जम्मू कश्मीर की राजधानी श्रीनगर में वस्तु एवं सेवा कर परिषद (जीएसटी काउंसिल) की बेहद अहम और आखिरी बैठक चल रही है. देश के इतिहास का सबसे टैक्स सुधार करार दिए जाने वाले जीएसटी पर इस बैठक में काउंसिल वस्तुओं और सेवाओं पर टैक्स रेट तय करेगी. इस अंतिम बैठक को श्रीनगर में रखे जाने के लिए पीछे कई अहम राजनीति मायने भी देखें जा रहे हैं. यह भी पढ़े: अभी-अभी: PM मोदी के लिए आई ये बुरी खबर…. जानकर भाजपा समेत सब लोगों के उड़े
दरअसल पिछले कुछ महीनों से पत्थरबाजी और विरोध प्रदर्शनों की आग से झुलस रहे कश्मीर में जीएसटी पर इस अहम बैठक से सरकार की कोशिश धरती के इस स्वर्ग से देश और दुनिया के नेताओं को वाकिफ कराना है. इस बैठक के लिए देश के विभिन्न राज्यों के वित्तमंत्री यहां जुटे हैं और जीएसटी दरों पर अंतिम मुहर लगने के साथ इस राज्य का नाम जुड़ने से वैश्विक स्तर पर यह संदेश भी जाएगा कि कश्मीर की स्थिति वैसी नहीं, जैसा पाकिस्तान प्रचारित करता है.
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इसके साथ ही सरकार की कोशिश यहां हालत के सामान्य होने की राह तकने वालों के साथ एकजुटता का संकेत देने की है. राज्य की सत्ताधारी पीडीपी के नेताओं का कहना है कि कश्मीर की हकीकत को बस सड़कों पर जारी पथराव और हिंसा के आईने में नहीं देखा जा सकता. ऐसे में वित्तमंत्रियों का डल झील और गुलमर्ग दौरा राज्य के खुशगवार पहलू से उन्हें रूबरू कराने की इसी कोशिश की एक कड़ी के रूप में देखा जा रहा है.
इस बीच जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती भी राज्य में जीएसटी लागू करने को पूरी तरह तैयार हैं और इसके लिए नए कानून की तरफ अपने कदम बढ़ा हैं. मुफ्ती ने जीएसटी काउंसिल की बैठक के लिए श्रीनगर में मौजूद केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली से मुलाकात भी की. उन्होंने राज्य में बाढ़ और हिंसा के कारण व्यापार को हुए नुकसान की भरपाई के लिए राशि जारी करने की मांग की.
इसके साथ ही अरुण जेटली से मुलाकात में महबूबा मुफ्ती ने प्रधानमंत्री विकास योजना (पीएमडीपी) के तहत विकास कार्यों के लिए जल्द राशि जारी किए जाने पर चर्चा की. उन्होंने यहां साल 2014 में आई भयानक बाढ़ और फिर पिछले साल से ही जारी हिंसा के कारण व्यापार को हुए नुकसान से अवगत कराया और उन्हें नए सिरे से कर्ज मुहैया कराने की मांग की.
बता दें कि पिछले साल जुलाई महीने में हिज्बुल मुजाहिदीन के कमांडर बुरहान वानी की मुठभेड़ में मौत के बाद से ही घाटी में रुक-रुककर हिंसा का दौर जारी है. इस बीच आजतक के स्टिंग ‘ऑपरेशन हुर्रियत’ से साफ पता चलता है कि अलगाववादी नेता पाकिस्तान के पैसों के बल पर घाटी में पथराव को फाइनैंस कर रहे हैं. हालांकि कश्मीर में आबादी का एक बड़ा हिस्सा अमन का पैरोकार ही मालूम पड़ता है और ऐसे में केंद्र सरकार की यह पहल कुछ उम्मीदें जरूर जगाती हैं.