चीन का ‘DNA’ ही हो गया खराब, इसलिए ‘PoK कॉरिडोर’ को नहीं मिलनी चाहिए मंजूरी

चीन और भारत दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताएं हैं. भारत एक ऐसी सभ्यता रही है जिसने संपर्क में आने वाली सभी सभ्यताओं के साथ आगे बढ़ने का काम किया. वहीं चीन ने कभी किसी के साथ पार्टनरशिप में नहीं रहा बल्कि बाहरी प्रभाव से बचने के लिए उसने कभी वॉल तो कभी आइरन कर्टेन का सहारा लिया. इसी से निर्धारित होता है इन दोनों देशों का डीएनए जिससे साफ होता है कि चीन के डीएनए में ऐसी खामियां है कि उसके नेतृत्व में किसी गठजोड़ पर भरोसा नहीं किया जा सकता. बात जब CPEC या OBOR की हो तो यह और अहम हो जाता है कि चीन पर भरोसा किया तो प्रभाव अगले सैकड़ों वर्षों तक झेलना होगा.

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आइए जानते हैं क्यों CPEC या OBOR के पक्ष में नहीं खड़ा हो सकता है भारत
1. OBOR इसलिए दुनिया के लिए बड़ा खतरा है क्योंकि यह चीन की तरफ से पहली कोशिश है जिसका असर पूरी दुनिया पर अगले सैकड़ों साल तक पड़ना तय है. OBOR के जरिए चीन एशिया और यूरोप के लिए ड्रेड रूट निर्धारित करने की तैयारी में है.

2. चीन दुनिया का सबसे बड़ा मैन्यूफैक्चरिंग हब है और OBOR की स्थापना हो जाने के बाद उसके लिए अपना मैन्यूफैक्चर्ड माल पूरे यूरोप और एशिया में वितरित करना आसान और फायदेमंद हो जाएगा. वहीं एशिया और यूरोप के बाकी देशों को इस नेटवर्क का इस्तेमाल करने के लिए पहले मैन्यूफैक्चरिंग में चीन को चुनौती देनी होगी.

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3. अमेरिका ने चीन के इस OBOR प्रोजेक्ट का खुल कर विरोध किया है. हालांकि यूरोप फिलहाल इस मुद्दे पर चुप है और वह इस प्रोजेक्ट में अपने लिए आर्थिक पुनर्गठन के मौके तलाश रहा है. उसकी प्राथमिकता मंद पड़ी यूरोपीय अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने की है.

4. चीन के इस प्रोजेक्ट का पाकिस्तान चरण CPEC पाक अधिकृत कश्मीर के क्षेत्र से जाना प्रस्तावित है. लिहाजा इस प्रोजेक्ट से भारत का कश्मीर पर संप्रभु अधिकार का हनन होगा. CPEC को किसी भी तरह की मंजूरी मिलने से न सिर्फ भारत का पक्ष पाक अधिकृत कश्मीर पर दावा कमजोर पड़ेगा बल्कि CPEC कॉरिडोर से पाक अधिकृत कश्मीर का एक हिस्सा पाकिस्तान के प्रभाव क्षेत्र से भी बाहर चला जाएगा.

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5.बीते 3-4 दशकों में चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था को मैन्यूफैक्चरिंग के सहारे दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शुमार कर लिया है. इसके बावजूद चीन को वैश्विक स्तर पर अहमियत इसलिए नहीं मिल पाती क्योंकि उसने आर्थिक विकास के लिए पश्चिमी टेक्नोलॉजी के प्रोटोटाइप और सस्ती मैन्यूफैक्चरिंग के सहारे यह मुकाम हासिल किया है. हालांकि यह पहला मौका है कि OBOR के जरिए चीन की वैश्विक स्तर पर पहली बार वैचारिक स्तर पर अपनी साख जमाने की कोशिश की जा रही है. हालांकि चीन की इस कोशिश के खतरनाक परिणाम आने वाले दशकों में देखने को मिल सकते हैं.

6. मौजूदा वैश्विक राजनीति में एक सच्चाई यह भी है कि चीन जिस क्षेत्र में काम करने के लिए किसी देश के साथ पार्टनरशिप करता है, कुछ ही समय में उस क्षेत्र में चीन अपना वर्चस्व कायम करने की मंशा रखता है. उदाहरण के लिए हाल में जिस तरह से चीन और श्रीलंका के बीच पोर्ट प्रोजेक्ट को बीच में रोक दिया गया चीन के दृष्टिकोण को समझाने के लिए पर्याप्त है.

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