दिल्ली में बिना टेंडर 1000 बसें चलाने की तैयारी, एक साल में 50 लाख किराया

नई दिल्ली। दिल्ली सरकार राजधानी में बगैर टेंडर के एक हजार लो फ्लोर बसें किराये पर लेने की तैयारी कर रही है। इसके लिए एसोसिएशन ऑफ स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट अंडरटेकिंग्स (एएसआरटीयू) द्वारा निर्धारित दरों पर जेबीएम कंपनी को काम सौंपा जा रहा है। आरोप है कि प्रस्ताव में भारी अनियमितताओं के कारण परिवहन सचिव व आयुक्त वर्षा जोशी ने परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत के कार्यालय द्वारा तैयार किए गए इस प्रस्ताव के मिनट्स जारी करने से इन्कार कर दिया है। जिसके कारण उन्हें निशाना बनाया जा रहा है।

इस मसले पर पंडारा रोड स्थित अपने निवास पर प्रेसवार्ता कर दिल्ली विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजेंद्र गुप्ता ने आरोप लगाया कि दिल्ली सरकार द्वारा परिवहन के क्षेत्र में बड़े घोटाले की तैयारी कर ली गई है। विपक्ष इस मुद्दे को विधानभा में उठाएगा और सरकार और प्राइवेट कंपनी द्वारा किए जाने वाले करार को रद किए जाने की मांग करेगा। उन्होंने कहा कि परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत प्राइवेट कंपनी मैसर्स जेबीएम ऑटो लिमिटेड से 1000 लो फ्लोर बसें 14,000 रुपये प्रतिदिन किराये पर लेने की योजना को अंतिम रूप दे चुके हैं। इस प्रकार कंपनी को प्रति बस 4.20 लाख रुपये प्रतिमाह किराया देना होगा। इस तरह एक वर्ष में 50.40 लाख रुपये देने होंगे। इस प्रकार वर्ष में 70 लाख रुपये की बस पर सरकार लगभग 5 करोड़ रुपये प्राइवेट कंपनी को देगी।

कंपनी की यह भी शर्त स्वीकार की गई है कि कंडक्टर का वेतन, सीएनजी पर व्यय तथा जीएसटी सहित सभी कर सरकार द्वारा वहन किए जाएंगे। साथ ही यह शर्त भी स्वीकार की गई है कि इन बसों का पंजीकरण डीटीसी और जेबीएम कंपनी के नाम में होगा। चूंकि डीटीसी इन बसों की सह-मालिक होगी तथा परमिट डीटीसी के नाम में होगा। इन बसों को 10,000 रुपये प्रतिमाह प्रति बस की फीस से भी मुक्त रखा जाएगा।

विजेन्द्र गुप्ता का आरोप है कि इस प्रस्ताव का विरोध परिवहन सचिव वर्षा जोशी ने किया। उन्होंने मंत्री के कार्यालय द्वारा जिस बैठक में इस अवैध प्रस्ताव को तैयार किया गया उसके मिनट्स जारी करने से इन्कार कर दिया। इसके बाद उनके खिलाफ जमकर भड़ास निकाली जा रही है। वहीं इस बारे में पक्ष लेने के लिए परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत के मोबाइल नंबर पर संदेश भेजा गया तथा उन्हें फोन भी किया गया। मगर उनकी ओर से कोई जवाब नहीं आया।

विजेन्द्र गुप्ता के अनुसार कंपनी का प्रस्ताव परिवहन विभाग की ओर से आना चाहिए था। मगर कंपनी ने जून में सीधे दिल्ली सरकार को सीएनजी आधारित एसी तथा नॉन एसी बसें किराये पर देने की पेशकश की। कंपनी की पेशकश को परिवहन मंत्री द्वारा बिना टेंडर स्वीकार कर लिया गया। यह वित्तीय नियमों का उल्लंघन है। कंपनी को इतनी बड़ी संख्या में बसों का निर्माण करने और चलाने का अनुभव भी नहीं है।

कंपनी की मात्र 50 बसें ही चल रही हैं

इस कंपनी की पूरे भारत में मात्र 50 बसें सिर्फ नोएडा में चल रही हैं। यह बसों को बनाने वाली एक नई कंपनी है। जबकि टाटा, लेलैंड, वोल्वो, महेन्द्रा व आयशर जैसी कंपनियां लंबे समय से बसें बना रहीं हैं। बावजूद इन्हें नहीं पूछा गया। जिस प्रकार एक नई कंपनी को बिना टेंडर के काम सौंपा जा रहा है, उसमें भ्रष्टाचार की बू आ रही है।

परिवहन मंत्री ने बनाया दबाव

आरोप है कि परिवहन मंत्री गहलोत अधिकारियों पर इस प्रस्ताव को स्वीकार करने के लिए भारी दबाव बना रहे हैं। मंत्री ने इस मसले पर पहले 27 जुलाई को बैठक की फिर 31 जुलाई को फिर से बैठक की। जिसमें इस प्रस्ताव पर मना करने के बाद भी मंत्री ने अधिकारियों पर आदेश स्वीकार करने का दबाव बनाया। इस 5 हजार करोड़ के प्रोजक्ट के लिए परिवहन विभाग को 3 कार्य दिवस के अंदर कैबिनेट नोट तैयार करने को कहा गया।

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