विपक्षी एकता को ध्वस्त करने के लिए छोटे दलों के सहारे महामुकाबले की तैयारी में भाजपा

आगामी लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी एकता को ध्वस्त करने के लिए भाजपा छोटे दलों के सहारे महामुकाबले की तैयारी में जुट गई है। केंद्र में सत्ताधारी भाजपा ने राज्यों में विपक्षी दलों का अलग-अलग गठबंधन होते देख उनसे जमीनी मुकाबला करने के लिए हिंदुत्व-जातिगत समीकरण और विकास का कॉकटेल तैयार करना शुरू कर दिया है। पार्टी ने राज्यों में गैर मान्यता प्राप्त दलों, छोटे समूहों और ट्रेड यूनियनों को साथ लाने की मुहिम शुरू की है, जिनका एक खास क्षेत्र के एक वर्ग में व्यापक असर है। पार्टी की योजना इनके सहारे अपने पक्ष में नया वोट बैंक तैयार कर राज्यों में विपक्षी गठबंधन को धराशाई करने की है। 

पार्टी के एक वरिष्ठ महासचिव के मुताबिक राज्यों में विपक्षी गठबंधन से मुकाबले के लिए बीते करीब चार महीने में करीब दो दर्जन गैर मान्यता प्राप्त दलों के अलावा चार दर्जन छोटे-छोटे समूहों, ट्रेड यूनियनों से संपर्क साधा गया। विभिन्न चुनावों में इन गैर मान्यता प्राप्त दलों को एक करोड़ से अधिक वोट मिले हैं। पार्टी द्वारा कराए गए आकलन के मुताबिक इनका विभिन्न राज्यों की पांच दर्जन सीटों के एक वर्ग विशेष पर व्यापक प्रभाव है। अगर इनके वोट पार्टी के प्रत्याशी को स्थानांतरित हो गए तो वह आश्चर्यजनक नतीजे देगी। बातचीत बेहद सकारात्मक रही है।
 
उक्त महासचिव के मुताबिक छोटे और गैर मान्यता प्राप्त दलों, समूहों को साधने का अतीत में भी भाजपा को व्यापक लाभ हुआ है। त्रिपुरा में इसी फार्मूले से वाम के किला को ध्वस्त करने में बड़ी कामयाबी मिली। उत्तर प्रदेश में अपना दल, सुहेलदेव पार्टी से गठबंधन से पूर्वी उत्तर प्रदेश में व्यापक लाभ मिला तो महाराष्ट्र में शेतकारी संगठन, आरपीआई, बिहार में आरएलएसपी जैसे दलों के साथ ने संबंधित राज्यों केसियासी समीकरण बदल दिए। यही कारण है कि पार्टी नेतृत्व ने इन गैर मान्यता प्राप्त दलों, छोटे समूहों को हर हाल में नवंबर तक साधने की रणनीति तैयार की है। 

इस बार बड़ी है चुनौती 

बीते चुनाव के मुकाबले इस बार भाजपा के सामने चुनौती बड़ी है। बीते चुनाव में विपक्ष में बिखराव के कारण वर्ष 1999 के मुकाबले महज दो फीसदी ज्यादा वोट हासिल करने पर ही पार्टी को सौ सीटों का लाभ हुआ था। इस बार भाजपा के खिलाफ राज्यों में क्षेत्रीय दलों को आपस में और कांग्रेस के साथ मजबूत गठबंधन की जमीन तैयार हो रही है।

मसलन यूपी में सपा-बसपा एक हुए हैं तो कर्नाटक में जदएस और कांग्रेस के बीच समझौता हुआ है। कांग्रेस असम में बदरुद्दीन अजमल की पार्टी तो बसपा के साथ मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों में गठबंधन की जमीन तैयार कर रही है। बीते चुनाव के मुकाबले देखा जाय तो इस विपक्षी गठबंधन का वोट प्रतिशत भाजपा के मुकाबले बहुत ज्यादा है।
 
प्रभाव वाले राज्य भी हैं चुनौती 
अगले लोकसभा में पार्टी को अपने प्रभाव वाले उन राज्यों में बड़ी चुनौती झेलनी होगी, जहां वह लंबे समय से सत्ता में है। बीते लोकसभा चुनाव में पार्टी को हरियाणा, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, दिल्ली, उत्तराखंड, गोवा, हिमाचल प्रदेश की 213 में से 196 सीटें मिली थी। जिन छह राज्यों जम्मू-कश्मीर, असम, बिहार, कर्नाटक, महाराष्ट्र और पंजाब की 149 सीटों में से पार्टी ने 74 सीटें जीती थीं, वहां नए-नए राजनीतिक समीकरण उभर कर सामने आए हैं। वैसे भी बीते लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी शसित जिन दो राज्यों गुजरात और गोवा में विधानसभा चुनाव हुए वहां पार्टी पुराना प्रदर्शन दुहराने से बहुत दूर रही। ऐसे में पार्टी के सामने अपनी पुरानी सीटों को बचाने की बड़ी चुनौती है।  
 

विस्तार की संभावना वाले राज्यों में नहीं हो रहा मनमाफिक 

पिछला लोकसभा चुनाव जीतने के साथ ही पार्टी ने विस्तार की संभावना के लिए समुद्र तटीय राज्यों का चयन किया था। इनमें तमिलनाडु में डीएमके की कमान स्टालिन के हाथों जाने और अलागिरी के उनके साथ खड़े होने से पार्टी की रणनीति गड़बड़ा गई। दूसरी ओर आंध्रप्रदेश में टीडीपी ने पार्टी से किनारा कर लिया। ओडिशा और पश्चिम बंगाल में पार्टी नंबर दो की रेस में तो है, मगर उपचुनावों का प्रदर्शन बताता है कि इन राज्यों में सत्तारूढ़ टीएमसी और बीजेडी की जगह कांग्रेस और वाम दल कमजोर हो रहे हैं। 
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