पाकिस्तान के लिए नापाक हरकतों का खामियाजा भुगतने का वक्त

हमारा देश लंबे समय से पाकिस्तान-प्रायोजित आतंकवाद के दंश झेल रहा है। अब वक्त आ गया है कि हम इसका तगड़ा प्रतिकार करें और पाकिस्तान को बता दें कि उसे अपनी नापाक हरकतों का खामियाजा भुगतना ही होगा। हम बीते कई वर्षों से लगातार कह रहे हैं कि यह पड़ोसी मुल्क आतंकियों की सुरक्षित पनाहगाह बना हुआ है और आतंकी हरकतों को बढ़ावा दे रहा है। लेकिन हुआ क्या? अब तो लगता है कि पाकिस्तान के साथ-साथ पूरी दुनिया भी हमारी शिकायतों को तवज्जो नहीं दे रही है।

हम चीन के समक्ष भी उस सड़क निर्माण परियोजना को लेकर पर्याप्त दमदार तरीके से विरोध नहीं जता सके, जो कि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) से होकर गुजरने वाली है और पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को चीन से जोड़ेगी। यदि हमारा रवैया ऐसा ही ढुलमुल बना रहा और हम स्थितियों को यूं ही स्वीकार करते रहे तो हम यह उम्मीद नहीं कर सकते कि दुनिया पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर की वापसी की हमारी मांग को गंभीरता से लेगी। अब तो भाजपा कश्मीर में पीडीपी के साथ गठबंधन में भी नहीं कि उसे महबूबा मुफ्ती की बातों की परवाह करनी पड़े।

हालांकि इसके बारे में काफी कुछ लिखा व कहा जा चुका है, लेकिन अब समय आ गया है कि हम उन आतंकी ठिकानों पर कार्रवाई करें जो आतंकियों को प्रशिक्षित करते हैं, उन्हें हथियार मुहैया कराते हैं और कश्मीर में उनकी घुसपैठ कराते हैं। भारत जैसे विशाल आकार व रसूख वाले किसी भी देश को अपने हितों की सुरक्षा और सीमा पार आतंक को हमेशा के लिए रोकने के लिए यही करना चाहिए। हम लगातार उसी एक ‘सर्जिकल स्ट्राइक का ढोल पीटते नहीं रह सकते जो दो साल पहले पीओके में स्थित आतंकी ठिकानों पर की गई थी और जिसमें हम अपना लक्ष्य बखूबी साधने में सफल रहे थे।

अब वास्तव में तमाम आतंक-प्रशिक्षण केंद्रों पर व्यापक रूप से औचक हमला करने की जरूरत है। हाल ही में पेरिस में हुई फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की बैठक में पाकिस्तान को आतंकियों की फंडिंग रोकने में विफल रहने के कारण ग्रे लिस्ट यानी संदिग्ध देशों की सूची में डालने का फैसला किया गया। 37 सदस्य देशों वाले एफएटीएफ ने माना कि पाकिस्तान में निर्बाध ढंग से आतंकी समूह चल रहे हैं और पाकिस्तान सरकार आंख मूंदे बैठी है। आखिर हम औचक हमले करने में इजरायल की महारत का लाभ क्यों नहीं ले सकते?

पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने हाल ही में यह स्वीकारा कि उनकी सेना ने जम्मू- कश्मीर में भारत से लड़ने के लिए आतंकी समूहों को प्रशिक्षित किया। उन्होंने यह भी माना कि पाकिस्तानी सरकार ऐसी गतिविधियों से आंखें मूंदे रही, क्योंकि वह चाहती थी कि किसी तरह भारत को कश्मीर मसले पर बातचीत के लिए विवश किया जाए और साथ ही इस मामले का अंतरराष्ट्रीयकरण भी किया जाए।

मियां मुशर्रफ ने यह भी कहा कि आइएसआइ के पाकिस्तानी जासूसों ने वर्ष 2001 के बाद तालिबान को बढ़ावा दिया, क्योंकि अफगानिस्तान की हामिद करजई सरकार में गैर-पश्तूनों का वर्चस्व था, जो कि उस मुल्क का सबसे बड़ा स्थानीय आबादी समूह है और आधिकारिक तौर पर जिन्हें भारत का समर्थक माना जाता है।

अमेरिकी खुफिया एजेंसी एफबीआइ द्वारा सैटेलाइट से ली गई तस्वीरों से पाकिस्तान में अनेक आतंकी शिविरों के अस्तित्व का पता चलता है। अनेक तटस्थ सूत्रों का भी यही मानना है कि पाकिस्तानी सेना व आइएसआइ के कई अधिकारी इस्लामिक आतंकी समूहों से सहानुभूति रखते हुए उन्हें मदद भी मुहैया कराते हैं। कश्मीर में सक्रिय आतंकी गुटों को भी आइएसआइ गुपचुप मदद मुहैया कराती रहती है। ऐसे में आखिर क्यों हम इन आतंकी अड्डों को निशाना बनाने से हिचक रहे हैं? निश्चित तौर पर अमेरिका के पास वह साधन भी है, जिसके जरिये यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि जब भारत आतंकी अड्डों को निशाना बनाए तो पाकिस्तान के नाभिकीय हथियारों पर पैनी निगाह रखी जा सके। पाकिस्तान हर जगह जो कश्मीर का राग अलापता रहता है, दुनिया अब वास्तव में उसकी ज्यादा परवाह नहीं करती।

एफएटीएफ अब आगे पाकिस्तान का इस आधार पर आकलन करेगा कि वह कितनी गंभीरता से मनी लांड्रिंग, आतंकी फंडिंग को रोकने की दिशा में प्रयास कर रहा है और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय तंत्र के लिए खतरा बनती चीजों से निपटने में मददगार है। इन पैमानों पर यदि यह पाया जाता है कि इस्लामाबाद अंतरराष्ट्रीय मानकों के मुताबिक चलने में नाकाम है तो उसकी मुश्किलें और भी बढ़ जाएंगी। पाकिस्तान की असैन्य सरकार भले ही कहे कि मुंबई हमलों के मास्टरमाइंड हाफिज सईद और उसके संगठन जमात-उद-दावा से उसका कोई लेना-देना नहीं, लेकिन हकीकत तो यह है कि हाफिज को पाकिस्तान की सेना का पूर्ण समर्थन प्राप्त है।

हाफिज सईद की फंडिग रोकने को लेकर एफएटीएफ का जो भी रुख हो, लेकिन पाकिस्तान की सेना ऐसी किसी भी कोशिश को सफल नहीं होने देगी। ऐसे सूरतेहाल में भारत की कोशिश यही होनी चाहिए कि एफएटीएफ की अगली बैठक में पाकिस्तान को ब्लैकलिस्ट कर दिया जाए, क्योंकि वह इस संगठन के फरमान का पालन करने में विफल है। यदि भारत जमकर लॉबिंग करे तो पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंचों पर और अलग-थलग पड़ सकता है।

हालांकि यह पाकिस्तानी सरकार है, जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जिम्मेदार ठहराया जाता है, लेकिन असल मुजरिम यानी पाकिस्तान की सेना तो हत्या कर भी साफ बच निकलती है। दुनिया वास्तव में पाकिस्तान और इसकी आतंकी मशीनरी से तंग आ चुकी है। लिहाजा उसे अपने गुस्से का इजहार पाकिस्तान को आतंकी मुल्क घोषित कर और इसकी आतंकी फंडिंग की तमाम गतिविधियों पर नकेल कसते हुए करना चाहिए। इसके लिए भारत को भी पूरे जोर-शोर से कोशिश करनी चाहिए।

पाकिस्तान की ओर से होने वाली आतंकी हरकतें तभी रुकेंगी, जब उसके यहां मौजूद आतंकी ताने-बाने को ध्वस्त कर दिया जाए। भारत पाकिस्तान के आंतकी शिविरों पर औचक हमले की योजना तैयार करने के साथ-साथ अपने प्रचार-तंत्र को धार दे और कूटनीतिक मोर्चे पर आक्रामक रवैया अख्तियार करते हुए विभिन्न देशों को इसके औचित्य के बारे में समझाए। अब कार्रवाई का वक्त है, जिसका स्पष्ट प्रभाव नजर आए।

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