वित्त मंत्रालय में 3 महीने बाद अरुण जेटली की वापसी, सामने हैं ये बड़ी चुनौतियां

केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली एक बार फिर वित्त मंत्रालय की कमान संभाल रहे हैं. तीन महीने से वह किडनी ट्रांसप्लांट के चलते अस्वस्थ थे और उनकी जगह केंद्रीय मंत्री पियूष गोयल उनका कामकाज देख रहे थे. जेटली की वापसी ऐसे समय में हो रही है जब आम चुनावों में ज्यादा समय नहीं बचा है. आम चुनाव 2019 की शुरुआत में कराए जाने हैं.

वित्त मंत्री अरुण जेटली के पास 6 महीने का समय है और इन 6 महीनों के दौरान उनके सामने दर्जनों चुनौतियां खड़ी हैं. इससे पहले कि आम चुनावों का आधिकारिक बिगुल बजा दिया जाए, बतौर वित्त मंत्री अरुण के ऊपर जिम्मेदारी है कि वह केंद्र सरकार के आर्थिक रिकॉर्ड को दुरुस्त करें जिससे वह एक मजबूत अर्थव्यवस्था के दावे के साथ चुनावों में पार्टी को ले जा सके. लिहाजा, अगले 6 महीनों के दौरान इन 4 अहम चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा.

सरकार का घाटा

हाल ही में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि भारत विश्व की 6वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुकी है. लिहाजा, पूरी दुनिया भारत की तरफ देख रही है. पीएम ने कुछ आर्थिक जानकारों के हवाले से कहा कि बीते कुछ वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था उठ खड़ी हुई है और अब तेज रफ्तार से दौड़ने के लिए तैयार है. इन दावों से इतर आर्थिक जानकारों समेत केंद्र सरकार की वित्तीय संस्थाओं ने देश में लगातार बढ़ रहे चालू खाता घाटे को परेशानी की शुरुआत बताया है. इकरा और मूडीज जैसी एजेंसियों ने दावा किया है कि यह घाटा केंद्र सरकार की नई परेशानी है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर के मुकाबले रुपये में जारी गिरावट और लगातार बढ़ रही कच्चे तेल की कीमत इस घाटे को खतरनाक स्तर पर ले जा रहा है. इनका समय से मुकाबला नहीं किया गया तो जाहिर है केंद्र सरकार को  अनुमान से अधिक घाटा देखने को मिलेगा.

खासबात है कि केंद्र सरकार इस चेतावनी को मान चुकी है. रेटिंग एजेंसी के मुताबिक जहां केंद्र सरकार को वित्त वर्ष 2017-18 के दौरान जीडीपी का 1.9 फीसदी का घाटा उठाना पड़ा था वहीं अब अनुमान है कि वित्त वर्ष 2018-19 में यह घाटा बढ़कर 2.5 फीसदी के पास पहुंच जाएगा. लिहाजा, अब अरुण जेटली की सबसे बड़ी चुनौती है कि आम चुनावों से ठीक पहले और मोदी सरकार के अंतिम वित्त वर्ष में चालू खाता घाटा की समस्या को कैसे टाला जाए.

कैसे मजबूत होगा रुपया?

बीते हफ्ते अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बाजार में डॉलर के मुकाबले रुपया 70.32 प्रति डॉलर के स्तर पर चला गया. इसके अलावा बीते कुछ महीनों से रुपया लगातार डॉलर के मुकाबले कमजोर हो रहा है. मुद्रा बाजार के जानकारों का दावा है कि जहां बीते हफ्ते की गिरावट के लिए तुर्की में जारी राजनीतिक उथल-पुथल जिम्मेदार है वहीं बीते कुछ समय से  अमेरिका और चीन के बीच शुरू हुए करेंसी संघर्ष का असर है कि उभरती अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राएं डॉलर के  मुकाबले कमजोर हो रही हैं. जानकारों का दावा है कि वैश्विक स्तर पर संघर्ष के चलते दुनियाभर में लोग अधिक सुरक्षित मुद्रा पर ज्यादा भरोसा कर रहे  हैं और इसका नुकसान भारत को उठाना पड़ रहा है. गौरतलब है कि बीते साल अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बाजार में डॉलर को चुनौती देने के लिए चीन ने अपनी मुद्रा को भी उतार दिया था.

English News

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com