प्रभु दत्तात्रेय ने बताया है, ‘अहंकार का ऐसे करें अंत’

भगवान दत्तात्रेय गुरुओं के भी गुरु हैं। वे आदि गुरु हैं। उन्होंने जीवन में हर छोटे से छोटे प्राणी से शिक्षा लेने को कहा है ताकि हम अपने जीवन को बेहतर बना सकें। ईश्वरीय अवतार होकर भी उन्होंने 24 गुरु बनाए और गुरुपद को महत्ता प्रदान की

प्रभु दत्तात्रेय ने बताया है, 'अहंकार का ऐसे करें अंत'

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अगहन पूर्णिमा को प्रदोषकाल में भगवान दत्त का जन्म होना माना गया है और इसलिए यह दिन दत्त जयंती के रूप में मनाया जाता है। इसी तिथि को ब्रह्मा, विष्णु और महेश इन तीनों देवताओं की शक्तियां जब केंद्रित हुईं तो ‘त्रयमूर्ति दत्त’ का जन्म हुआ। शास्त्रों में दत्तात्रेय को भगवान विष्णु का अवतार बताया है। भगवान दत्तात्रेय को शैवपंथी शिव का अवतार और वैष्णवपंथी विष्णु का अंशावतार मानते हैं।

परम भक्त वत्सल दत्तात्रेय भक्त के स्मरण मात्र से ही उसके पास पहुंच जाते हैं इसलिए उन्हें ‘स्मृतिगामी’ तथा ‘स्मृतिमात्रानुगन्ता’ भी कहा गया है। भगवान दत्तात्रेय में ईश्वर और गुरु दोनों ही समाहित हैं।

श्री दत्तात्रेय उत्पत्ति, स्थिति और लय तीनों स्थितियों के निदेशक हैं। तीनों गुणों यानी सत्व, रज और तम से युक्त हैं और इसी कारण उन्हें त्रिमूर्ति श्री दत्त कहते हैं। भगवान दत्तात्रेय ने गुरु की महत्ता प्रतिपादित की। आपने बताया कि जीवन में जिस किसी से भी ज्ञान की प्राप्ति होती है उसे अपना गुरु बना लो। कहा जाता है कि भगवान दत्तात्रेय के 24 गुरु थे जिनसे उन्होंने बहुत कुछ सीखा।

उनके गुरुओं में पृथ्वी, पिंगला वेश्या, कबूतर, सूर्य, वायु, हिरण, समुद्र, पतंगा, हाथी, आकाश, जल, मधुमक्खी, मछली, कुरर पक्षी, बालक, आग, चंद्रमा, कुमारी कन्या, शरकृत या तीर बनाने वाला, सांप, मकडी, भृंगी कीट, भौंरा और अजगर शामिल हैं।

मान्यता है कि दत्तात्रेय ने परशुरामजी को श्रीविद्या का मंत्र प्रदान किया था। शिवपुत्र कार्तिकेय को अनेक विद्याओं का दान भी आपने ही दिया था। भक्त प्रल्हाद को अनासक्ति का उपदेश देकर आपने ही उन्हें श्रेष्ठ राजा बनने में सहायता प्रदान की। महाराष्ट्र और कर्नाटक के घर-घर में दत्तोपासना की जाती है।

आत्म का बोध कराने वाले देव

दत्त अर्थात ‘मैं आत्मा हूं” की अनुभूति देने वाले देव। प्रत्येक मनुष्य में आत्मा का वास है और इसी कारण वह विभिन्ना गतिविधियों में रुचि और सक्रियता दिखाता है। दत्त का स्मरण करते हुए मनुष्य पाता है कि भगवान हमारे भीतर ही निवास करते हैं। हर मनुष्य के भीतर ही भगवान का वास है यह बोध हमें दत्त के स्मरण से होता है।

जब हमें यह बोध हो जाता है कि प्रत्येक मनुष्य में ईश्वर है तो हम सभी के साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार करते हैं और कभी दूसरों का अहित नहीं करते। भगवान दत्त हमें बताते हैं कि हम मनुष्य के भीतर बैठे देव का आदर करना चाहिए।

अहं को मिटाने की सीख

दत्तात्रेय भगवान का रूप अवधूत भी है। अवधूत यानी जो अहं को खत्म करता है। कई बार व्यक्ति खुद पर अभिमान करने लगता है और उसे लगता है कि उससे श्रेष्ठ दूसरा कोई नहीं है। यह गुमान उसके कर्मों के महत्व को कम कर देता है। अगर व्यक्ति अपनी श्रेष्ठता के दंभ में ही रहता है तो उसके मन से करुणा गायब हो जाती है।

दत्तात्रेय का अवधूत स्वरूप हमें यह स्मृति कराता है कि हमें अपने अहं को परे रखकर दूसरों के कल्याण के कार्यों में संलग्न रहना चाहिए। भगवान दत्त का अवधूत स्वरूप हमें त्याग की सीख भी देता है।

भगवान का प्रेरक स्वरूप

भगवान दत्तात्रेय को तीन मुख, छह भुजा, चार श्वान, एक वृक्ष और गौ के साथ खड़ा दिखाया जाता है। उनके हाथ में डमरू है तो चक्र भी है। वे शंख धारण करते हैं तो हाथ में जपमाला भी है। कमंडल उनके हाथों में शोभा पाता है तो त्रिशूल भी शोभता है। उनके तीन मुख ब्रह्मा, विष्णु और शिव तत्व को बताते हैं।

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उनका त्रिदेव स्वरूप हमारे अहं को समाप्त करता है और उनके हाथों में जो डमरू है वह निद्रा में लीन मनुष्यों को जगाने का काम करता है। अपने हाथ में रखे चक्र से वे भक्तों के सभी बंधनों को तोड़ देते हैं।

उनके हाथ में जपमाला है जो बताती है कि नाम जपने का महत्व सबसे बढ़कर है। उनके एक हाथ में कमंडल है और इसमें ज्ञान का अमृत है। इस जल से वे ज्ञान प्राप्ति की प्यास को शांत करते हैं और जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति देते हैं। उनके पार्श्व में खड़ी गाय पृथ्वी व कामधेनु की प्रतीक है। कामधेनु जिस तरह हमें इच्छित वस्तुएं देती हैं उसी तरह गाय भी है।

चार श्वान- ये चार श्वान चारों वेदों के प्रतीक हैं। वे सत्य की रक्षा के लिए हमेशा उद्यत हैं और जहां भी ईश्वर जाते हैं उनके पीछे-पीछे जाते हैं। औदुंबर वृक्ष- माना जाता है कि इस वृक्ष स्वयं भगवान दत्तात्रेय के अंश उपस्थित हैं। जो भी इस वृक्ष को दंडवत प्रणाम करता है उसकी मनोकामना पूर्ण होती है।

दत्त पादुका का पूजन

मान्यता है कि दत्तात्रेय नित्य काशी में गंगाजी में स्नान के लिए आते हैं। यही कारण है कि काशी में मणिकर्णिका घाट की दत्त पादुका भक्तों के लिए पूजनीय स्थान है। इसके अलावा मुख्य पादुका स्थान कर्नाटक के बेलगाम में स्थित है। देशभर में भगवान दत्तात्रेय को गुरु मानकर उनकी पादुकाओं को नमन किया जाता है।

 

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