इस साल की शुरुआत में सर्वोच्च न्यायालय में दायर की गई ऐसी ही एक जनहित याचिका को खारिज कर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया जस्टिस दीपक मिश्र ने कहा था कि भारतीय गणतंत्र के राष्ट्रपति किसी जनहित याचिका का विषय नहीं हो सकते। सुप्रीम कोर्ट से पहले यह मामला दिल्ली हाईकोर्ट में उठाया था और दिल्ली हाईकोर्ट ने भी इसे खारिज कर दिया था।

राष्ट्रपति अंगरक्षक में सिर्फ जाट, जाट सिख और राजपूत ही क्यों?, हाई कोर्ट में याचिका दायर

अंग्रेजी शासनकाल में कुछ जाति विशेष को तरजीह देकर उनके कामों को तय कर दिया जाता था, ताकि वे उस वर्ग की अपने प्रति ईमानदारी को सुनिश्चित कर सकें। अंग्रेज चले गए, लेकिन उनके द्वारा अपनाई गई प्रथा आज भी राष्ट्रपति की सुरक्षा के लिए गार्ड नियुक्त करते समय अपनाई जा रही है। गार्ड नियुक्त होने के लिए केवल जाट, जट्ट सिख और राजपूत जाति के व्यक्ति ही आवेदन कर सकते हैं। इसे संविधान में दिए गए समानता के अधिकार का उल्लंघन करार देते हुए पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की गई है।इस साल की शुरुआत में सर्वोच्च न्यायालय में दायर की गई ऐसी ही एक जनहित याचिका को खारिज कर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया जस्टिस दीपक मिश्र ने कहा था कि भारतीय गणतंत्र के राष्ट्रपति किसी जनहित याचिका का विषय नहीं हो सकते। सुप्रीम कोर्ट से पहले यह मामला दिल्ली हाईकोर्ट में उठाया था और दिल्ली हाईकोर्ट ने भी इसे खारिज कर दिया था।

याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा है कि आखिर कैसे यह मामला जनहित में आता है और पीआइएल के नियमों के अनुसार कैसे यह याचिका खरी उतरती है। यह याचिका एक स्टूडेंट ने दाखिल की है। उसमें कहा गया है कि हमारे देश के संविधान में प्रावधान है कि प्रत्येक नागरिक को बराबरी का हक दिया जाएगा और जाति, रंग, क्षेत्र आदि के आधार पर किसी से भेदभाव नहीं होगा। इस सबके बावजूद देश के संविधान का सबसे बड़ा पद जो राष्ट्रपति का है, वहां ही गार्ड की नियुक्ति में भेदभाव किया जा रहा है। इस दलील के साथ उन्होंने डायरेक्टर आर्मी भर्ती ऑफिस द्वारा हाल ही में की जा रही नियुक्ति की प्रRिया को रद करने की अपील की है

इस साल की शुरुआत में सर्वोच्च न्यायालय में दायर की गई ऐसी ही एक जनहित याचिका को खारिज कर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया जस्टिस दीपक मिश्र ने कहा था कि भारतीय गणतंत्र के राष्ट्रपति किसी जनहित याचिका का विषय नहीं हो सकते। सुप्रीम कोर्ट से पहले यह मामला दिल्ली हाईकोर्ट में उठाया था और दिल्ली हाईकोर्ट ने भी इसे खारिज कर दिया था।

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