मोदी सरकार के तीन सालों हुई इन खामियों से त्रस्त है आम आदमी

लखनऊ-: इसी 26 मई को मोदी सरकार के तीन साल पूरे होने जा रहे हैं। इसमें शेष हैं सिर्फ तीन दिन। इस अवधि में देश में बडा अप्रत्याशित बदलाव आया है। बदल नहीं सके है स्वयं प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी। उनका पारदर्शी और दंभरहित जीवन दर्शन आज भी जस का तस है। बदल नहीं सकी है भारत को विश्वगुरु का दर्जा दिलाने की उनकी दृढ संकल्पशक्ति और उच्च महत्वाकांक्षा। इसीलिये वह आज भी थके और रुके बिना अपनी राह पर लगातार बढते ही जा रहे हैं। सुबह आंख खुलने से लेकर देर तक आंख बंद होने तक। उन्हें काम करते देखकर लोग भले ही थक जाॅयं। लेकिन, स्वयं मोदी नहीं। उनमें निहित प्रबल आध्यात्मिक ऊर्जा उन्हें थकने ही नहीं देती। इसीलिये उनकी अगुवाई में भारत एक बार फिर विश्वगुरू बनने की राह पर है। मोदी सरकार के तीन सालों हुई इन खामियों से त्रस्त है आम आदमी

आधुनिक भारत के विवेकानंद है मोदी

विवेकानंद धर्म और अध्यात्म के युगपुरुष रहे हैं। उन्होंनं विश्व में हिंदुत्व की पताका फहराई थी। दुनिया को हिंदू और हिंदुत्व का सही अर्थ बताया था। आज के भारत में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी दूसरे विवेका नंद हैं। यह मानने वालों की सख्या लगातार बढती ही जा रही है। हिंदुत्व को लेकर इनकी भी अवधारणा विवेकानंद जैसी ही है। अति उदार और सबको समेट कर चलने वाली। इसमें लेशमात्र भी दिखावा और सोच की संकीर्णता नहीं। इसीलिये यदि एक नरेंद्र ने विश्व में हिंदू धर्म की पताका फहराई, तो दूसरा नरेंद्र भारत में हिंदुत्व के मूल को सींच रहा है। उसका सही अर्थ भारत सहित समूचे विश्व को समझाने में लगा है। इनके भी हिंदुत्व में लेशमात्र भी कट्टरता नहीं। यह पं0 दीनदयाल उपाध्याय के एकात्मवाद का सच्चा अनुयायी है। ‘सबका विकास-सबका साथ‘ इनके राजनीतिक जीवन दर्शन और चिंतन का ही निचोड है। इस पर छाया कुहासा अब छंट रहा है।

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अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी में बुनियादी फर्क

यह कहना गलत नहीं होगा कि हिंदुत्व को लेकर भाजपा के शीर्षपुरुष अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी में बडा बुनियादी फर्क है। अटल जी की हिंदुत्वपरक सोच सत्तापरक राजनीति से प्रेरित कही जा सकती है। मोदी के साथ ऐसा नहीं है। इनका हिंदुत्व राजनीति नहीं, प्रखर राष्ट्रीयता से प्रेरित है। उसका चरम और परम लक्ष्य भारत के सुदूरगामी व्यापक हितों से सीधे जुडा हुआ है। सन्यानियों जैसे ऐसे व्यक्तित्व के पीछे तो सत्ता खुद ही दौड लगाती है।

योगी में आ गया है राजनीतिक निखार

मोदी के पिछले पन्नों का पलट डालिये। यह बात अपने आप साफ हो जायेगीै। इसीलिये यह मोदी और सिर्फ मोदी का ही असर है कि योगी की कट्टरपंथी सोच में बडा क्रांतिकारी बदलाव आ गया है। वह अब पहले जैसे नहीं रह गये हैं। उनमें बडा सकारात्मक राजनीतिक निखार आ गया है। इसीलिये अपनी विवादित युवा हिंदू वाहिनी की वह दिशा और दशा बदलने के लिये आकुल दिखाई पड रहे हैं। वह चाहते हैं कि उनकी इस वाहिनी की युवा ऊर्जा अब समाज के आखिरी छोर के लिये खडे आदमी की सेवा में लगे। इसीलिये मोदी सरकार के इन तीन सालों में योगी को ही उत्तर प्रदेश का मुख्य मंत्री बनाना सूबे के लोगों के लिये वरदान जैसा कहा जा सकता है। प्रदेश के आम आदमी के लिये मोदी सरकार की सबसे बडी उपलब्धि है। दोनों की योगी हैं। आध्यात्मिक ऊर्जा से लबालब। अंतर सिर्फ इतना ही है कि मोदी भगवा नहीं धारण किया है। इसके बावजूद मोदी तो मोदी ही है। उनकी ऊंचाई को योगी यदि छू सकें, तो यह खुद उनकी बेमिसाल उपलब्धि होगी।

मोदी सरकार की ये तीन खामियां साल रही हैं आम आदमी को

निस्संदेह, मोदी सरकार के इन तीन सालों की तमाम उपलब्धियां गिनाई जा सकती हैं। भारत का समूचा मीडिया इनका ही तुमुल शंखनाद कर रहा है। लेकिन, यहां हम इस परंपरागत लीक से हटकर इन तीन सालों में इस सरकार की उन तीन खामियों का बेहिचक उल्लेख करना चाहेंगे, जिससे सूबे के आम आदमी त्रस्त है। इन तीनों खामियों का सूबे के बीस करोड लोगों पर सीधा असर पड रहा है।

मोदी और योगी की सरकार में हैं चर्चित ‘कमाऊ पूत‘

इसीलिये आज प्रदेश का आम आदमी मोदी सरकार के पूर्ण पारदर्शी होने के दावे से सहमत नहीं हैं। यह ठीक है कि इस सरकार में यूपीए सरकार जैसा एक भी घोटाला नहीं हुआ है। लेकिन, ऐसा न हो सकने की असल वजह खुद प्रधान मंत्री मोदी का पारदर्शी जीवन और उससे उपजा खौफ है। ऐसा न होता, तो उनकी सरकार में उत्तर प्रदेश के ऐसे भी कई धुरंधर खिलाडी मौजूद हैं, जिन्होंने उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार में रहकर बडा नाम कमाया है। यही स्थिति प्रदेश में योगी सरकार की भी है। इसमें भी एक से एक बढकर कमाऊ पूत हैं। इनमें एक ऐसा भी अखाडिया है, जिस पर गोवध के लिये गोतस्करी तक को बढावा देने का गंभीर आरोप है। सीबीआई जांच से ही इसका खुलासा हो सकता है।

पेट्रोलियम मंत्रालय की शुचिता पर जलता सवाल?

बहरहाल, मोदी सरकार की पारदर्शिता पर केंद्र के पेट्ालियम मंत्रालय के ही कारण सवालिया निशान लग रहा है। मसलन, हाल ही में लखनऊ सहित प्रदेश के अनेक जिलों के पेट्रोल पंपों पर डाले गये छापों से इसकी पुष्टि हुई है। इसमें इंडियन आयल कारपोरेशन के भी पेट्ोल पंप रहे हैं। इस मामले में पेट्रोल पम्पों की डिसपेसिंग यूनिट में चिप लगाकर रोजाना करोडों रु के पेट्रोल की चोरी होती रही है। सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नहीं, देश के दूसरे कई राज्यों में भी यह काला धंधा धडल्ले से चल रहा है। पेट्ोलियम विभाग के कर्मचारियों से लेकर आला अधिकारियों तक की मिलीभगत के बिना यह हो ही नहीं सकता है।

मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट का बहुत बुरा हाल

अब इन तीन सालों में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट ‘नमामि गंगे‘ की भी हल्कीफुल्की चर्चा। इस बाबत आपको याद दिला दें कि पिछले लोकसभाई चुनाव के दौरान, भाजपा नेत्री उमाभारती अपनी जनसभाओं में यह दावा ठोंकती फिर रही थी कि केंद्र में मोदी सरकार के आने पर दो वर्षोे के अंदर ही गंगा पूरी तरह निर्मल और अविरल बना दी जायेंगी। संभवतः उनके इसी बडबोलेपन के ही असर में आकर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने इन्हें जलसंसाधन विभाग का मंत्री बना दिया। इतना ही नहीं, उनके इस ड्रीम प्रोजेक्ट के पूरी होने में किसी भी प्रकार की आर्थिक अडचन न आ सके, यह सोचकर उन्होंनं इस मकसद से उसके लिये बीस हजार करोड रु की धनराशि भी स्वीकृत कर दी।

इसके अलावा, उमा भारती के लिये प्रदेश में अब अखिलेश यादव की नहीं, योगी की सरकार है। हाल ही में इन्हीं योगी ने कानपुर की लगभग सात सौ टेनरियों को अन्यत्र स्थानांतरित करने का ऐतिहासिक आदेश जारी कर दिया है। इससे काम बहुत आसान हो गया है। संयोग से केंद्र और उत्तराखंड में भी भाजपा की ही सरकारें हैं। लेकिन, गंगा अब पहले से भी कहीं ज्यादा गंदी और प्रदूषित हो गयी हैं।

उमा भारती के बूते का यह काम नहीं

ऐसे में अपनी नाकामयाबियों पर पर्दा डालने की गरज से अब मंत्री उमा भारती की नयीददलील है कि गंगा को निर्मल और अविरल बनाने के लिये उन्हें अभी कम से कम पांच या छह वर्षो का समय और चाहिये। सच तो यह है कि उमा भारती को यदि बीस हजार करोड रु की जगह एक लाख करोड रु भी दे दिये जांय, तो भी उनमें नमामि गंगे परियोजना को पूरी करने का सामथ्र्य नहीं दिखाई पड रहा हैं। वह ओजपूर्ण राजनीतिक भाषण तो दे सकती है, लेकिन लोकहित में ऐसे किसी महत्वपूर्ण काम को जमीनी अंजाम दे सकना उनके सामथ्र्य का नही कहा जा सकता है।

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आम आदमी को बुलेट ट्रेन की जरूरत नहीं

मोदी सरकार की तीसरी खामी की वजह है उनका रेलमंत्रालय। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी बात बात में अपने जिस आम आदमी के हितों की दुहाई देते हैं, उसे बुलेट ट्रेन की क्या जरूरत है? उसे तो जरूरत है साधारण ट्रेनों की। वह भी सही समय से चलने रेलगाडियों की, जो उन्हें उनके  गंतव्य स्थान तक सकुशल पहुंचा सकें। इस कसौटी पर मोदी सरकार बुरी तरह फेल हुई है। इस तीन सालों में प्रायः हर ट्रेन औसतन चार से पांच घंटे लेट आ रही है। रेलमंत्री की बात तो छोडिये, लगता है कि खूद प्रधान मंत्री को भी अपने आम आदमी के इस दर्द का आज तक एहसास नहीं हो सका है। इसके अलावा, और भी बहुत सी बातें हैं, जिनसे आम आदमी के लिये रेलयात्रा बडी कष्टदायी है। ऐसे में प्रधान मंत्री मोदी को इस बात का ध्यान रखना ही होगा कि जमीन पर अपने पैरों को मजबूती से जमाये बिना ऊंची छलांग नहीं लगायी जा सकती है।

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