सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘इज ऑफ डूइंग बिजनेस’ के नाम पर न्यायपालिका में सुधार की बात करने वाली सरकार को अपने गिरेबान में झांक कर देखना चाहिए। फालतू की याचिकाएं दायर करने के सरकार के रवैये पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी आपत्ति जताते हुए यह टिप्पणी की है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि सरकार अपनी खुद की राष्ट्रीय वाद नीति (नेशनल लिटिगेशन पॉलिशी) पर पुनर्विचार करने में असफल रही है।
न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने कहा है कि यह बहुत दुखद स्थिति है कि भारत सरकार फालतू या हल्की याचिकाएं दायर कर अदालतों पर बोझ डाली रही है, जिससे बचा जा सकता है।
पीठ ने कहा, मूल सवाल यह है कि आखिरकार सरकार कब अपने रवैये में बदलाव करेगी। जस्टिस डिलिवरी सिस्टम के प्रति आखिर सरकार को अपने कर्तव्य और जिम्मेदारियों का अहसास कब होगा।
वास्तव में पीठ ने पाया कि सरकार ने एक अपील दायर की जबकि इसी तरह की अपील पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी थी और वह भी एक लाख रुपये के जुर्माने के साथ।