याद करो कुर्बानी : सामने थी दुश्‍मनों की फौज और ठंड से राइफल की गोलियां पड़ी ठंडी, फिर ...

याद करो कुर्बानी : सामने थी दुश्‍मनों की फौज और ठंड से राइफल की गोलियां पड़ी ठंडी, फिर …

याद करो कुर्बानी की 21वीं और आखिरी कड़ी में हम आपको नायब सूबेदार बाना सिंह की वीर गाथा बताने जा रहे हैं. नायब सूबेदार बाना सिंह का जन्‍म 6 जनवरी 1948 को जम्‍मू और कश्‍मीर के काद्याल गांव में हुआ था. उनके सैन्‍य जीवन की शुरूआत 6 जवरी 1969 को जम्‍मू एण्‍ड कश्‍मीर लाइट इंफैंट्री से शुरू हुआ था. जून 1987 में 8 जम्‍मू एण्‍ड कश्‍मीर लाइट इंफैंट्री को सियाचिन एरिया में तैनात किया गया था. तैनाती के दौरान पाया गया कि बड़ी तादाद में पाकिस्‍तानी घुसपैठियों ने सियाचिन इलाके में घुसपैठ कर रखी है. इन घुसपैठियों को सियाचिन के इलाके से खदेड़ने के लिए एक स्‍पेशल टास्‍क फोर्स का गठन किया गया. इस टास्‍क फोर्स में शामिल जांबाजों में एक जांबाज नायब सूबेदार बाना सिंह भी शामिल थे. याद करो कुर्बानी : सामने थी दुश्‍मनों की फौज और ठंड से राइफल की गोलियां पड़ी ठंडी, फिर ...

अब तक पाकिस्‍तानी घुसपैठियों ने 6500 मीटर की ऊंचाई पर स्थिति चोटिंयों पर अपनी पैठ बना ली थी. ग्‍लेशियर पर मौजूद वर्फ की ऊंची दीवारे पाकिस्‍तानी घुसपैठियों का रक्षा कवच बनी हुई थी. पाकिस्‍तानी घुसपैठियों की पोस्‍ट के दोनों तरफ करीब 457 मीटर ऊंची बर्फ की दीवारें थीं. ग्‍लेशियर पर मौजूद बर्फ की दीवारों ने पाकिस्‍तानी घुसपैठियों की स्थिति को बेहद मजबूत कर दिया है. तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भारतीय सेना ने पाकिस्‍तानी घुसपैठियों को नेस्‍तनाबूद करने के लिए अपना ऑपरेशन शुरू कर दिया था. पाकिस्‍तानी घुसपैठियों तक पहुंचने के लिए नायब सूबेदार बाना सिंह ने अपने साथ जिस रास्‍ते का चुनाव किया था, वह बेहद कठिन और खतरनाक था.

लंबी जद्दोजहद के बाद बाना सिंह अपने चार साथियों के साथ ग्‍लेशियर तक पहुंचने में भले ही कामयाब हो गए, लेकिन मुश्किलें अभी खत्‍म नहीं हुई थी. एक तरफ पाकिस्‍तानी घुसपैठियों और नायब सूबेदार बाना सिंह के बीच वर्फ की ऊंची दीवार खड़ी थी, वहीं दूसरी तरफ मौसम भी अब दुश्‍मनों की तरह व्‍यवहार करने लगा था. ऑपरेशन के दौरान ग्‍लेशियर पर तामपान शून्‍य से करीब 30 डिग्री सेल्सियस डिग्री से भी कम था. लगातार वर्फबारी हो रही थी. वातावरण में मौजूद इस ठंडक की वजह से अब भारतीय सेना की स्‍पेशल टॉस्‍क फोर्स की राइफलों ने भी ठीक से काम करना बंद कर दिया था. 

तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद, नायब सूबेदार बाना सिंह और उनके साथियों ने हिम्‍मत नहीं हारी. उन्‍होंने वर्फ की दीवार को बीच से हटाने के लिए ग्रेनेड का सहारा लिया. भारतीय सवानों ने लगातार दुश्‍मनों की पोस्‍ट पर ग्रेनेड बरसाना शुरू कर दिया. ग्रेनेड के धमाकों से भारतीय सेना को दो फायदे मिले. पहले फायदे के तहत, दुश्‍मनों की संभलने का तनिक भी मौका नहीं मिला, वहीं धमाकों से बर्फ में हुई हलचल का भारतीय सेना को दूसरा लाभ मिला. वहीं, अपनी जान बचाने के लिए पाकिस्‍तानी घुसपैठियों ने चौकी से निकलकर इधर-उधर भागना शुरू कर दिया. जिन्‍हें नायब सूबेदार बाना सिंह और उनके साथियों ने अपने संगीन से हमला कर दिया. भारतीय सेना के जांबाजों ने एक एक-एक करके कई पाकिस्‍तानी घुसपैठियों को मार गिराया, जबकि कुछ घुसपैठिए जान बचाने के लिए पाकिस्‍तान में दाखिल हो गए. इस तरह, नायब सूबेदार बाना सिंह ने चंद मिनटों में भारतीय चौकी को पाकिस्‍तान के घुसपैठियों से आजाद करा भारतीय तिरंगा फहरा दिया. नायब सूबेदार बाना सिंह की इस अभूतपूर्व बहादुरी के लिए सेना के सर्वोच्‍च सम्‍मान परमवीर चक्र से सम्‍मानित किया गया.

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