माएं-दादियां कपड़े उतारने पर क्यों मज़बूर हुईं?

अक्सर ऐसा होता है कि कुछ लोग ख़बरों में आते हैं और फिर कुछ समय तक सुर्खियों में बने रहते हैं. साल दो साल के बाद खबर का उत्साह कम होते ही ये लोग भी मीडिया की नज़रों से दूर हो जाते हैं. बीबीसी ऐसे ही लोगों पर कर रहा है एक खास सीरिज़.माएं-दादियां कपड़े उतारने पर क्यों मज़बूर हुईं?

सीरीज़ की पहली कड़ीःक्या भगवान से आपकी मुलाक़ात हुई थी अंतरिक्ष में?

तेरह साल पहले मणिपुर की कुछ माओं और दादियों ने न्यूड होकर विरोध प्रदर्शन किया था.

सभी रूढ़ियों को तोड़ते हुए 12 महिलाएं भारतीय सुरक्षा बलों को चुनौती दी और आख़िरकार इसकी वजह से पूर्वोत्तर के इस राज्य में ज़मीनी बदलाव का रास्ता खुला.माएं-दादियां कपड़े उतारने पर क्यों मज़बूर हुईं?

इस बारे में बीबीसी के साथ बात करने के लिए इनमें से 11 महिलाएं हाल ही में इम्फाल में इकट्ठा हुईं. 12वीं प्रदर्शनकारी की पांच साल पहले मृत्यु हो चुकी है.

इनमें से अधिकांश अपनी उम्र के आखिरी पड़ाव में हैं. अधिकांश काफ़ी बुज़ुर्ग हो चुकी हैं और उनकी आंख की रोशनी ख़त्म होने की कग़ार पर है. एक अन्य को यहां तक आने के लिए अपनी बेटी का सहारा लेना पड़ा क्योंकि बिना सहारे वो चल नहीं सकती.

जब उन्होंने उस दिन के बारे में बताना शुरू किया, तो यह कल्पना करना भी मुश्किल था कि इन्हीं महिलाओं ने वो प्रदर्शन किया था.माएं-दादियां कपड़े उतारने पर क्यों मज़बूर हुईं?

मणिपुर दशकों तक विद्रोह की समस्या का सामना किया है, जिसमें कई चरमपंथी समूह शामिल रहे हैं. जबकि आधी सदी से भारतीय सेना के पास अफ़स्पा के तहत यहां गोली मार देने का अधिकार रहा है.

अक्सर सुरक्षा बलों पर मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप लगे लेकिन जुलाई 2004 में कथित रूप से अर्धसैनिक बलों द्वारा 32 साल की एक महिला के साथ गैंगरेप और फिर हत्या किए जाने के मामले ने राज्य को आंदोलित तक दिया.

चरमपंथियों से लड़ने के लिए मणिपुर में तैनात असम राइफ़ल्स के जवानों के जवानों ने 11 जुलाई की आधी रात को मनोरमा को उसके घर से उठाया

इसके कुछ घंटे बाद सड़क के किनारे उसका कटा फटा और गोलियों के निशान वाला शव मिला. ये निशान ही टॉर्चर और बलात्कार की गवाही दे रहे थे.

असम राइफ़ल्स ने अपनी भूमिका से इनकार किया, लेकिन राज्य में लोगों का अभूतपूर्व गुस्सा फूट पड़ा और केंद्र के ख़िलाफ़ ये ‘चर्चित मदर्स’ प्रोटेस्ट हुआ.

ये सभी घरेलू महिलाएं थीं, अधिकांश ग़रीब परिवार से थीं और कई अपने परिवार की आजीविका के लिए छोटी मोटी नौकरियां भी करती थीं.माएं-दादियां कपड़े उतारने पर क्यों मज़बूर हुईं?

इनमें सबसे बुजुर्ग प्रदर्शनकारी 73 साल की और सबसे युवा 45 साल की थी. इन सभी के कुल 46 बच्चे और 74 नाती-पोते थे.

ये सामाजिक कार्यकर्ता भी थीं, जिन्हें मेइरा पाइबिस यानी मशाल पकड़ने वाला कहा जाता है. वो एक दूसरे को जानती थीं लेकिन अलग अलग संगठनों से जुड़ी थीं.

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इनमें से कुछ ने मनोरमा के परिवार से मुलाक़ात की थी और उस शवगृह में भी गई थीं, जहां मनोरमा का शव रखा गया था.माएं-दादियां कपड़े उतारने पर क्यों मज़बूर हुईं?

सोइबाम मोमोन लीमा कहती हैं, “इसने मुझे बहुत गुस्सा आया. ये केवल मनोरमा ही नहीं थी जिसका रेप हुआ था. हम सभी ने बलत्कृत महसूस किया.”

उस समय 73 साल की रहीं थोकचम रमानी ने बताया, “न्यूड प्रदर्शन को लेकर पहली बार चर्चा 12 जुलाई को मणिपुर वुमेंस सोशल रिफॉर्मेशन एंड डेवलपमेंट समाज की एक मीटिंग में हुई, लेकिन लोगों को लगा कि यह बहुत संवेदनशील और रेडिकल है.”

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