मोदी सरकार का यह नया नियम, तोड़ देगा आम आदमी की कमर

नई दिल्ली: अब तक महंगाई को कंट्रोल में रखने वाली मोदी सरकार भी लाचार होती दिख रही है। GOVT ने अब आम आदमी से जुड़ी सेवाओं को महंगी कर सकती है।

मोदी सरकार का यह नया नियम, तोड़ देगा आम आदमी की कमर
आपको जल्द ही पासपोर्ट, लाइसेंस, रजिस्ट्रेशन, परीक्षाओं और सरकार की ओर से उपलब्ध कराई जाने वाली बहुत सी अन्य सर्विसेज के लिए अधिक फी चुकानी पड़ सकती है। 
इनैंस मिनिस्ट्री ने मिनिस्ट्रीज और डिपार्टमेंट्स को मौजूदा प्रॉजेक्ट्स पर खर्च की फंडिंग और उपलब्ध कराई जाने वाली सर्विसेज की कॉस्ट रिकवर करने के लिए यूजर चार्ज बढ़ाने को कहा है।
हाल ही में बजट को लेकर विचार-विमर्श शुरू करने वाली फाइनैंस मिनिस्ट्री चाहती है कि मिनिस्ट्रीज और डिपार्टमेंट्स यूजर चार्ज बढ़ाकर मौजूदा प्रॉजेक्ट्स पर खर्च को पूरा करें। उदाहरण के लिए, यूनियन पब्लिक सर्विस कमिशन (यूपीएससी) सिविल सर्विस परीक्षा के लिए अभी भी 100 रुपये लेता है, जबकि इस परीक्षा के आयोजन की लागत पिछले वर्षों के दौरान काफी बढ़ गई है।
रेलवे की कुछ सर्विसेज पर भी भारी सब्सिडी दी जाती है। अधिकतर अन्य सर्विसेज के लिए चार्जेज या तो स्थिर हैं या उनमें मामूली बढ़ोतरी हुई है। इस डिवेलपमेंट की जानकारी रखने वाले एक सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘ऑटोनॉमस ऑर्गनाइजेशंस को आत्म-निर्भरता की ओर बढ़ना चाहिए। सरकार कब तक सर्विसेज पर सब्सिडी देती रहेगी।’
पासपोर्ट के लिए फी अंतिम बार 2012 में 1,000 रुपये से बढ़ाकर 1,500 रुपये की गई थी। अधिकतर मामलों में कॉस्ट के मुताबिक फी कम है और इससे सरकार को काफी सब्सिडी देनी पड़ती है। इससे पहले भी इस तरह के निर्देश दिए जाते रहे हैं लेकिन जमीनी स्तर पर कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ। लेकिन इस वर्ष फाइनैंस मिनिस्ट्री इसे लेकर मिनिस्ट्रीज और डिपार्टमेंट्स के साथ खुद बात कर रही है।
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर बिमल जालान की अगुवाई वाले एक्सपेंडिचर मैनेजमेंट कमिशन ने अपनी रिपोर्ट में सरकारी संगठनों की ओर से दी जाने वाली सर्विसेज की कॉस्ट रिकवर करने की जरूरत पर जोर दिया था। अधिकारी ने बताया कि कमिशन ने कहा था कि सर्विस की कॉस्ट ली जानी चाहिए और सब्सिडी धीरे-धीरे कम होनी चाहिए। मिनिस्ट्रीज के पास कमिशन के सुझावों को भेजा गया है जिससे वे इनके मुताबिक कदम उठा सकें। कमिशन की सिफारिशों के अनुसार सरकार कुछ कदम पहले ही उठा चुकी है। इनमें केरोसिन और डीजल पर सब्सिडी को कम करना शामिल हैं।
देश का फिस्कल डेफिसिट मौजूदा फाइनैंशल इयर की पहली छमाही में ही पूरे वर्ष के बजट अनुमान के 83.9 पर्सेंट पर पहुंच गया है। इस वजह से खर्च घटाने को लेकर कदम उठाना जरूरी हो गया है। सरकार इकॉनमी की रफ्तार बढ़ाना चाहती है और इस वजह से कैपिटल एक्सपेंडिचर में कमी करने की अधिक संभावना नहीं है। इन सर्विसेज से मिलने वाला रेवेन्यू सरकार के नॉन-टैक्स रेवेन्यू का हिस्सा होता है।
 
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