पीरियड को यहां बीमारी नहीं त्यौहार की तरह मनाते हैं, सदियों पहले टूट चुकी है बेड़ियां

नई दिल्ली: पीरियड के दौरान लड़कियों को भगवान या पूजा-पाठ से दूर रहने को कहा जाता है। ऐसे में अक्सर मेरे मन में एक ख्याल आता है कि जब भगवान श्रीकृष्ण और प्रभु श्रीराम इंसान के रूप में धरती पर जन्मे थे, तो क्या उनकी माताएं मासिक धर्म की अवस्था में उन्हें स्पर्श नहीं करती थी?

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ऐसे में भला भगवान दूसरी स्त्रियों को पीरियड्स के दौरान स्वयं को छूने को कैसे मना कर सकते हैं? देखा जाए तो आज स्त्रियों की जिस चीज को नजरें तिरछी करके देखा जाता है या उनसे इस अवस्था के दौरान दूरी बनाकर रखी जाती है, वास्तव में उसी मासिक चक्र से इंसान का जन्म होता है।

यदि स्त्रियों को मासिक धर्म नहीं होता, तो इंसान नाम के किसी जीव की उत्पत्ति धरती पर नहीं होती। बहरहाल, भीड़ में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो माहवारी के प्रति लोगों को जागरूक करने में लगे हैं, साथ ही वो पुरानी जर्जर पड़ चुकी प्रथाओं और धारणाओं पर भी प्रहार कर रहे हैं।

वहीं भारत जैसे विभिन्नताओं से भरे देश में अक्सर ऐसी प्रथाएं भी देखने को मिलती है जो स्टीरियोटाइप को तोड़ने का काम करती है। आपको जानकर हैरानी होगी कि एक ओर जहां औरतों को होने वाली माहवारी के प्रति लोगों का रवैया बेहद नकारात्मक लगता है वहीं दूसरी तरफ उड़ीसा में माहवारी होने पर उत्सव मनाया जाता है।

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4 दिन तक चलने वाले इस उत्सव को राजपर्व नाम से जाना जाता है, जिसे हर साल चार दिन तक चलने वाले इस पर्व के पहले दिन को पहीलि रजो, दूसरे दिन को मिथुन  संक्राति, तीसरे दिन को भूदाहा या बासी रजा और आखिरी दिन को वासुमति स्नान के नाम से जाना जाता है। इस उत्सव की सबसे खास बात ये है कि इसमें केवल वही स्त्रियां भाग लेती हैं जो इस दौरान मासिक चक्र के दौर से गुजर रही होती  हैं लेकिन यदि दूसरी महिलाएं भी इस उत्सव में शामिल होना चाहती हैं तो उन्हें मना नहीं किया जाता।

इस उत्सव में पेड़ों पर झूले लगाकर लड़कियां झूला झूलती हैं। साथ ही नए कपड़े और सज-संवरकर गीत गाती हैं। इस दौरान लड़कियां एक-दूसरे को हल्दी लगाकर दूध से स्नान करती हैं। माहवारी या मासिक धर्म के प्रति जागरूक करने और पुरानी मान्यताओं को तोड़ने वाला ये अपनी तरह का अनोखा पर्व है।

 
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