जम्मू-कश्मीर के मुख्य सचिव बनाए गए छत्तीसगढ़ कैडर के 1987 बैच के आईएएस अधिकारी बीवीआर सुब्रमण्यम ने अपना पदभार संभाल लिया है। सुब्रमण्यम ने शनिवार को ऑफिस का चार्ज लिया। राज्य में राज्यपाल शासन लगते ही केंद्र सरकार ने सुब्रमण्यम को वहां बुलाने का फैसला किया था।जम्मू-कश्मीर के मुख्य सचिव बनाए गए छत्तीसगढ़ कैडर के 1987 बैच के आईएएस अधिकारी बीवीआर सुब्रमण्यम ने अपना पदभार संभाल लिया है। सुब्रमण्यम ने शनिवार को ऑफिस का चार्ज लिया। राज्य में राज्यपाल शासन लगते ही केंद्र सरकार ने सुब्रमण्यम को वहां बुलाने का फैसला किया था।  इससे पहले सुब्रमण्यम छत्तीसगढ़ सरकार में अतिरिक्त मुख्य सचिव के पद पर थे और गृह, जेल तथा परिवहन विभाग संभाल रहे थे। केंद्र सरकार ने सुब्रमण्यम को तत्काल जम्मू-कश्मीर में ज्वाइन करने का आदेश दिया था। सुब्रमण्यम को नक्सल मोर्चे पर सफल अफसर के तौर पर देखा जाता है।  सुब्रमण्यम मनमोहन सिंह की सरकार के वक्त केंद्र सरकार में ज्वाइंट सेक्रेटरी रहे। मोदी के कार्यकाल में भी वह एक साल तक ज्वाइंट सेक्रेटरी रहे। पिछले तीन साल से वे अपने मूल कैडर छत्तीसगढ़ में काम कर रहे थे। नक्सल इलाकों में विकास कार्यों में दूसरे विभागों से समन्वय के लिए उन्हें छत्तीसगढ़ में याद किया जाएगा।  मूल रूप से आंध्रप्रदेश के रहने वाले सुब्रमण्यम मैकेनिकल इंजीनियर हैं। प्रशासनिक हल्कों में उन्हें बीवीआर के नाम से जाना जाता है। नक्सल प्रभावित छत्तीसगढ़ में गृह विभाग का काम देखते हुए उन्होंने स्थानीय पुलिस, अर्धसैन्य बलों और राज्य सरकार के विभागों के बीच समन्वय बनाकर नाम कमाया।  उनके कार्यकाल में अति नक्सल प्रभावित इलाकों में मूलभूत सुविधाओं का विकास हुआ। दशकों से बंद पड़ी सड़कों को दोबारा बनाने में उनका बड़ा योगदान रहा है। चुपचाप काम करने में विश्वास रखने वाले सुब्रमण्यम मीडिया से दूर रहते हैं।  उनकी इन्हीं विशेषताओं को ध्यान में रखकर केंद्र सरकार ने उन्हें ऐसे राज्य की जिम्मेदारी सौंपी है जो आंतरिक सुरक्षा के मुद्दे पर और पाकिस्तान समर्थित उग्रवाद से बुरी तरह पीड़ित है। गृह विभाग के प्रमुख सचिव और बाद में अतिरिक्त मुख्य सचिव के रूप में वे लगातार बस्तर के नक्सल प्रभावित इलाकों में जाकर खुद विकास कार्यों की निगरानी करते रहे।  उनके पुलिस अफसरों से बेहतरीन संबंध थे। वे विकास की योजनाएं बनाने और दूसरे विभागों से चर्चा कर उसे आनन-फानन में उसे लागू कराने के लिए जाने जाते हैं। छत्तीसगढ़ में गृह विभाग के अपने तीन साल के कार्यकाल में उन्होंने फोर्स और सिविल प्रशासन में तालमेल बिठाया जिसका नतीजा यह रहा कि बस्तर में बड़ी नक्सली घटनाओं में कमी दर्ज की गई।  उनकी सफलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मनमोहन के प्रधानमंत्री रहने के दौरान छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह ने उन्हें पत्र लिखकर कहा कि सुब्रमण्यम को छत्तीसगढ़ वापस भेज दें ताकि वे राज्य में सेवाएं दे सकें। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जवाब दिया कि उन्हें ऐसे अफसर की जरूरत है जो संवेदनशील विषयों पर काम कर सकता है और जो विश्वास बनाए रखता हो। वे मनमोहन सिंह के विश्वस्त रहे।  उन्होंने प्रधानमंत्री के सचिव के तौर पर यूपीए-1 सरकार में चार साल बिताए। फिर मार्च 2012 से मार्च 2015 तक प्रानमंत्री कार्यालय में ज्वाइंट सेक्रेटरी रहे। लंदन बिजनेस स्कूल से मैनेजमेंट की डिग्री लेने वाले सुब्रमण्यम इस बीच वाशिंगटन में विश्व बैंक के सलाहकार भी रहे। 57 साल के सुब्रमण्यम ने बस्तर विकास का प्लान बनाया। जम्मू कश्मीर में उन्हें सेना और अर्धसैन्य बलों में समन्वय बनाने की चुनौती मिलेगी। वे इस काम के माहिर माने जाते हैं।

इससे पहले सुब्रमण्यम छत्तीसगढ़ सरकार में अतिरिक्त मुख्य सचिव के पद पर थे और गृह, जेल तथा परिवहन विभाग संभाल रहे थे। केंद्र सरकार ने सुब्रमण्यम को तत्काल जम्मू-कश्मीर में ज्वाइन करने का आदेश दिया था। सुब्रमण्यम को नक्सल मोर्चे पर सफल अफसर के तौर पर देखा जाता है।

सुब्रमण्यम मनमोहन सिंह की सरकार के वक्त केंद्र सरकार में ज्वाइंट सेक्रेटरी रहे। मोदी के कार्यकाल में भी वह एक साल तक ज्वाइंट सेक्रेटरी रहे। पिछले तीन साल से वे अपने मूल कैडर छत्तीसगढ़ में काम कर रहे थे। नक्सल इलाकों में विकास कार्यों में दूसरे विभागों से समन्वय के लिए उन्हें छत्तीसगढ़ में याद किया जाएगा।

मूल रूप से आंध्रप्रदेश के रहने वाले सुब्रमण्यम मैकेनिकल इंजीनियर हैं। प्रशासनिक हल्कों में उन्हें बीवीआर के नाम से जाना जाता है। नक्सल प्रभावित छत्तीसगढ़ में गृह विभाग का काम देखते हुए उन्होंने स्थानीय पुलिस, अर्धसैन्य बलों और राज्य सरकार के विभागों के बीच समन्वय बनाकर नाम कमाया।

उनके कार्यकाल में अति नक्सल प्रभावित इलाकों में मूलभूत सुविधाओं का विकास हुआ। दशकों से बंद पड़ी सड़कों को दोबारा बनाने में उनका बड़ा योगदान रहा है। चुपचाप काम करने में विश्वास रखने वाले सुब्रमण्यम मीडिया से दूर रहते हैं।

उनकी इन्हीं विशेषताओं को ध्यान में रखकर केंद्र सरकार ने उन्हें ऐसे राज्य की जिम्मेदारी सौंपी है जो आंतरिक सुरक्षा के मुद्दे पर और पाकिस्तान समर्थित उग्रवाद से बुरी तरह पीड़ित है। गृह विभाग के प्रमुख सचिव और बाद में अतिरिक्त मुख्य सचिव के रूप में वे लगातार बस्तर के नक्सल प्रभावित इलाकों में जाकर खुद विकास कार्यों की निगरानी करते रहे।

उनके पुलिस अफसरों से बेहतरीन संबंध थे। वे विकास की योजनाएं बनाने और दूसरे विभागों से चर्चा कर उसे आनन-फानन में उसे लागू कराने के लिए जाने जाते हैं। छत्तीसगढ़ में गृह विभाग के अपने तीन साल के कार्यकाल में उन्होंने फोर्स और सिविल प्रशासन में तालमेल बिठाया जिसका नतीजा यह रहा कि बस्तर में बड़ी नक्सली घटनाओं में कमी दर्ज की गई।

उनकी सफलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मनमोहन के प्रधानमंत्री रहने के दौरान छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह ने उन्हें पत्र लिखकर कहा कि सुब्रमण्यम को छत्तीसगढ़ वापस भेज दें ताकि वे राज्य में सेवाएं दे सकें। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जवाब दिया कि उन्हें ऐसे अफसर की जरूरत है जो संवेदनशील विषयों पर काम कर सकता है और जो विश्वास बनाए रखता हो। वे मनमोहन सिंह के विश्वस्त रहे।

उन्होंने प्रधानमंत्री के सचिव के तौर पर यूपीए-1 सरकार में चार साल बिताए। फिर मार्च 2012 से मार्च 2015 तक प्रानमंत्री कार्यालय में ज्वाइंट सेक्रेटरी रहे। लंदन बिजनेस स्कूल से मैनेजमेंट की डिग्री लेने वाले सुब्रमण्यम इस बीच वाशिंगटन में विश्व बैंक के सलाहकार भी रहे। 57 साल के सुब्रमण्यम ने बस्तर विकास का प्लान बनाया। जम्मू कश्मीर में उन्हें सेना और अर्धसैन्य बलों में समन्वय बनाने की चुनौती मिलेगी। वे इस काम के माहिर माने जाते हैं।