महाभारत के बाद पांडव और भगवान कृष्ण का क्या हुआ?

महाभारत प्राचीन भारत में लड़ी गई भीषण लड़ाईयों में से एक महायुद्ध की कहानी है। यह न सिर्फ धर्म की जीत का प्रतीक है, बल्कि यह सच्चे कर्म की प्रेरणा देता है।मगर, क्या आप जानते हैं महाभारत के 18 दिवसीय युद्ध की समाप्ति के बाद क्या हुआ? कौन राजा बना और उसके बाद की कहानी क्या है? आज हम आपको बताने जा रहे हैं महाभारत के युद्ध के बाद की कहानी।

महाभारत के बाद पांडव और भगवान कृष्ण का क्या हुआ?

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1. पांडवों ने हस्तिनापुर में किया 36 साल शासन

महाभारत के युद्ध के बाद पांडवों के जीत हुई। युधिष्ठिर को हस्तिनापुर का राजा घोषित किया गया। उनके के नेतृत्व में पांडवों का राज पूरे 36 साल चला। युधिष्ठिर के राजतिलक के समय गांधारी ने कौरवों के नाश के लिए श्रीकृष्ण को दोषी ठहराते हुए शाप दिया कि जिस प्रकार कौरवों के वंश का नाश हुआ है, वैसे ही यदुवंश का भी नाश होगा। गांधारी के अनुसार, भगवान कृष्ण के पास युद्ध को रोकने की दिव्य शक्ति थी और किसी एक पक्ष में जाने का विकल्प। मगर, उन्होंने युद्ध होने दिया।

2. यादव कुल का नाश

गांधारी के दिए श्राप का असर यादवों पर होने लगा। श्राप के चलते श्री कृष्ण की द्वारका की हालत बिगड़ने लगी। कृष्ण सारे यादव कुल को प्रभास ले गए, लेकिन वहां भी हिंसा से पीछा नहीं छूटा। पूरा यादव कुल एक-दूसरे के खून का प्यासा हो गया और पूरा वंश ही आपस में लड़कर खत्म हो गया। इस नरसंहार में सिर्फ भगवान कृष्ण, बलराम, दरुका और वभ्रू ही बचे।

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3. कृष्ण की मृत्यु

प्रभास नरसंहार के बाद भगवान कृष्ण ने वन में ध्यानमग्न होने का निर्णय लिया। जब वह ध्यान में लीन थे, तो जारा नाम के शिकारी ने वन में हिरण का शिकार करते समय तीर चलाया, जो कृष्ण के पैर में लगा। तीर लगने के बाद भगवान कृष्ण ने शिकारी के सामने ही विष्णु का रूप धारण किया और नश्वर शरीर को त्याग दिया।

4. स्वर्ग की सीढ़ी

एक ऋषि ने पांडवों को सलाह दी कि आपका उद्देश्य पूरा हो गया है, इसलिए अब आपको हिमालय की ओर अंतिम यात्रा पर प्रस्थान करना चाहिए। इसके बाद अर्जुन के पौत्र परीक्षित को राज-पाठ सौंप कर पांडव द्रौपदी के साथ अपनी अंतिम यात्रा के लिए हिमालय की ओर निकल पड़े।

पांडवों ने द्रौपदी और एक कुत्ते के साथ अपनी अंतिम यात्रा के रूप में स्वर्ग की सीढ़ियां चढ़नी शुरू कीं। स्वर्ग की सीढ़ी चढ़ने के दौरान धीरे-धीरे सभी युधिष्ठिर का साथ छोड़ने लगे। शुरुआत द्रौपदी से हुई और अंत में भीम का निधन हुआ। माना जाता है कि पांडवो में सिर्फ युधिष्ठिर ही कुत्ते के साथ हिमालय के पार स्वर्ग के दरवाजे पर पहुंच सके।

5. तब मिला युधिष्ठिर को चैन

स्वर्ग के दरवाजे पर भगवान इंद्र ने युधिष्ठिर का स्वागत किया और उनकी अंतिम यात्रा में शामिल होने का आग्रह किया। युधिष्ठिर के साथ गया कुत्ता वहां गायब हो गया, जो वास्तव में यमराज थे। उन्होंने युधिष्ठिर की प्रशंसा करते हुए युधिष्ठिर को सबसे पहले नरक दिखाया। वहां द्रौपदी और अपने बाकी भाइयों को देख युधिष्ठिर उदास हुए। तब भगवान इंद्र ने कहा कि अपने कर्मों की सजा पूर्ण कर वे भी जल्द ही स्वर्ग में दाखिल होंगे। तब युधिष्ठिर को चैन मिला।

 

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