ग्रामीण सुल्तान मिस्त्री व रियाज मुहम्मद का कहना है कि नरसंहार को 10 वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन आज भी इसका जिक्र होते ही कलेजा कांप उठता है। शबनम उच्च शिक्षित होने के साथ ही शिक्षामित्र भी थी। इसके बावजूद उसके इस तरह खौफनाक वारदात को अंजाम देना माफी योग्य नहीं है। शबनम और सलीम दोनों को फांसी की सजा हो चुकी है जिनकी रिवीजन याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। फिलहाल दोनों जेल में बंद हैं।

नरसंहार का दंश : अमरोहा के एक गांव में दस वर्ष से शबनम व सलीम नाम से तौबा

प्रदेश के साथ ही देश को दहला देने वाले एक नरसंहार का ही दंश है कि अमरोहा में लोगों को अब शबनम व सलीम के नाम से ही नफरत हो गई है। यहां के एक गांव के लोगों को तो अब इन दोनों नाम से काफी भय लगता है।ग्रामीण सुल्तान मिस्त्री व रियाज मुहम्मद का कहना है कि नरसंहार को 10 वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन आज भी इसका जिक्र होते ही कलेजा कांप उठता है। शबनम उच्च शिक्षित होने के साथ ही शिक्षामित्र भी थी। इसके बावजूद उसके इस तरह खौफनाक वारदात को अंजाम देना माफी योग्य नहीं है। शबनम और सलीम दोनों को फांसी की सजा हो चुकी है जिनकी रिवीजन याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। फिलहाल दोनों जेल में बंद हैं।

दस वर्ष पहले अमरोहा के बावनखेड़ी में इकलौती बेटी शबनम ने अपने प्रेमी सलीम के साथ मिलकर माता-पिता समेत परिवार के सात लोगों की गला रेतकर हत्या कर दी थी। इस नरसंहार के बाद से आज तक गांव में किसी ने बच्चों का नाम शबनम और सलीम नहीं रखा। नरसंहार का जिक्र सुनकर आज भी यहां पर लोगों का कलेजा कांप उठता है। 

हसनपुर से अमरोहा बस से आते व जाते समय लोग बावनखेड़ी पहुंचने पर आज भी मार्ग किनारे यहां मास्टर शौकत अली की खूनी कोठी को देखते हैं तो उनके रोंगटे खड़े हो जाते हैं। 14 अप्रैल 2008 की रात को परिवार की बेटी शबनम ने अपने प्रेमी सलीम के साथ मिलकर पिता मास्टर शौकत अली, मां हाशमी, भाई अनीस व राशिद, भाभी अंजुम, फुफेरी बहन राबिया और 11 माह के भतीजे अर्श की गला रेत कर हत्या कर दी थी।

इसके बाद से हसनपुर का शांति प्रिय गांव बावनखेड़ी देशभर में सुर्खियों में आ गया था। मास्टर शौकत के दोस्त और पड़ोसी हशमत अली का कहना है कि घटना के बाद से गांव में किसी ने बच्चों का नाम शबनम और सलीम नहीं रखा है। पहले यह नाम आम होते थे। पड़ोसी रईस अहमद का कहना है कि शबनम सलीम नाम रखना तो दूर क्षेत्र में बहुत से लोगों ने पहले से रखे हुए ये नाम बदल दिए हैं।

ग्रामीण सुल्तान मिस्त्री व रियाज मुहम्मद का कहना है कि नरसंहार को 10 वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन आज भी इसका जिक्र होते ही कलेजा कांप उठता है। शबनम उच्च शिक्षित होने के साथ ही शिक्षामित्र भी थी। इसके बावजूद उसके इस तरह खौफनाक वारदात को अंजाम देना माफी योग्य नहीं है। शबनम और सलीम दोनों को फांसी की सजा हो चुकी है जिनकी रिवीजन याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। फिलहाल दोनों जेल में बंद हैं। 

 
 
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