डायरी दिनांक 25.02.2017: गुरु माँ की डायरी से जानें अपने गुरु को

24 फरवरी 17….कल रात्रि 12 .30 बजे , “अरे बेटा स्वेटर पहनो, बाहर खुले में काम कर रहे हो,” श्रीगुरुजी ने आश्रम में घुसते ही शिवरात्रि की तैयारी कर रहे बच्चों से कहा। बच्चों का उत्साह देख वे आनंदित भी हो रहे थे।भोजन के उपरांत वे सोने चले गए।तकरीबन 3.30बजे मैं कक्ष में पहुंची…मेरी आहट सुनते ही ये बोले,” सारे बच्चे सो गए?” ” अरे! मैं समझ रही थी कि आप सो रहे हैं,” मैंने चौंक कर कहा।
” जिसके बच्चे जग कर काम कर रहे हों, वह पिता क्या सो सकता है? माँ का प्रेम बच्चों को दिखता है, इसलिए वे माँ के ज़्यादा करीब होते हैं पर पिता भी कम नहीं करता ।” ये बोले।
” अच्छा जी, मेरे और बच्चों के बीच के प्रेम से जलन हो रही है…!” जवाब में ये सिर्फ मुस्कुराये…। हलांकि समय उचित नहीं था पर इनके मुस्कुराने से मैंने मौके का फायदा उठाते हुए पूछा,” कल आप studio जाएंगे क्या?”
” हाँ, सुबह ही निकल जाऊँगा और आते आते शाम हो जायेगी।”
” जी अच्छा….”।
उनका यह schedule सुनकर मैं खुश हो गयी…जानते हैं क्यों?
दरअसल, श्रीगुरुजी को देखते ही, हम सब के मन में प्रश्न घुमड़ने लगते हैं और वे उन प्रश्नों के उत्तर देने लगते हैं….यह सिलसिला चलता ही रहता है …मुझ यह सिलसिला अच्छा भी लगता है पर किसी आयोजन के समय इस प्रश्नोत्तर के कारण मेरे काम अधूरे रह जाते हैं…इसलिए हम चाहते हैं कि जब तक सारा काम सिमट न जाए, तब तक ये बाहर ही व्यस्त रहें।
आखिर मंच सजने के बाद ही विशिष्ट जन का पदार्पण अच्छा लगता है…

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