घर में रखा था बहन का शव और गणतंत्र दिवस परेड में पहुंच गए थे राष्ट्रपति

नई दिल्ली : आजाद भारत के लिए अंग्रेजों से लड़ाई लड़ने वाले हमारे महान नेताओं में भारतीय गणतंत्र के प्रति कितना गहरा सम्मान था, ये देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद से जुड़ा ये किस्सा बताता है।

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जानकारी के अनुसार यह किस्सा 60 के दशक का है जब डॉ. राजेंद्र प्रसाद देश के राष्ट्रपति थे। वे हर साल 26 January को आने वाले गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रपति की है सियत से सलामी लेते और देश के इस सबसे बड़े लोकतांत्रिक उत्सव की खुशियां देशवासियों के साथ बांटते। मगर 1960 में एक अनहोनी हो गई।

घर में रखा था बहन का शव और गणतंत्र दिवस परेड में पहुंच गए थे राष्ट्रपति
 
डॉ. प्रसाद की बड़ी बहन भगवती देवी का निधन 26 January से एक दिन पहले 25 January की रात्रि में हो गया। भगवती देवी राजेंद्र बाबू के लिए बड़ी बहन ही नहीं बल्कि मां भी थीं। वे घर में एकमात्र ऐसी सदस्य थीं, जो बड़ी होने के नाते डॉ. राजेंद्र प्रसाद को उनके अदम्य आदर्शवाद और अनुचित नरमी के लिए डांट भी सकती थीं।
भाई-बहन के दृष्टिकोण में काफी अंतर था लेकिन दोनों में प्रगाढ़ स्नेह था। बहन की मृत्यु से राजेंद्र बाबू गहरे शोक में डूब गए। अपनी सबसे निकटस्थ बहन के चले जाने से उन्हें इतना सदमा पहुंचा कि वे बेसुध होकर पूरी रात बहन की मृत्युशैया के निकट बैठे रहे।
 
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धीरे-धीरे सुबह का समय होने लगा लेकिन डॉ. राजेंद्र प्रसाद पलभर के लिए भी वहां से नहीं हटे। रात के आखिरी पहर में घर के सदस्य ने उन्हें स्मरण कराया कि ‘सुबह 26 January है और आपको देश का राष्ट्रपति होने के नाते गणतंत्र दिवस परेड की सलामी लेने जाना होगा।’ इतना सुनते ही उनकी चेतना जाग्रत हो गई और पलभर में सार्वजनिक कर्त्तव्य ने निजी दुख को मानो ढंक लिया।

 
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चंद घंटों बाद सुबह वे सलामी की रस्म के लिए परेड के सामने थे। बुजुर्ग होने के बावजूद वे घंटों खड़े रहे। मगर उनके चेहरे पर न बहन की मृत्यु का शोक था, न ही थकान की क्लान्ति। सलामी की रस्म पूरी करने के बाद वे घर लौटे और बहन की मृत देह के पास जाकर फफककर रो दिए। फिर अंत्येष्टि के लिए अर्थी के साथ यमुना तट तक गए और रस्म पूरी की।
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