गुजरात फतह के लिए कांग्रेस ‘PODA’ को मान रही है ब्रह्मास्त्र...

गुजरात फतह के लिए कांग्रेस ‘PODA’ को मान रही है ब्रह्मास्त्र…

हिमाचल प्रदेश में गुरुवार को मतदान निपटने के बाद गुजरात चुनाव पर पूरी तरह फोकस आ टिकेगा. गुजरात चुनाव पर सिर्फ देश की ही नहीं दुनिया की नजरें टिकी हैं. बीजेपी, खास तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए ये चुनाव साख का सवाल है, वहीं कांग्रेस भी 22 साल बाद गुजरात की सत्ता में वापसी की उम्मीद लिए अपने तरकश का हर तीर आजमाना चाहती है.गुजरात फतह के लिए कांग्रेस ‘PODA’ को मान रही है ब्रह्मास्त्र...नासा की ओर से 2018 में मंगल पर अब जाएगी फ्लाइट, 1 लाख भारतीयों ने बुक कराया टिकट

कांग्रेस की कोशिश है कि गुजरात में पोडा (PODA) के सहारे चुनावी वैतरणी पार की जाए. ‘पोडा’ के तमिल में मायने ‘चल हट’ होते हैं. लेकिन गुजरात चुनाव के लिए इसका मतलब है, P-पाटीदार, O-ओबीसी, D-दलित और A-आदिवासी.    

कांग्रेस एड़ी चोटी का जोर लगा रही है कि इस जातीय समीकरण से बीजेपी को गुजरात में सत्ता से ‘पोडा’ कर दिया जाए. ये बात दूसरी है कि कांग्रेस के पास पोडा को साधने के लिए खुद पार्टी में इन जातियों से दमदार नेता नहीं थे. ऐसे में कांग्रेस बाहर से इन जातियों के कद्दावर नेता चुनकर उनके ‘कांग्रेसीकरण’ के जरिए BJP को पटखनी देने की रणनीति पर काम कर रही है.

दरअसल, कांग्रेस ने इस साल के शुरू में उत्तर प्रदेश चुनाव से सबक लेते हुए यह तय किया कि वो पूरी कोशिश करेगी कि गुजरात के चुनाव को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की लाइन पर किसी सूरत में ना जाने दिया जाए. कांग्रेस अच्छी तरह जानती है कि अगर ऐसा हुआ तो बीजेपी उसको पटखनी दे देगी. यही वजह है कि कांग्रेस और राहुल गांधी ने गुजरात के लिए बीते कई हफ्ते से ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ की लाइन पकड़ी हुई है.

राहुल गांधी गुजरात में प्रचार के लिए जितनी बार भी गए, तमाम देवी देवताओं के मंदिरों में दर्शन करते नजर आए, महंतों से आशीर्वाद लेते दिखे और नव दुर्गा पंडालों में आरती करते नजर आए. दूसरी तरफ, राहुल भरूच में अल्पसंख्यक बहुल इलाकों में गए भी तो उनके किसी धर्मस्थल का रुख नहीं किया. कुल मिलाकर कांग्रेस की मशक्कत साफ नजर आती है कि BJP को गुजरात चुनाव को हिंदू-मुसलमान लाइन पर ले जाने का कोई मौका ना दिया जाए.

कांग्रेस गुजरात के लिए दो स्तरों वाला प्लान ले कर चल रही है. ऊपरी तौर पर कांग्रेस की कमान संभाले राहुल गांधी ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ का झंडा थामे दिखें, उसी दिशा में कदम उठाते नजर आएं. राहुल ऐसा कर भी रहे हैं. 

वहीं अंदरखाने कांग्रेस की कोशिश कट्टर हिंदुत्व की भावना को तोड़ने के लिए बिना कोई हल्ला किए जातिवाद का अस्त्र इस्तेमाल करने की है. यही वजह है कि कांग्रेस पाटीदार, ओबीसी, दलित और आदिवासी नेताओं को आगे कर इन जातियों के वोटों को अपने हक में साधना चाहती है.

वैसे जातीय समीकरणों पर टिके फॉर्मूलों की बात की जाए तो उत्तर प्रदेश और बिहार में MY (यानी मुस्लिम और यादव) ने बहुत सुर्खियां बटोरी थीं. गुजरात की बात की जाए तो कांग्रेस के मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष भरत सिंह सोलंकी के पिता माधव सिंह सोलंकी ने 1985 के राज्य विधानसभा चुनाव में KHAM (क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी, मुस्लिम) का दांव खेला था. गुजरात के उस चुनाव में कांग्रेस को 149 सीटों पर जीत हासिल हुई थी.

हालांकि उस जीत के लिए 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या से कांग्रेस के लिए उपजी सहानुभूति लहर के तथ्य को भी नजरअंदाज़ नहीं किया जा सकता.  ‘खाम’ के ही 2017 संस्करण के तौर पर ही कांग्रेस गुजरात में ‘पोडा’ पर दांव लगा रही है. कांग्रेस को लगता है कि ‘खाम’ में मुस्लिम अहम हिस्सा थे तो ‘पोडा’ में पाटीदार हैं. पाटीदार परंपरागत तौर पर BJP की रीढ़ माने जाते रहे हैं इसलिए कांग्रेस का पूरा जोर उन्हें अपनी तरफ लाने पर है. जहां तक मुस्लिमों की बात है तो कांग्रेस मान कर चल रही है, मुस्लिम बीजेपी के खिलाफ उसका ही साथ देंगे.

‘पोडा’ कितना कारगर रहता है, ये कांग्रेस के खुद के करिश्मे से अधिक इस बात पर निर्भर करेगा कि पाटीदार नेता हार्दिक पटेल, ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर, दलित नेता जिग्नेश मेवाणी और आदिवासी नेता छोटू सिंह वसावा किस हद तक अपनी जातियों में पैठ को कांग्रेस के हक में वोटों में तब्दील कर सकते हैं. छोटू सिंह वसावा वहीं विधायक हैं जिनके वोट ने कांग्रेस के दिग्गज अहमद पटेल को गुजरात से हालिया राज्यसभा चुनाव में जीत दिलाई थी. कहने को वसावा जेडीयू के विधायक हैं लेकिन अब वो नीतीश कुमार के साथ नहीं बल्कि शरद यादव खेमे के साथ हैं.

‘MY’ हो, ‘KHAM’ हो या फिर कांग्रेस का गुजरात के लिए नया ‘PODA’, ये वो जातीय समीकरण हैं जो चुनाव में क्लिक कर जाते हैं तो बरसों तक जुबान पर चढ़े रहते हैं. और अगर ‘फ्लॉप शो’ साबित होते हैं तो अतीत की तरह ही सियासी धुंध में खो जाते हैं. कांग्रेस के लिए ‘पोडा’ का दांव हिट रहेगा या फ्लॉप, ये जानने के लिए 18 दिसंबर को गुजरात चुनाव के नतीजे आने तक इंतजार करना होगा.

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