एक-एक रेखा में 9 देवता निवास करते हैं और इस तरह तीनों रेखाओं में कुल 27 देवताओं का निवास होता है। यह वह देवता है जो सभी अंगों में स्थित हैं। आइए बताते हैं कौन से देवता किस रेखा में रहते हैं।

पहली रेखा: गार्हपत्य अग्नि, प्रणव का प्रथम अक्षर अकार, रजोगुण, पृथ्वी, धर्म, क्रियाशक्ति, ऋग्वेद, प्रातः कालीन हवन और महादेव।

द्वितीय रेखा: दक्षिणाग्नि, प्रणव का दूसरा अक्षर उकार, सत्वगुण, आकाश, अंतरात्मा, इच्छाशक्ति, यजुर्वेद, मध्याह के हवन और महेश्वर।

तृतीय रेखा: आहवनीय अग्नि, प्रणव का तीसरा अक्षर मकार, तमोगुण, स्वर्गलोक, परमात्मा, ज्ञानशक्ति, सामवेद, तीसरे पहर का हवन और शिव। इस तरह तीन रेखाओं में 27 देवताओं का निवास होता है।

कहाँ-कहाँ लगाते हैं त्रिपुण्ड- बहुत कम लोग इस बात को जानते हैं कि त्रिपुण्ड को कहाँ-कहाँ लगाया जाता है। त्रिपुण्ड के बारे में अक्सर लोगों को यही भ्र्म रहता है कि इसे केवल माथे पर लगाया जाता है हालाँकि ऐसा नहीं है। जी दरअसल त्रिपुण्ड को शरीर के पांच, आठ, सोलह और बत्तीस स्थानों पर लगाया जाता है।

बत्तीस स्थान हैं- मस्तक, ललाट, दोनों कान, दोनों नेत्र, दोनों नाक, दोनों हाथ, कंठ, मुख, दोनों कोहनी, दोनों कलाई, ह्रदय, दोनों पार्श्व भाग, नाभि, दोनों अंडकोष, दोनों उरु, दोनों गुल्फ, दोनों घुटने, दोनों पैर, दोनों पिंडली।

सोलह स्थान हैं- मस्तक, ललाट, कंठ, दोनों कंधे, दोनों कोहनी, दोनों भुजा, ह्रदय, नाभि, दोनों पसलियां, दोनों कलाई और पृष्ठ्भाग।

आठ स्थान हैं- गुहा, ललाट, दोनों कान, दोनों कंधे, ह्रदय, नाभि।

पांच स्थान हैं- मस्तक, ह्रदय, दोनों भुजाएं, नाभि। यह सब वह जगह है जहाँ आप त्रिपुण्ड लगा सकते हैं।

क्यों लगाते हैं त्रिपुण्ड- जी दरअसल तरपुण्ड लगाने से मोक्ष मिलता है। जो लोग त्रिपुण्ड लगाते हैं उन्हें सभी तीर्थों का फल मिल जाता है। भस्म का तरपुण्ड लगाने से सभी पापों से तर जाते हैं। जो लोग त्रिपुण्ड लगाते हैं उन पर शिव जी की कृपा बरसना शुरू हो जाती है। सबसे बड़ी और अहम बात तो यह है कि जो लोग त्रिपुण्ड धारण करते हैं उनका दूसरा जन्म नहीं होता।

त्रिपुण्ड धारण करने का मंत्र- नमः शिवाय। कहा जाता है इस मन्त्र को बोलते हुए त्रिपुण्ड को धारण करना चाहिए क्योंकि तभी तरपुण्ड को धारण करने के सभी फल मिल पाते हैं।

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