#बड़ी खबर: सवा 2 लाख फर्जी कंपनियों पर गिरी गाज, 17 हजार करोड़ के लेन-देन का आरोप

#बड़ी खबर: सवा 2 लाख फर्जी कंपनियों पर गिरी गाज, 17 हजार करोड़ के लेन-देन का आरोप

नोटबंदी की पहली सालगिरह से ठीक पहले मोदी सरकार के इस फैसले का बड़ा असर नजर आया है. सरकार के कदम से बड़ी संख्या में फर्जी कंपनियों पर गाज गिरी है. इन कंपनियों के खाते भी बंद कर दिए गए हैं.#बड़ी खबर: सवा 2 लाख फर्जी कंपनियों पर गिरी गाज, 17 हजार करोड़ के लेन-देन का आरोपFood: खाने की इन सात चीजों को कृपा दोबारा गर्म न करें, सेहत को हो सकता है नुकसान!

वाणिज्यिक मंत्रालय के मुताबिक करीब 2.24 कंपनियों को बंद कर दिया गया है. ये ऐसी कंपनियां हैं, जिनमें पिछले दो सालों से कोई कामकाज नहीं हुआ है. जबकि नोटबंदी के बाद इन कंपनियों से करीब 17 हजार करोड़ का लेन-देन किया गया.

बैंकों की जानकारी पर कार्रवाई

सरकार ने ये कार्रवाई बैंकों की जानकारी के आधार पर की है. बताया गया है कि 56 बैंकों ने इस संबंध में 35000 कंपनियों की डिटेल्स साझा की थीं. बैंकों ने बताया था इन कंपनियों के करीब 58 हजार खाते हैं जिनसे 17 हजार करोड़ का लेन-देन किया गया. बैंकों की मदद से मिली ऐसी संदिग्ध कंपनियों की लिस्ट के बाद संबंधित विभाग ने जांच पड़ताल की, जिसके बाद उनके खिलाफ ये बड़ा एक्शन लिया गया.

मंत्रालय की तरफ से ये भी जानकारी दी गई है कि एक कंपनी जिसके खाते निगेटिव में थे, उसमें 8 नवंबर 2016 को 2484 करोड़ रुपये जमा कराए गए और फिर ये पैसा निकाल लिया गया. 

डायरेक्टर्स पर भी गाज

इन कंपनियों के साथ ही इनसे जुड़े करीब 3.09 लाख डायरेक्टर्स पर भी सरकार का चाबुक चला है. इन सभी डायरेक्टर्स को अयोग्य घोषित कर दिया गया है. इन पर लगातार 3 वित्तीय वर्षों के फाइनेंशियल स्टेटमैंट्स और वार्षिक आय की जानकारी न देने के आरोप हैं. ये डायरेक्टर्स 20 लाख से ज्यादा कंपनियों को संभालते थे, जो कि नियमों के खिलाफ है.

8 नवंबर 2016 को लागू हुई थी नोटबंदी

बता दें कि पिछले साल 8 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500-1000 के नोट पर पाबंदी लगाने की घोषणा की थी. जिसके बाद बड़ी तादाद में फर्जी कंपनियों के जरिए नकद राशि जमा कराने जैसी घटनाएं सामने आई थीं. साथ ही रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के आंकड़ों ने भी सबको हैरान कर दिया था. जिसमें कहा गया है कि नोटबंदी के बाद 99 फीसदी पुराने वोट बैंकिंग सिस्टम में वापस आए हैं. विपक्ष ने इस पर सवाल उठाते हुए मोदी सरकार के फैसले को कालाधन को सफेद करने वाला कदम करार दिया था.

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