नैतिकता बनाम समलैंगिकता: इस तरह समझें पूरी कहानी, क्या है इसका इतिहास और क्या हैं इसका मतलब…

सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले ने आपसी सहमति से दो समलैंगिकों के बीच बनाए गए संबंध को आपराधिक कृत्य से बाहर कर दिया है। जुलाई, 2009 में स्थापित सामाजिक मान्यताओं से हटकर अपने महत्वपूर्ण फैसले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने वयस्कों के बीच सहमति से बनाए जाने वाले समलैंगिक संबंधों को वैध घोषित कर दिया था। समलैंगिक समुदाय में शीर्ष अदालत के ताजा फैसले को लेकर खळ्शी की लहर है। इस फैसले ने समाज में बरसों से चली आ रही नैतिकता बनाम समलैंगिकता की बहस को एक तरह से खत्म कर दिया है।

समलैंगिकता का इतिहास
समलैंगिकता का उल्लेख कई प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। वात्सायन द्वारा लिखे गए कामसूत्र में बाकायदा इस पर एक अध्याय लिखा गया है।
कानून: समलैंगिकता के खिलाफ अंग्रेजों ने धारा 377 को 1860 में लागू किया था। 158 साल पुराने इस कानून के द्वारा समलैंगिकता को गैरकानूनी बताया गया है।
पहला मामला: अविभाजित भारत में वर्ष 1925 में खानू बनाम सम्राट का समलैंगिकता से जुड़ा पहला मामला था। उस मामले में यह फैसला दिया गया कि यौन संबंधों का मूल मकसद संतानोत्पत्ति है लेकिन अप्राकृतिक यौन संबंध में यह संभव नहीं है।
मुखर होता आंदोलन: 2005 में गुजरात के राजपिपला के राजकुमार मानवेंद्र सिंह ने पहला शाही ‘गे’ होने की घोषणा की।

– समय समय पर मायानगरी में ‘माई ब्रदर निखिल’ ‘हनीमूंस ट्रेवल प्रा लिमिटेड’ दोस्ताना’ जैसी फिल्में इसी विषय पर बनीं।

– 2008 में जोल्टन पराग ने मिस्टर गे इंटरनेशनल प्रतियोगिता में हिस्सा लिया।
– 16 अप्रैल 2009 को गे पत्रिका ‘बांबे दोस्त’ को दोबारा शुरू किया गया।

क्या है समलैंगिकता
समान लिंग के प्रति आकर्षण रखने वाले महिला या पुरुष को समलैंगिक माना जाता है क्या है धारा 377 स्वेच्छा से 18 साल से अधिक उम्र का कोई पुरुष, महिला या पशु से अप्राकृतिक यौन संबंध स्थापित करे तो भारतीय दंड संहिता की इस धारा के तहत उसे आजीवन कारावास या दस साल तक कारावास और जुर्माने का प्रावधान है।1935 में पहली बार इसमें संशोधन करके इसका दायरा बढ़ाया गया।

संघर्ष दर संघर्ष
2001 समलैंगिक अधिकारों के लिए लड़ने वाले नाज फाउंडेशन ने जनहित याचिका दायर कर इसे वैध किए जाने की मांग की
2004 02 सितंबर: दिल्ली हाईकोर्ट ने याचिका खारिज की। समलैंगिक कार्यकर्ताओं ने समीक्षा याचिका दायर की
3 नवंबर : हाईकोर्ट ने समीक्षा याचिका खारिज की
दिसंबर : हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर
2006 03 अप्रैल: सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को इस मामले पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया
4 अक्टूबर : समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर किए जाने का विरोध करते हुए वीपी सिंहल ने याचिका दायर की
2008 18 सितंबर: स्वास्थ्य और गृह मंत्रालयों के परस्पर विरोधी हलफनामों पर हाईकोर्ट ने केंद्र को फटकार लगाई। अतिरिक्त समय देने से मना किया
26 सितंबर : केंद्र ने कहा कि समलैंगिकता अनैतिक है। इसे अपराध की श्रेणी से बाहर किए जाने से समाज का नैतिक पतन होगा
15 अक्टूबर: धार्मिक मान्यताओं के आधार पर समलैंगिक संबंधों परप्रतिबंध लगाने की केंद्र की दलील पर हाईकोर्ट नाराज। वैज्ञानिक दृष्टिकोण पेश करने का निर्देश दिया।

7 नवंबर: समलैंगिक कार्यकर्ताओं द्वारा समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर किए जाने वाली याचिका पर हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा
2009 2 जुलाई: सहमति के आधार पर वयस्कों में समलैंगिक संबंधों को हाईकोर्ट ने वैध ठहराया।
9 जुलाई: दिल्ली के एक ज्योतिष शास्त्री ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली। बाद में भाजपा नेता बीपी सिंहल समेत कई धार्मिक संगठनों ने भी इसके विरोध में शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया।
2012 15 फरवरी: मामले में सुप्रीम कोर्ट ने रोजाना की अंतिम सुनवाई शुरू की।
27 मार्च: फैसला सुरक्षित रखा।
2013 11 दिसंबर: सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के निर्णय को पलट दिया। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने 150 साल से अधिक पुराने कानून की धारा 377 पर फैसला करने का सवाल संसद पर छोड़ दिया।
2014 सरकार ने अपने पक्ष में कहा कि मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। इस पर कोई फैसला आने के बाद ही कोई कदम उठाएंगे।
2015 समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर रखने के लिए कांग्रेस नेता शशि थरूर ने लोकसभा में निजी बिल पेश किया। हालांकि उनका बिल बुरी तरह गिर गया।
2016 धारा 377 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देती सुप्रीम कोर्ट में पांच याचिकाएं दाखिल की गईं।
2017 अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में लैंगिक झुकाव को निजता के अधिकार से जोड़कर देखा।

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