Lucknow: Brijesh Pathak being welcomed by Uttar Pradesh BJP President Keshav Prasad Maurya at BJP office in Lucknow on Sunday. Pathak left BSP to join BJP few days back. PTI Photo by Nand Kumar (PTI8_28_2016_000119B)

बड़ी खबर: मारुफ़ की दावेदारी से यूपी चुनाव में हो सकती है भारी उलटफेर

लखनऊ मध्य का चुनाव दिन पर दिन दिलचस्प होता जा रहा है. कई करवटें ले चुका ये चुनाव प्रचार अभियान के अंतिम दौर में है. समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन के बावजूद दोनों पार्टियों के प्रत्याशियों एवं भाजपा से ब्रजेश पाठक के मैदान में होने के कारण मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है. मारुफ़ के समर्थकों का कहना है कि,” विरोधियों की उडाई अफवाहों ने लोगों में कुछ संशय डाला ज़रूर था लेकिन हमारी शानदार चुनाव की तैयारी ने वो भी दूर कर दिया है.”
 
 लखनऊ मध्य: मारुफ़ की दावेदारी से भारी उलटफेर होने की संभावना
 

लगभग पौने दो लाख अल्पसंख्यक वोटरों के रुझान पर सभी की नज़र है. क्षेत्र में लगभग इतनी ही तादात बहुसंख्यक आबादी की भी है. ऐसे में कांग्रेस के मारुफ़ खान का पलड़ा भारी होता दिखता है. जानकारों की मानें तो अकेला मुस्लिम चेहरा, साफ़ छवि और पिछली मेहनत वोटरों को रिझाने में असरदार दिख रही है. वहीँ दूसरी ओर प्रदेश सरकार में काबीना मंत्री और मौजूदा विधायक रविदास मेहरोत्रा  लखनऊ मध्य: मारुफ़ की दावेदारी से भारी उलटफेर होने की संभावना

को विधायक विरोधी लहर का नुक्सान उठाना पड़ सकता है. कुछ राजनैतिक विशेषज्ञों का कहना है कि हर वार्ड में ये विरोध देखा जा सकता है.

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कैसरबाग क्षेत्र से मनोज अपना दर्द बयान करते हुए कहते हैं, “विधायकजी तो मंत्री बनने के बाद ईद का चाँद हो गए हैं !” वहीँ नरही क्षेत्र से रीना सिंह कहती हैं, “ब्रजेश पाठक तो न क्षेत्र से हैं और न ही मूलरूप से भाजपा से तो उनपर हम वोटर कैसे ऐतबार करें!” ऐसे में मारुफ़ का लगातार क्षेत्र में बने रहना और जनसंपर्क साधते रहना उन्हें वोटरों से समर्थन दिलाएगा और इससे यक़ीनन रविदास मेहरोत्रा और पाठक को नुक्सान का सामना करना पड़ सकता है. चुनाव रोमांचक इसलिए भी होता नज़र आ रहा है

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क्योंकि जहाँ पाठक बहुसंख्यक वोटरों को अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं, रविदास मेहरोत्रा समाजवादी पार्टी के होने के नाते अल्पसंख्यक को अपनी ओर मान रहे हैं जबकि मारुफ़ की मानें तो न केवल अल्पसंख्यक बल्कि क़ानून और अव्यवस्था की मार झेल रहा व्यापारी तबका भी उनकी ओर ही आस लगा कर देख रहा है.
 
मारुफ़ की दावेदारी से चुनाव में भारी उलटफेर होने की संभावना
 
 
राजनीति में पिछले एक दशक से आकर्षक नारों ने भी वोटरों के मन मस्तिष्क में जगह बनाई है. जहाँ पाठक “न गुंडाराज न भ्रष्टाचार , अबकी बार भाजपा सरकार”, रविदास “सपा का काम बोलता है” जैसे नारों से वोटरों में जगह बनाने की कोशिश कर रहे हैं, वहीँ मारुफ़ ”खुली क़िताब सा, बिल्कुल आपसा!” और “आपके मध्य से लखनऊ मध्य के लिए ,” जैसे नारों से न केवल वोटरों को रिझाने के प्रयास में हैं बल्कि अपनी सादगी एवं पारदर्शिता को साबित करने में ख़ासा सफल होते नज़र आ रहे हैं. ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा की मारुफ़ की मौजूदगी ने न केवल चुनाव में रोमांच भरा है बल्कि अल्पसंख्यक की एकजुटता से बहुसंख्यक के मुकाबले को राह भी दी है. ज़ाहिर है 19 फरवरी जैसे जैसे पास आ रहा है वैसे वैसे राजनैतिक प्रतिद्वंदिता गरमा रही है. यह देखने के लिए कि कौन किसके समर्थन में उतरा है मध्य के वोटर अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए बेसब्री से लोकतंत्र के महोत्सव का इंतज़ार कर रहा है. 
 
 
 
 
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