ग्राउंड रिपोर्ट में खुलासा: पीएम आवास योजना के पैसे लेकर लोग नहीं बना रहे घर

ग्राउंड रिपोर्ट में खुलासा: पीएम आवास योजना के पैसे लेकर लोग नहीं बना रहे घर

प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत 2022 तक देश में सभी को छत देने की बात कही जा रही है. इसके लिए लक्ष्य और उसके पूरा होने के आंकड़े भी पेश किए जा रहे हैं, लेकिन जमीन पर हकीकत क्या है, उसे देखकर आप दंग रह जाएंगे. सरकार मकान बनाने के लिए गरीबों के खाते में पैसे डाल रही है, लेकिन लोग पैसे लेकर खर्च कर लेते हैं. किसी ने उस पैसे से मोटरसाइकल खरीद ली तो कोई दूसरी पत्नी ले आया. मकान के नाम पर कहीं पत्थरों का टीला है तो कहीं झोपड़ियां. परेशान सरकार अब लोगों पर मुकदमा दर्ज करवाने की धमकी दे रही है. अब तक 80 गरीबों के खिलाफ मुकदमा दर्ज भी किया गया है.

2022 तक सबको घर देने का वादा

देश में पहले गरीबों को मकान देने के लिए इंदिरा अवास योजना चलती थी, जिसका 2015 में नाम बदलकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री आवास योजना रख दिया और ऐलान हुआ कि 2022 तक सभी के सिर पर छत होगी. इसके लिए योजना बनी कि सरकारी विभागों से घर बनाकर देने के बजाए खुद जरुरतमंद को उसके खाते में पैसे जमा करवाया जाए. कुल एक लाख 48 हजार का पैकेज एक कमरा, एक स्टोर, एक रसोई और एक चबूतरा के लिए दिया जाने लगा. सरकार की मानें तो हर तरफ घर बन रहा है, लेकिन सच जानने के लिए आजतक ने जयपुर में इसकी पड़ताल की.

पैसे मिलने के बावजूद नहीं बनाया घर

जयपुर से 40 किमी. दूर फागी कस्बे में कागजों के अनुसार प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत चार घर बने हैं. लेकिन सच्चाई ये है कि एक भी घर नहीं बना है. 45 साल के एहसान के तीन बच्चे हैं, सभी मिलकर मजदूरी करते हैं और डंडे में कपड़े की छत बनाकर रहते हैं. मार्च 2017 में एहसान को मकान बनाने के लिए तीस हजार रुपये की पहली किश्त मिली थी और नवंबर 2017 में 90 हजार की दूसरी किश्त भी मिल गई. लेकिन पैसे मिलते ही सारे पैसे खर्च कर डाले और अब भी उसी झोपड़ी में रह रहे हैं जहां पहले रह रहे थे.

सरकारी अधिकारियों ने दी मुकदमा दर्ज करने की धमकी

वहीं एक और घर ऐसा है जिन्हें पहली किश्त नवंबर 2017 में मिली और दस दिन के अंदर ही सारे पैसे निकाल लिए. घर बनाने के नाम पर एक ईंट भी नहीं रखी. अब सरकारी अधिकारी मुकदमा दर्ज करवाने की धमकी दे रहे हैं तो उनका कहना है कि पैसे रखे हैं, लेकिन पत्थर-बजरी पर रोक की वजह से घर नहीं बन रहा है.

बीमारी के इलाज में खर्च किए मकान के पैसे

इसी तरह जयपुर जिले के पाटन के भीमा राम सैनी ने पैसे लेकर खर्च कर लिए और अब भी किराए के घर में रह रहे हैं. नवीन को पहली किश्त मिली लेकिन उन्होंने भी घर बनाने के बजाए खर्च कर डाले. अब उनका कहना है कि साढ़े बाइस हजार की पहली किश्त मिली थी वो बीमारी के इलाज में खत्म हो गए. अब सरकार कह रही है कि पहली किश्त का काम दिखाओ तो पैसे मिलेंगे.

पैसे का हिसाब मांगने पर अधिकारियों को मिली धमकी

वहीं राजस्थान के ग्रामीण विकास मंत्री राजेंद्र राठौड़ का कहना है कि कुछ जगहों पर ऐसी समस्या है जिसे हमने दूर करने की कोशिश की है. मंत्री जी चाहें जो कहें लेकिन नाम नहीं बताने की शर्त पर अधिकारी कह रहे हैं कि कई जगह पर पैसे का हिसाब मांगने या देखने जा रहे हैं तो गांव वाले पीटने तक की धमकी देकर भगा दे रहे हैं. रामकिशोरपुरा में अधिकारी ने मकान शुरू कराने के लिए कहा तो बलात्कार के झूठे मुकदमे तक में फंसाने की धमकी दे डाली.

पैसा मिलने के बाद भी 36 फीसदी आवास का अता-पता नहीं

राजस्थान में 2016-17 में गरीबों के 2 लाख 50 हजार 58 आवास बनाने का लक्ष्य था. जिनमें से सरकार ने 2 लाख 50 हजार 15 आवास बनाने के लिए लोगों के खाते में पैसे डाल दिए, लेकिन इसमें से केवल एक लाख 59 बजार 102 लोगों ने ही तीसरी किश्त ली. यानी 36 फीसदी आवास का कोई अता-पता नहीं है. जबकि नियम के अनुसार एक साल के अंदर मकान बनना जरूरी है.

17 फीसदी लोगों ने बनाए मकान

2017-18 के आंकड़े तो और भी हैकान करने वाले हैं. 2017-18 में 2 लाख 23 हजार 629 लोगों के मकान बनाने का लक्ष्य था. जिसमें से 2 लाख 15 हजार 347 लोगों के खाते में सरकार ने पहली किश्त डाल दी है, लेकिन उनमें से मात्र 36 हजार 786 लोगों ने तीसरी किश्त ली है. यानी मात्र 17 फीसदी लोगों ने मकान पूरे किए हैं.

कुछ जिलों के हालात तो बेहद चिंताजनक है. इसमें मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का घर धौलपुर और इस योजना के मुखिया ग्रामीण विकास मंत्री राजेंद्र राठौड़ का चुनाव क्षेत्र भी है. गौरतलब है कि ये वो जिले हैं, जहां सबसे ज्यादा गरीब रहते हैं.

जिला मकान के लिए पैसे मिले मकान पूरे हुए

जैसलमेर – 3022 374

बाड़मेर – 18510 1076

सवाईमाधोपुर – 4774 336

धौलपुर – 2068 250

दौसा – 5866 489

उदयपुर – 25336 1599

प्रतापगढ़ – 11556 401

डूंगरपुर – 15043 1096

चूरु – 4801 697

राजसमंद – 4612 126

करौल- 2984 67

कुछ मामले तो ऐसे हैं कि लोग दीवार उठाकर टीन की चादर डाल रहे हैं. दीवार उठाने पर 90 हजार रुपये मिलते हैं, लेकिन लोग छत नहीं डालते हैं. क्योंकि छत डालने के बाद केवल 30 हजार रुपये ही मिलते हैं. फागी के ही अशोक ब्रह्मभट्ट को दो किश्त मिल गई हैं लेकिन उसके बाद उन्होंने छत डालने के बजाए टीम टप्पर डाल लिया है. उनकी पत्नी टीकू का कहना है कि अब आगे की किश्त मिल जाए तो छत भी डलवा लूंगी. इसी तरह संतोषी का भी हाल है. संतोषी को 2016 में पैसे मिले थे. छत तो डाल लिए मगर शौचालय बनाने के पैसे नहीं हैं तो आखिरी किश्त भी नहीं मिल रही है. लिहाजा अब भी अपनी झोपड़ी में रह रही हैं.

इस योजना का फायदा ज्यादातर वही लोग उठा रहे हैं जो अपना घर बनाने में सक्षम हैं और सरकार से पैसे लेकर बड़ा घर बना रहे हैं. इसमें सरपंच और पंचायत की भूमिका होती है. क्योंकि यही लोग मकान के लिए पैसे देने के लिए नाम आगे भेजते हैं. इनका कहना है कि लोग संपन्न हो चुके हैं मगर 2011 में इनका नाम गरीबी रेखा के नीचे था.

इस तरह के पैसे की लूट से परेशान सरकार ने हर पंचायत में लोगों को समझाने-बुझाने के लिए लोगों की नियुक्ति शुरू की है, जिन्हें अगर मकान पूरे करवाने में सफलता मिलती है तो 2200 रुपये ईनाम मिलेगा.

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