राव जगतसिंह जोधपुर के पहले महाराजा जसवंतसिंह के वंशज थे और रिश्ते में भक्तिमयी मीराबाई के भतीजे लगते थे। वह बलूंदा रियासत के शासक भी थे साथ ही परम वैष्णव भक्त भी थे। वैष्णव रंग में रंगे होने की वजह से वह राजसी ठाठबाट छोड़कर सदैव भगवत भक्ति में लीन रहते थे। मेवाड़ में उन्होंने एक मंदिर का निर्माण भी करवाया था।राव जगतसिंह जोधपुर के पहले महाराजा जसवंतसिंह के वंशज थे और रिश्ते में भक्तिमयी मीराबाई के भतीजे लगते थे। वह बलूंदा रियासत के शासक भी थे साथ ही परम वैष्णव भक्त भी थे। वैष्णव रंग में रंगे होने की वजह से वह राजसी ठाठबाट छोड़कर सदैव भगवत भक्ति में लीन रहते थे। मेवाड़ में उन्होंने एक मंदिर का निर्माण भी करवाया था।  एकबार वर्षाकाल का समय था। चारों और भयानक बारिश हो रही थी। चारों ओर घना अंधेरा छाया हुआ था। उस समय जोधपुर के लोगों ने सूर्य देवता के दर्शन कर व्रत खोलने का संकल्प ले रखा था। उन्हे जब सूर्य देवता के उदय की कोई उम्मीद नजर नहीं आई तो वह चिंतित हो गए। आखिर कुछ लोग जोधपुर नरेश के पास पहुंचे और उन्होंने महाराज से अनुरोध किया कि ' महाराज आप ही हमारे सूर्य हैं यदि आप हाथी पर सवार होकर नगर में लोगों को दर्शन दे देवें, तो आमजन भोजन ग्रहण कर लेंगे।' महाराज ने कहा कि ' आप लोगों की बात तो सही है, लेकिन व्रत तो मैने भी ले रखा है और मेरे लिए भी सूर्यनारायण के दर्शन करना आवश्यक है। उनके उदित नहीं होने से मैं किसके दर्शन करूं? ' अकस्मात उनको राव जगतसिंह का ख्याल आया और वह उनके पास गए।  जगतसिंह उस समय श्रीकृष्ण की पूजा कर रहे थे। पूजा समाप्त होने पर जब जोधपुर नरेश ने उनको अपने आने का प्रयोजन बताया कि उनको सूर्यदेवता के समान सम्मान दिया गया है। भगवान की श्रेणी में अपनी गणना किया जाना जगतसिंह को अच्छा नहीं लगा। उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया और सूर्य देवता से दर्शन देने के लिए विनती करने लगे। भगवान भास्कर ने उनकी विनती सुनी और बादलों को चीरकर प्रगट हो गए। राव जगतसिंह की प्रार्थना का असर देखकर लोग उनकी जय-जकार करने लगे।

एकबार वर्षाकाल का समय था। चारों और भयानक बारिश हो रही थी। चारों ओर घना अंधेरा छाया हुआ था। उस समय जोधपुर के लोगों ने सूर्य देवता के दर्शन कर व्रत खोलने का संकल्प ले रखा था। उन्हे जब सूर्य देवता के उदय की कोई उम्मीद नजर नहीं आई तो वह चिंतित हो गए। आखिर कुछ लोग जोधपुर नरेश के पास पहुंचे और उन्होंने महाराज से अनुरोध किया कि ‘ महाराज आप ही हमारे सूर्य हैं यदि आप हाथी पर सवार होकर नगर में लोगों को दर्शन दे देवें, तो आमजन भोजन ग्रहण कर लेंगे।’ महाराज ने कहा कि ‘ आप लोगों की बात तो सही है, लेकिन व्रत तो मैने भी ले रखा है और मेरे लिए भी सूर्यनारायण के दर्शन करना आवश्यक है। उनके उदित नहीं होने से मैं किसके दर्शन करूं? ‘ अकस्मात उनको राव जगतसिंह का ख्याल आया और वह उनके पास गए।

जगतसिंह उस समय श्रीकृष्ण की पूजा कर रहे थे। पूजा समाप्त होने पर जब जोधपुर नरेश ने उनको अपने आने का प्रयोजन बताया कि उनको सूर्यदेवता के समान सम्मान दिया गया है। भगवान की श्रेणी में अपनी गणना किया जाना जगतसिंह को अच्छा नहीं लगा। उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया और सूर्य देवता से दर्शन देने के लिए विनती करने लगे। भगवान भास्कर ने उनकी विनती सुनी और बादलों को चीरकर प्रगट हो गए। राव जगतसिंह की प्रार्थना का असर देखकर लोग उनकी जय-जकार करने लगे।