नई दिल्ली. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस्पात के आयात पर 25 प्रतिशत और एल्यूमीनियम पर 10 प्रतिशत शुल्क लगाने संबंधी आदेश पर हस्ताक्षर कर दिए हैं. ट्रंप के इस कदम से वैश्विक व्यापार युद्ध छिड़ सकता है. चीन सहित दुनिया के कई देशों ने ट्रंप प्रशासन के इस कदम की आलोचना की है. अमेरिका का यह विवादित शुल्क 15 दिन के भीतर ही अमल में आ गया है.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, अमरिका में इस्पात और एल्यूमीनियम के आयात पर शुल्क लगाने के इस कदम से शुरुआती तौर पर चीन से होने वाला आयात प्रभावित होगा. बहरहाल, केवल दो देशों कनाडा और मैक्सिको को ही इससे छूट दी गई है. यह छूट भी तब तक ही होगी जब तक कि उत्तरी अमेरिका मुक्त व्यापार समझौता ( नाफ्टा) को लेकर बातचीत पूरी नहीं हो जाती है.

ट्रंप ने इस आदेश पर हस्ताक्षर करने के बाद कहा कि अन्य देशों को यदि वह इस्पात और एल्यूमीनियम आयात शुल्क से छूट चाहते हैं तो उन्हें अमेरिका के व्यापार प्रतिनिधियों( यूएसटीआर) से बातचीत करनी होगी. अमेरिका का कहना है कि यदि शुल्क अमेरिकी शुल्कों के अनुरूप नहीं होते हैं तो वह चीन और भारत जैसे देशों पर उन्हीं के अनुरूप शुल्क थोपेगा. इससे पहले व्यापार नीतियों को लेकर विवाद के बाद ट्रंप के शीर्ष आर्थिक सलाहकार कोहेन का इस्तीफा दे दिया था.

दूसरे देश भी लगा सकते हैं शुल्क 

बहरहाल, अमेरिका ने इस्पात और एल्यूमीनियम पर जो आयात शुल्क लगाया है. इसके जवाब में अमेरिका के बड़े व्यापारिक भागीदारी यूरोपीय संघ और चीन भी शुल्क लगा सकते हैं. ऐसे में पूरे विश्व में व्यापारिक युद्ध छिड़ने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है.

चीन ने भी दी चेतावनी 

चीन ने कहा है अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के इस कदम से व्यापार युद्ध छिड़ सकता है. इसमें सभी को नुकसान होने वाला है. चीन के विदेश मंत्री वांग यी का कहना है कि व्यापार युद्ध छेड़ना वास्तव में गलत है. अंत में आप दूसरों को तो नुकसान पहुंचाएंगे ही, साथ ही खुद को भी नुकसान पहुंचेगा. चीन इस पर उचित और जरूरी प्रतिक्रिया देगा. चीन ने कल विश्व व्यापार संगठन में 18 सदस्य देशों की अगुवाई करते हुए ट्रंप से इस प्रस्तावित शुल्क को रद्द करने की मांग की थी.

भारत पर भी पड़ेगा असर

इस्पात कंपनियों का संगठन इंडियन स्टील एसोसिएशन( आईएसए) ने अमेरिका के इस्पात और अल्यूमीनियम पर आयात शुल्क बढ़ाने के कदम को लेकर चिंता जतायी है. संगठन का कहना है कि इससे अत्याधिक इस्पात बनाने वाले देश भारत जैसे देशों में अपना इस्पात निर्यात बढ़ाएंगे, क्योंकि इन दिनों भारत में इस्पात की अच्छी मांग है. इससे स्थानीय उत्पादकों पर प्रभाव पड़ेगा.