तो इस वजह से पीरियड्स के दौरान मंदिर नहीं जाती महिलाएं, कारण है चौंकाने वाला

हमारे समाज मे कई ऐसे रिवाज हैं जिसे हम दूसरों को निभाते देख अपनी जिंदगी में भी उतार लेते हैं. इन रिवाजों को गहराई से जानने में लोग संकोच करते हैं तो कुछ का कहना होता है कि ये रिवाज़ पुर्वजों के समय से चलता आ रहा है.अगर हम इसका विरोध करें तो पितरों का अपमान होगा.
इन्ही रीति-रिवाजों में से एक है – पीरियड्स के दौरान महिलाओं का मंदिर में प्रवेश निषेध! पढ़े-लिखे लोग यही मानते हैं कि मासिक धर्म अर्थात पीरियड के पीछे वैज्ञानिक कारण हैं पर इस समाज मे पीरियड से जुड़ी कई कहानियां हैं जिसे सुनकर आपको भी भरोसा नही होगा कि इस तरह की दकियानूसी बात सिर्फ हिन्दू धर्म ही नही बल्कि, तमाम धर्मो में देखी जाती है. आइये जानते हैं आखिर क्यों पीरियड के दौरान लड़कियां मंदिर नही जा पाती…

द्रौपदी ने की इसकी शुरुआत
महाभारत से ज्ञात होता है कि जब युधिष्ठिर चौपड़ के खेल में दुर्योधन के सामने पराजित हो गए तो आखिरी में उन्होंने द्रौपदी को भी दाव पर लगा दिया और हर गए. इस जीत पर दुशासन द्रौपदी को ढूंढते हुए उनके सयन कक्ष में जा पहुँचा पर पांडवो की पत्नी अनुपस्थित थी. ऐसा बताया जाता है कि उस समय द्रौपदी के मासिक धर्म चल रहे थे जिस वजह से वह पूरा समय एक अलग वस्त्र पहन कर दूसरे कक्ष में रहती थी. उसके अनुसार पीरियड के दौरान स्त्री का शरीर अपवित्र होता है.

इंद्रदेव के कर्मो की सजा महिलाओं को
पीरियड से जुड़ी एक और रोचक घटना है जो कि पौरणविक कथाओं में अक्सर देखने को मिलती है. भगवत कथा में एक ऐसी ही घटना का वर्णन मिलता है जब, सम्पूर्ण देवलोक के गुरु बृहस्पति देवराज इंद्र से नाराज हो गए. देवताओं में पड़े इस फुट का फायदा उठाते हुए दानवों ने देवलोक पर धावा बोल दिया और इंद्र अपना राजपाट गवां बैठे. इस संकट की घड़ी में उन्हें ब्रह्मा के अलावा और कोई नही बचा सकता था. यही सोचकर वे ब्रह्मा से मदद की गुहार करने लगे. ऐसा पता चलता है कि उस दिन ब्रह्मा ने इंद्र को किसी ब्राह्मण की सेवा करने का परामर्श दिया जिससे देवलोक के गुरु बृहस्पति प्रसन्न हो सकें. परामर्श के अनुसार इंद्र एक ब्रह्मज्ञानी की सेवा में जुट गए तभी इस बात की खबर हुई कि वह ब्रह्मज्ञानी एक असुर माता की कोख से पैदा हुआ है. इसलिए, वह असुरों का समर्थन भी करता है. इस सच्चाई को जानने के बाद इंद्र आग बबूला हो गए और उस ब्राह्मण की हत्या कर दी.

चूंकि इस सेवा भाव मे वह उनके शिष्य बन चुके थे और गुरु हत्या एक घोर पाप होता है. इसलिए ब्राह्मण की आत्मा ने एक भयानक राक्षसी का रूप धारण किया और इंद्र के खून की प्यासी होकर भटकने लगी. उसके प्रकोप से बचने के लिए इंद्र ने एक फूल में शरण ली और 1 लाख वर्षों तक भगवान विष्णु की साधना में लीन रहे. भगवान विष्णु के प्रसन्न हो जाने पर उनका आधा पाप तो धूल गया पर आधा पाप अभी भी उनके सिर पर था.

सबको मिली ये सजा
इस दफा इंद्र ने जल, पेड़, भूमि और स्त्री इन चारों से मदद मांगी और पाप को रखने की गुजारिश की. सभी इस सज़ा के लिए मान तो गए पर बदले में कुछ वरदान की भी इच्छा जाहिर करने लगे. तब इंद्र ने जल को सदैव पवित्र रहने का वरदान दिया. पेड़ को दुबारा खड़ा होने का वरदान मिला और धरती को हर तरह के चोट सहने की शक्ति मिली. तो स्त्री को मिला काम का सबसे ज्यादा आनंद पाने की क्षमता इसीलिए काम-वासना से स्त्रियां ज्यादा खुश होती हैं. लेकिन वरदानों के बदले पाप लेने की भी शर्त रखी गयी थी जिस वजह से पानी के ऊपरी झाग को अपवित्र माना जाता है, पेड़ झुक नही पाते, धरती बंजर रह जाती है तो स्त्रियों को उन्ही पाप को ग्रहण करने की वजह से पीरियड आता है.

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