22 साल से नहीं ली गई तालों की सुध पूर्व क्षेत्र पंचायत सदस्य जयेंद्र सिंह पंवार बताते हैं कि वर्ष 1996 में तालों के संरक्षण लिए थोड़ा-बहुत काम हुआ था। इसके तहत तालों तक पहुंचने के लिए रास्ता बनाया गया। लेकिन, तालों के प्रचार-प्रसार की दिशा में कोई काम नहीं हुआ। सफेद बुरांश की फुलवारी खास आकर्षण सात ताल समूह के पास स्थित सफेद बुरांश की फुलवारी पर्यटकों को सम्मोहित कर देती है। असल में यहां डेढ़ किमी क्षेत्र में सफेद बुरांश का जंगल फैला हुआ है। जब बुरांश के पेड़ फूलों से लकदक रहते हैं, तब ऐसा प्रतीत होता है, मानो घाटी ने सफेद चादर ओढ़ ली हो। जिला पर्यटन अधिकारी (उत्तरकाशी) पीएस खत्री का कहना है कि सात ताल समूह को होम स्टे योजना से जोड़ा जाएगा। ताकि धराली और हर्षिल की सैर पर आने वाले पर्यटक सात ताल भी घूम सकें। इससे स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिलेगा। ताल समूह के प्रचार-प्रसार को भी योजना बनाई जा रही है।

गंगोत्री हिमालय में सात ताल का सम्मोहन, साथ ही होते भीम गुफा के भी दीदार

ताल और बुग्याल (मखमली घास के मैदान) उत्तराखंड की खास पहचान हैं। लेकिन, इस पहचान को सामने लाने के लिए पर्यटन विभाग शायद ही कभी गंभीर रहा हो। इसका उदाहरण है गंगोत्री हिमालय में हर्षिल-धराली के निकट स्थित सात तालों का समूह। जो विभागीय उपेक्षा के कारण पर्यटन मानचित्र पर अपना स्थान नहीं बना पाया। जबकि, यहां ताल समूह के साथ भीम गुफा और सफेद बुरांश की फुलवारी के भी दीदार होते हैं।  

जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से 75 किमी दूर धराली कस्बा पड़ता है। यहां से पांच किमी की पैदल दूरी पर श्रीकांठा पर्वत के नीचे दो कि

22 साल से नहीं ली गई तालों की सुध  पूर्व क्षेत्र पंचायत सदस्य जयेंद्र सिंह पंवार बताते हैं कि वर्ष 1996 में तालों के संरक्षण लिए थोड़ा-बहुत काम हुआ था। इसके तहत तालों तक पहुंचने के लिए रास्ता बनाया गया। लेकिन, तालों के प्रचार-प्रसार की दिशा में कोई काम नहीं हुआ।  सफेद बुरांश की फुलवारी खास आकर्षण  सात ताल समूह के पास स्थित सफेद बुरांश की फुलवारी पर्यटकों को सम्मोहित कर देती है। असल में यहां डेढ़ किमी क्षेत्र में सफेद बुरांश का जंगल फैला हुआ है। जब बुरांश के पेड़ फूलों से लकदक रहते हैं, तब ऐसा प्रतीत होता है, मानो घाटी ने सफेद चादर ओढ़ ली हो।    जिला पर्यटन अधिकारी (उत्तरकाशी) पीएस खत्री का कहना है कि सात ताल समूह को होम स्टे योजना से जोड़ा जाएगा। ताकि धराली और हर्षिल की सैर पर आने वाले पर्यटक सात ताल भी घूम सकें। इससे स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिलेगा। ताल समूह के प्रचार-प्रसार को भी योजना बनाई जा रही है।

मी वर्ग क्षेत्र में फैला है सात ताल का समूह। स्थानीय लोग इन तालों की कहानी पांडवों के स्वर्गारोहणी यात्रा से जोड़ते हैं। सात तालों के समूह में छटगिया ताल सबसे बड़ा है। बरसात के समय जब यह ताल लबालब भर जाता है, तब स्थानीय लोग यहां पूजा-अर्चना के साथ इसकी परिक्रमा भी करते हैं। जबकि, छटगिया ताल के पास स्थित डाबरिया ताल में सिर्फ बरसात के दौरान ही पानी रहता है। डाबरिया ताल से 200 मीटर की दूरी पर स्थित मृदुंगा ताल से ही मृदुंगी नदी निकलती है। जो सेब के बागीचों के बीच से होकर हर्षिल के पास भागीरथी से मिलती है। लेकिन, जानकारी न होने के कारण चुनिंदा पर्यटक ही सात ताल के दीदार को पहुंच पाते हैं।

सात तालों में सबसे ऊपर श्रीकांठा ताल है। इससे नीचे 50 मीटर की दूरी पर गुप्त ताल और यहां से 150 मीटर नीचे रिखताल है। रिखताल से सौ मीटर दूर ब्राह्मण ताल और इसी के पास छटगिया ताल व डाबरिया ताल स्थित हैं। जबकि, यहां से 200 मीटर के फासले पर मृदुंगा ताल के दीदार होते हैं।

22 साल से नहीं ली गई तालों की सुध

पूर्व क्षेत्र पंचायत सदस्य जयेंद्र सिंह पंवार बताते हैं कि वर्ष 1996 में तालों के संरक्षण लिए थोड़ा-बहुत काम हुआ था। इसके तहत तालों तक पहुंचने के लिए रास्ता बनाया गया। लेकिन, तालों के प्रचार-प्रसार की दिशा में कोई काम नहीं हुआ।

सफेद बुरांश की फुलवारी खास आकर्षण

सात ताल समूह के पास स्थित सफेद बुरांश की फुलवारी पर्यटकों को सम्मोहित कर देती है। असल में यहां डेढ़ किमी क्षेत्र में सफेद बुरांश का जंगल फैला हुआ है। जब बुरांश के पेड़ फूलों से लकदक रहते हैं, तब ऐसा प्रतीत होता है, मानो घाटी ने सफेद चादर ओढ़ ली हो।  

जिला पर्यटन अधिकारी (उत्तरकाशी) पीएस खत्री का कहना है कि सात ताल समूह को होम स्टे योजना से जोड़ा जाएगा। ताकि धराली और हर्षिल की सैर पर आने वाले पर्यटक सात ताल भी घूम सकें। इससे स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिलेगा। ताल समूह के प्रचार-प्रसार को भी योजना बनाई जा रही है। 

 
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