गूगल का डूडल हिंदी फिल्म जगत के पितामह वी. शांताराम को समर्पित, जानिए इनके बारे में....

गूगल का डूडल हिंदी फिल्म जगत के पितामह वी. शांताराम को समर्पित, जानिए इनके बारे में….

सिनेमा जगत के पितामह वी. शांताराम के 116वें जन्मदिन पर गूगल ने डूडल के जरिए उन्हें श्रद्धांजलि दी है. गूगल ने इस मौके पर एक खास डूडल बनाया है और उनकी तस्वीर से साथ GOOGLE लिखा गया है.गूगल का डूडल हिंदी फिल्म जगत के पितामह वी. शांताराम को समर्पित, जानिए इनके बारे में....

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वी शांताराम का मूल नाम राजाराम वानकुर्दे शांताराम था. सिनेमा की दुनिया में उन्हें ऐसे फिल्मकार के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने सामाजिक और पारिवारिक पृष्ठभूमि पर अर्थपूर्ण फिल्में बनाकर लगभग छह दशकों तक दर्शकों के दिल में राज किया. उनका जन्म 18 नवंबर, 1901 को महाराष्ट्र के कोल्हापूर में हुआ था.

जानें उनके बारे में …..

जिस समय हिंदी फिल्म उद्योग अपने विकास के शुरूआती दौर में था, उसी समय एक ऐसा फिल्मकार भी था जिसने कैमरे, पटकथा, अभिनय और तकनीक में तमाम प्रयोग कर ‘दो आंखें बारह हाथ’, ‘डॉ. कोटनीस की अमर कहानी’, ‘झनक झनक पायल बाजे’ और ‘नवरंग’ जैसी कई बेमिसाल फिल्में बनाई.

लंबे फिल्मी सफर में हिंदी और मराठी भाषा में कई सामाजिक फिल्में देने वाले शांताराम ने शिक्षा ग्रहण नहीं की थी, लेकिन फिल्म सिनेमा के छात्रों के लिए उनकी फिल्में पाठ्यपुस्तक हैं .

शांताराम का रुझान शुरू से ही फिल्मों की ओर था. वह फिल्मकार बनना चाहते थे. फिल्मों में करियर बनाने की शुरुआत में उन्होंने गंधर्व नाटक मंडली में छोट-मोटे काम करने से की. कहा जाता है फिल्म जगत के पितामह वी. शांताराम गंधर्व नाटक मंडली में पर्दा उठाने का काम किया करते थे.

बाद में वे बाबूराव पेंटर की महाराष्ट्र फिल्म कंपनी से जुड़ गए जहां उन्होंने फिल्म निर्माण की बारीक जानकारियां हासिल की. हालांकि उस दौरान पेंटर ने उन्हें अभिनय के लिए छोटी-छोटी भूमिकाएं भी दीं. 

बता दें कि वह दौर मूक फिल्मों का था. शांताराम ने 1927 में नेताजी पालकर का निर्देशन किया. बाद में उन्होंने तीन-चार लोगों के साथ मिलकर प्रभात फिल्म कंपनी की स्थापना की. शुरू में वे पेंटर से काफी प्रभावित रहे और उन्हीं की तरह पौराणिक और ऐतिहासिक फिल्में बनाते रहे.

वहीं उनके बारे में कहा जाता है कि वे एक बार जर्मनी गए, जहां उनकी सिनेमाई दृष्टि को नई दिशा मिली. उसके बाद उन्होंने गंभीर और सामाजिक फिल्मों की तरफ रुख किया. इस दौरान उन्होंने ‘दुनिया ना माने आदमी’, ‘पड़ोसी’ आदि फिल्में बनाईं. ये बात साल 1942 की है जब प्रभात कंपनी के पार्टनर अलग होकर शांताराम ने उसी साल राजकमल कलामंदिर की स्थापना की.

यहां से उनका एक नया और शानदार दौर शुरू हुआ जो अगले कई दशकों तक जारी रहा. उस दौरान उन्होंने कई बेहतरीन फिल्में बनाई. इन फिल्मों में ‘शकुंतला’, ‘डॉ कोटनीस की अमर कहानी’, ‘जीवन यात्रा’, ‘झनक झनक पायल बाजे’, ‘नवरंग’, ‘सेहरा’, जल बिन मछली-नृत्य बिन बिजली, दो आंखें बारह हाथ आदि शामिल हैं.

दादा साहब फाल्के पुरस्कार और पद्म विभूषण

शांताराम का सफर मान-सम्मान भरा रहा. साल 1985 में फिल्म जगत में योगदान को देखते हुए भारत में फिल्म जगत के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार और पद्म विभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया. छह दशक के फिल्मी सफर में उन्होंने ऐसी फिल्में बनाई जो अमर हो गई. 30 अक्टूबर साल 1990 में 88 साल की उम्र में फिल्म जगत के ऐसे कलाकार ने अलविदा कह दिया था, जिनकी बनाई हुई फिल्में नई पीढ़ी के लिए धरोहर है.

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