मोदी मैजिक और अजित की विरासत का मुकाबला बन गया कैराना उपचुनाव

है तो सिर्फ एक लोकसभा सीट का उपचुनाव लेकिन बागपत में ईस्टर्न पेरीफेरियल एक्सप्रेस वे के उद्घाटन के बहाने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जनसभा ने कैराना उपचुनाव को इन दोनों की सियासी प्रतिष्ठा से जोड़ दिया और यह उपचुनाव मोदी मैजिक और अजित सिंह की सियासी विरासत का मुकाबला बन गया है। 

 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद हुए करीब दस लोकसभा उपचुनावों में ज्यादातर पर हार का मुहं देखने वाली भाजपा के लिए चुनाव वर्ष के प्रारंभ में हो रहे इस उपचुनाव को जीतना बेहद अहम है तो वहीं अपने राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे राष्ट्रीय लोकदल अध्यक्ष अजित सिंह और उनके पुत्र जयंत चौधरी के लिए भी यह उपचुनाव जीतना भाजपा से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है।

सोमवार को उत्तर प्रदेश के कैराना लोकसभा सीट और नूरपुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव के लिए होने वाले मतदान से ठीक एक दिन पहले गाजियबाद मेरठ 14 लेन एक्सप्रेस वे और इस्टर्न पेरीफेरियल एक्सप्रेस वे के उद्घाटन समारोह में जुटे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, राज्यपाल राम नाईक, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, महेश शर्मा, जनरल (रि) वीके सिंह और हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर समेत अन्य नेता भले ही एक सरकारी समारोह में शिरकत करने के लिए आए थे, लेकिन कहीं न कहीं परदे के पीछे बगल में हो रहे कैराना उपचुनाव की राजनीति भी थी। 

हालांकि अलग जिला होने के वजह से यह आयोजन आदर्श चुनाव आचार संहिता के दायरे में नहीं आता और इसीलिए चुनाव आयोग ने विपक्ष के एतराज को खारिज भी कर दिया था। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी के भाषण में गन्ना किसानों के बकाए के भुगतान के आश्वासन समेत केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार की उपलब्धियों का जिस तरह बखान किया गया, उसका मकसद कहीं न कहीं कैराना समेत पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जनता को संदेश देना भी था। 

इसलिए कैराना और नूरपुर के उपचुनावों को बिना घोषित किये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सियासी प्रतिष्ठा से जोड़ दिया गया है। अब उन चुनावों के नतीजों को भी इन दोनों की उत्तर प्रदेश में लोकप्रियता का पैमाना माना जाएगा।

भाजपा विरोधी गठबंधन की तस्वीर

कैराना लोकसभा सीट और नूरपुर विधानसभा सीट का उपचुनाव उत्तर प्रदेश में भाजपा विरोधी गठबंधन की तस्वीर भी तय करेगा। चुनाव नतीजे तय करेंगे कि राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष अजित सिंह की सपा बसपा के संभावित गठबंधन में कोई जगह होगी या नहीं। कैराना अजित सिंह का गढ़ मानी जाने वाली सीटों में से एक है और इसीलिए भले ही 2014 में भाजपा ने रालोद के इस गढ़ को तोड़ दिया था, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और बसपा अध्यक्ष मायावती ने कैराना और नूरपुर दोनों सीटों पर रालोद के उम्मीदवारों के पक्ष में अपने उम्मीदवार नहीं उतारे।
सपा ने रालोद उम्मीदवार का समर्थन किया जबकि मायावती ने भले ही प्रकट रूप से कोई एलान नहीं किया लेकिन रालोद ने बसपा में रही पूर्व सांसद मुनव्वर हसन की पत्नी को ही अपना उम्मीदार बनाया है। जबकि मुकाबले में भाजपा ने दिवंगत सांसद हुकम सिंह की बेटी को मैदान में उतारा है।

कैराना में सबसे ज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं। उसके बाद जाट, गूजर और दलित मतदाताओं की तादाद है। फिर वैश्य ब्राह्रण पिछड़े वर्ग के मतदाता हैं। रालोद, सपा गठजोड़ और बसपा के मौन समर्थन से रालोद को उम्मीद है कि उसके उम्मीदवार के पक्ष में मुस्लिम, दलित, जाट मतदाताओं का समर्थन एकमुश्त रहेगा और हुकुम सिंह परिवार के राजनीतिक विरोधी गूजरों का भी साथ मिलेगा। जबकि भाजपा को अपने पक्ष में गूजरों, जाटों और अन्य वर्गों के एक मुश्त वोट पडने का भरोसा है। 

2013 में सांप्रदायिक दंगो का केंद्र रहे इस क्षेत्र में भाजपा की कोशिश पुराने जख्मों को हरा करके और मुस्लिम अपराधियों के डर से हिंदुओं के कथित पलायन का भय दिखाकर हिंदुत्व का ध्रुवीकरण करने की रही, जबकि रालोद ने फिर अपने जाट मुस्लिम के पुराने समीकरण को जीवंत करके उसमें दलित वोट जोडने की है। 

रालोद अध्यक्ष अजित सिंह और उनके बेटे जयंत चौधरी ने इसके लिए गांव-गांव घूमकर लोगों को किसान, गन्ना राजनीति और चौधरी चरण सिंह के प्रति उनकी वफादारी का वास्ता दिया। गन्ना बनाम जिन्ना का नारा भी उछला। जबकि भाजपा नेताओं को प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता और मुख्यमंत्री योगी के दबदबे का भरोसा है। लेकिन बगल के सहारनपुर जिले में पिछले साल हुए दलित राजपूत संघर्ष का असर कैराना के दलितों पर भी देखा गया है। यह भाजपा के लिए चिंता का सबब है। 

लेकिन भाजपा नेताओं को भरोसा है कि बागपत में मोदी योगी की सभा का संदेश कैराना भी जाएगा, जिसके पार्टी को फायदा मिलेगा। लेकिन रालोद नेताओं कहना है कि प्रधानमंत्री का बागपात कार्यक्रम रालोद के लिए फायदेमंद साबित होगा, क्योंकि पिछले एक सप्ताह से भाजपा नेता इस जनसभा को सफल बनाने के लिए भीड़ जुटाने की तैयारी में लगे थे, जबकि रालोद उम्मीदवार और कार्यकर्ता चुनाव और जन संपर्क में जुटे रहे।

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