बजट 2017: गरीब, बेरोजगारों को मासिक भत्ता देने की हो सकती है घोषणा

नोटबंदी की वजह से परेशान हुए देश के गरीब-गुरबों और बेरोजगारों के जख्म पर मरहम लगाने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार बजट में यूनिवर्सल बेसिक इनकम (यूबीआई) योजना को लागू करने की घोषणा कर सकती है। यदि ऐसा हुआ तो इस लक्ष्य समूह के हर व्यक्ति को हर महीने एक तयशुदा राशि मिलेगी। हालांकि पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि खूब सोच-विचार कर यदि इस योजना को लागू नहीं किया गया तो इससे देश की राजकोषीय स्थिति डांवाडोल हो सकती है।
बजट 2017: गरीब, बेरोजगारों को मासिक भत्ता देने की हो सकती है घोषणा
 
सरकार से जुड़े सूत्रों का कहना है कि इसे लागू करने की योजना मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) अरविंद सुब्रमणियन के दिमाग की उपज है। उन्होंने पिछले साल ही इस बारे में संकेत दे दिया था और वादा किया था कि इसके बारे में आर्थिक सर्वेक्षण (इकोनोमिक सर्वे) में एक विस्तृत विश्लेषण होगा। उन्होंने जिस गंभीरता से यह संकेत दिया है, उसे देखते हुए ऐसा कहा जा रहा है कि इससे संबंधित प्रस्ताव वर्ष 2017-18 के बजट में शामिल हो सकता है।

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हर महीने मिलेगी तय राशि

बताया जाता है कि इस योजना के तहत गरीब परिवारों और  बेरोजगारों को एक तय रकम देने पर विचार किया जा रहा है। यह योजना खासतौर से उन वर्गों के लोगों के लिए होगी, जो गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर करते हैं।
यह राशि प्रति महीने एक हजार रुपये या इसके आसपास रह सकती है। ऐसा कहा जा रहा है कि इस योजना को लागू करने के लिए पहले से चल रही सब्सिडी की कुछ योजनाओं को खत्म की जा सकती है।

नीति आयोग के उपाध्यक्ष का समर्थन नहीं

देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमणियन की यूबीआई लागू करने की योजना तो आकर्षक दिखती है, लेकिन नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया का इस पर समर्थन नहीं है। बीते दिनों मीडिया में उनका एक साक्षात्कार आया था, जिसमें वह कह रहे हैं कि इस तरह की योजना को लागू करने के लिए देश में पर्याप्त राजकोषीय संसाधन नहीं है।
उनका कहना है कि इस समय जो आय के साधन हैं तथा स्वास्थ्य, शिक्षा, ढांचागत संरचना तथा रक्षा क्षेत्र में जितना व्यय करना पड़ रहा है, उसे देखते हुए साफ तौर पर कहा जा सकता है कि इस तरह की योजना के लिए राजकोषीय संसाधन नहीं है।

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एक और फीलगुड जुमला: चिदंबरम

पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने पिछले महीने ही यूबीआई पर लिखे एक आलेख में कहा था कि ऐसा लगता है कि बिना पर्याप्त विचार या चर्चा किए यूबीआई का शोशा छोड़ दिया गया है।
कहा जा रहा है कि नोटबंदी से पैदा हुई तकलीफों से राहत दिलाने के लिए यूबीआई बहुत जरूरी है। अगर यूबीआई का खाका खूब सोच-समझ कर नहीं बनाया गया और अगर उसके लिए व्यावहारिक वित्तीय आधार तैयार नहीं किया गया, तो वह एक और फील-गुड जुमला ही साबित होगा, जो कि गरीबी दूर करने में भले कोई खास मददगार न साबित हो, पर इससे राजकोषीय स्थिति डांवांडोल हो सकती है।
 
 
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