जानिए.. एक ऐसी 'भूतिया' जगह, जहां छिपा है अरबों का खजाना पर अंदर न जाना...

जानिए.. एक ऐसी ‘भूतिया’ जगह, जहां छिपा है अरबों का खजाना पर अंदर न जाना…

क्या आप जानते हैं कि देश में एक ऐसी जगह है, जो न केवल भूतिया है बल्कि यहां अरबों का खजाना छिपा हुआ है? देखिए तस्वीरों में।जानिए.. एक ऐसी 'भूतिया' जगह, जहां छिपा है अरबों का खजाना पर अंदर न जाना...

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हम बात कर रहे हैं, हरियाणा के रोहतक जिले में मौजूद सदियों पुरानी एक बावड़ी के बारे में। अभिलेखगारों के अनुसार, इस बावड़ी में अरबों का खजाना दफन है, लेकिन जो भी अंदर गया, वो वापस लौटा नहीं। इसलिए इसे ‘चोरों की बावड़ी’ या ‘स्वर्ग का झरना’ भी कहा जाता है। आगे की स्लाइड में जानिए इसका पौराणिक इतिहास।

बावड़ी में लगे फारसी भाषा के एक अभिलेख के अनुसार इस स्वर्ग के झरने का निर्माण उस समय के मुगल राजा शाहजहां के चैबदार सैद्यू कलाल ने 1069 एएच यानि 1658-59 एडी में करवाया था। यह बावड़ी विशाल है। इसमें एक कुआं है जिस तक पहुंचने के लिए 101 सीढिय़ां उतरनी पड़ती हैं। इसमें कई कमरे भी हैं, जो कि उस जमाने में राहगीरों के आराम के लिए बनवाए गए थे।

इस बावड़ी को ज्ञानी चोर की बावड़ी के नाम से जाना जाता है। लोगों का कहना है कि ज्ञानी चोर एक शातिर चोर था जो धनवानों का लूटता और इस बावड़ी में छलांग लगाकर गायब हो जाता और अगले दिन फिर राहजनी के लिए निकल आता था। लोगों का यह अनुमान है कि ज्ञानी चोर द्वारा लूटा गया सारा धन इसी बावड़ी में मौजूद है। लोक मान्यताओं के अनुसार ज्ञानी चोर का अरबों का खजाना इसी में दफन है।

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स्थानीय लोगों की मानें तो इसमें सुरंगों का जाल है जो कि दिल्ली और लाहौर तक जाता है। मगर रहस्य आज भी बरकरार है। जानकारों का कहना है कि इस पर फारसी भाषा में ‘स्वर्ग का झरना’ लिखा हुआ है। किवदंती है कि अंग्रेजों के समय में एक बारात सुरंगों के रास्ते दिल्ली जाना चाहती थी। कई दिन बीतने के बाद भी सुरंग में उतरे बाराती न तो दिल्ली ही पहुंच पाए और न ही वापस निकले।

लोकप्रिय हो चुकी बावड़ी जमीन में कई फुट नीचे तक बनी हुई है। इसमें एक कुआं है। कुएं के उपरी सिरे पर एक पत्थर लगा हुआ है। लोगों का मानना है कि इसमें अरबों का खजाना है। सरकार द्वारा उचित देखभाल न किए जाने के कारण यह बावड़ी मिट्टी में मिलने को बेताब है। इसके बुर्ज व मंडेर गिर चुके हैं। कुएं के अंदर स्थित पानी काला पड़ चुका है। पानी के अंदर गंदगी व अन्य तरह की वस्तुएं तैरती हुई देखी जा सकती हैं।

हने को तो ये बावड़ी पुरातत्व विभाग के अधीन है मगर 352 सालों से कुदरत के थपेड़ों ने इसे कमजोर कर दिया है। जिसके चलते इसकी एक दीवार गिर गई है और दूसरी कब गिर जाए इसका पता नहीं। लोगों का कहना है कि इतिहासकारों को चाहिए कि बावड़ी से जुड़ी लोकमान्यताओं को ध्यान में रखकर अपनी खोजबीन फिर नए सिरे से शुरू करें ताकि इस बावड़ी की तमाम सच्चाई जमाने के सामने आ सके।

यदि सरकार व पुरात्तव विभाग महम की इस ऐतिहासिक जगह के सौंदर्यीकरण पर ध्यान दे तो यह जगह पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बन सकती है। शहरवासियों  का कहना है कि ऐतिहासिक जगह होते हुए भी केन्द्र व प्रदेश सरकार का कोई भी विभाग इस ओर ध्यान नहीं दे रहा है।

 

 

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