कोरोना महामारी के इस कठिन दौर में मानवीयता पर भी ओछी राजनीति!

डॉ. खुशबू गुप्ता, असिस्टेंट प्रोफेसर,दिल्ली विश्वविद्यालय

इस कठिन दौर में जब विश्व के सभी देश महामारी से उत्पन्न मानवीय आपदा से लड़ रहे हैं, अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं ऐसे में नए भारत की इबारत गढ़ने वाले उन कमजोर, असहाय श्रमिकों, प्रवासी लोगों पर राज

नीति किया जाना बेहद निंदनीय है. महामारी के प्रकोप से जो वर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित है वह देश की आखिरी जनता है चाहे वह आर्थिक हो मानसिक हो शारीरिक हो. ऐसे संकट के समय में देश का प्रत्येक व्यक्ति सुरक्षित रह सके उनकी सभी जरुरी आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके भारत सरकार के द्वारा विभिन्न घोषणाये की गई. यह भी सुनिश्चित किया जा रहा है कि सभी राज्य सरकारें संवेदनशीलता तथा तत्परता से कार्य करे जिससे प्रत्येक व्यक्ति सुरक्षित रह सके. आज आवश्यकता है सभी राजनीतिक दलों के द्वारा विचारधारा से ऊपर उठकर राष्ट्रीय हित में कार्य करने का, उन सभी की सुरक्षा के लिए जिनके बल पर हम देश के विकास की कल्पना करते हैं.

बीते कई दिनों से महामारी की भयावह स्थिति से डरकर, असुरक्षा की भावना से देश के विभिन्न राज्यों के  प्रवासी लोग भारी संख्या में अपने अपने घरों के लिए पैदल ही पलायन करने लगे जबकि सम्पूर्ण देश को २१ दिनों के लिए लॉकडाउन किया गया है. जाहिर है कोई भी व्यक्ति जिसके पास सामाजिक सुरक्षा नहीं है दैनिक कार्य करके अपना गुजारा चला रहा हो और अपने घर से दूर रहने के लिए मजबूर हो यही करेगा. अब प्रश्न यह उठता है कि लॉकडाउन होने के बावजूद लोग पलायन क्यों कर रहे हैं क्या यह राज्यों की विफलता को दर्शता है ?. अचानक से उत्तर प्रदेश और बिहार के श्रमिक दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र से भीड़ में अपने घरो के लिए रेल, बस यहाँ तक पैदल ही निकल गए. यही ही नहीं दक्षिण भारत के राज्य केरल से झारखण्ड और बंगाल के प्रवासी श्रमिक भी अब निकलने लगे हैं. ऐसी स्थिति में सम्बंधित राज्य सरकारों को समन्वय स्थापित करके कार्य करना चाहिए था न कि आरोप प्रत्यारोप लगाना.

सर्वाधिक आबादी वाले उत्तर प्रदेश की बात करे तो प्रशासन द्वारा समुचित निर्णय लगातार लिया जा रहा है निर्णयों को तीव्रता से लागू भी कराया जा रहा है.

बीते दिनों स्थिति को देखते हुए उस पर नियंत्रण पाने के लिए योगी आदित्यनाथ  सरकार के द्वारा १,००० बसों की व्यवस्था की घोषणा, देश के अन्य राज्यों में जहा उत्तर प्रदेश के निवासी रह रहे है उनको सुविधा प्रदान किया जा सके इसके लिए नोडल अधिकारी तैनात किया गया, ८,८३३ प्राविजन स्टोर के माध्यम  से १६,९०५ लोगों तक डोर टू डोर आवश्यक वस्तुएं पहुचना, ५२७ सामुदायिक रसोई की शुरूआत, ग्राम प्रधानों और पार्षदों से संवाद कर गाँवों में खाद्य सामग्री का समुचित वितरण, मुख्यमंत्री हेल्प लाइन द्वारा प्रत्यक्ष जन संपर्क किया जा रहा है।

अत्याधुनिक उपकरणों से लैस एक स्थायी और विस्तृत ‘स्टेट आफ दि आर्ट’ कण्ट्रोल रूम स्थापित करने के निर्देश भी दिये गए. ऐसा नहीं है कि अन्य राज्य सरकारे कार्य नहीं कर रही है मुफ्त में भोजन उपलब्ध करना, रैन बसेरों में रहने की व्यवस्था करना, केंद्र द्वारा निर्देश दिए जाने पर प्रदेश में भी मकानमालिकों को आदेश दिया जाना कि किसी भी व्यक्ति को निकाला न जाये, स्वास्थ्य सम्बंधित व्यवस्था आदि किये जा रहे हैं।

लेकिन दिल्ली जैसे महानगर में जहां प्रवासी भारी संख्या में दैनिक जीवन यापन के लिए रहते हैं उनकी सुरक्षा के लिए पूर्व में ही व्यवस्था करने की आवश्यकता थी उनको आश्वस्त करना था जिससे उनका पलायन रोका जा सके. ऐसे में जब यह महामारी संक्रमण से हो रही है इतनी तादाद में लोगो का दिल्ली में एक स्थान पर एकत्रित होना उसके प्रसार को बढ़ावा ही दिया है. न जाने कितने लोग संक्रमित थे, कितने हुए होंगे हमारे पास इसकी कोई जानकारी नहीं है।

बजाय इसके कि उनके लिए भोजन और रहने की उचित व्यवस्था, कुछ आर्थिक सहायता प्रदान करने की, उनको आश्वस्त करने के, राज्य सरकार के द्वारा उन सभी लोगो को राज्यों के बोर्डर पर छोड़ा जाना स्थिति को बदत्तर ही बनाया. हलाकि प्रवासी लोगो को उनके गंतव्य स्थान भेजने की व्यवस्था की गई लेकिन बिना स्वास्थ्य जांच के, सम्बंधित राज्यों के साथ समन्वय स्थापित किये बगैर उनको जाने दिया गया जो कि नहीं होना चाहिए था. भोजन तथा रहने कि समुचित व्यवस्था, फैट्री मालिकों से उनकी तनख्वा सुनिश्चित करने, सीमावर्ती राज्यों को पूरी तरह सील करने, अफवाहों के प्रसार को रोकने के लिए उचित निर्णय, श्रमिकों से सामाजिक दूरी का पालन कराते हुए उनको वही रोकना चाहिए था. यह समय सरकार द्वारा उठाये गए क़दमों की आलोचना तथा आरोप- प्रत्यारोप करने का नहीं है बल्कि परिस्थिति की संवेदनशीलता को देखते हुए कठोर तथा उचित व्यवस्था करने की है।

बहुदलीय प्रणाली वाले भारत देश में सभी राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय दलों को आगे बढ़कर देश और मानवता की सुरक्षा के लिए एकजुट होकर लोगो की

सहायता करने की आवश्यकता है। देश के प्रत्येक व्यक्ति को सुविधाएँ प्रदान किया जाने के लिए राजनीतिक दलों के फण्ड से भी आर्थिक सहायता किया जाना चाहिए. ऐसे में किस स्तर पर इस संकट से निपटने के लिए हम तैयार है?, स्वास्थ्य से जुड़ी उचित और पर्याप्त व्यवस्था की जानी चाहिए। राज्यों में रह रहे बहुत से श्रमिक जो पंजीकृत नहीं हैं उनको भी सहायता प्रदान की जाएँगी इसके लिए आश्वस्त करना चाहिए।

शुरुआत में ४-५ दिनों तक स्थिति सही थी लेकिन अचानक से क्यों लोग सड़कों पर निकलने लगे. जाहिर है समय और परिस्थिति की संवेदनशीलता को ध्यान न रखकर कुछ राजनीतिज्ञों के द्वारा बयान दिया जाना, समुचित देखभाल का अभाव, आर्थिक, सामाजिक तथा स्वास्थ्य की असुरक्षा से ऐसा संकट उत्पन्न हुआ. इस सन्दर्भ में सरकार, राजनीतिक, सामाजिक संगठन और मीडिया एकसाथ मिलकर जन जागरूकता तथा लोगो से अपील करते तो स्थिति पर नियंत्रण किया जा सकता था. समस्या का राजनीतिकरण न करके उसके समाधान पर ध्यान देने की आवश्यकता है जिससे हम सभी स्वस्थ्य और सुरक्षित रह सके.

 

 

 

 

 

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