सपा-बसपा का महागठबंधन: अखिलेश ने छोटे दलों को भी साथ लेकर चलने के दिए संकेत

सपा-बसपा का महागठबंधन: अखिलेश ने छोटे दलों को भी साथ लेकर चलने के दिए संकेत

गोरखपुर और फूलपुर उपचुनावों के नतीजों से उत्साहित विपक्षी दल आने वाले समय में एकता की कोशिशें तेज करेंगे। सपा मुखिया अखिलेश यादव ने इसके संकेत दिए हैं। बसपा अध्यक्ष मायावती के घर जाकर उनसे मुलाकात और छोटे-बड़े सभी दलों को उपचुनावों में जीत के लिए धन्यवाद देना इसकी शुरुआत है।सपा-बसपा का महागठबंधन: अखिलेश ने छोटे दलों को भी साथ लेकर चलने के दिए संकेत

दरअसल, उपचुनावों में सपा प्रत्याशियों को बसपा का समर्थन इस बात की टेस्टिंग थी कि जनता का मिजाज क्या है? लंबे समय तक चली खटास के बाद सपा-बसपा की दोस्ती पर लोगों की मुहर लगेगी या नहीं ? दोनों दलों के नेता, कार्यकर्ता व समर्थकों की केमिस्ट्री मिल पाती है या नहीं। बसपा का वोट सपा को ट्रांसफर होगा या नहीं ? गोरखपुर व फूलपुर में गठबंधन की परीक्षा में इन सवालों का जवाब मिल गया है।

अखिलेश ने भाजपा के चुनावी अनुभव को देखते हुए छोटे दलों को जोड़ने में खास दिलचस्पी दिखाई। इसकी शुरुआत उन्होंने इन दलों की बैठक बुलाकर की थी। बैठक में शामिल रहे सभी दलों ने चुनाव में सपा का समर्थन किया। इससे सपा के पक्ष में माहौल बना। बसपा का समर्थन तो नि:संदेह टर्निंग पॉइंट था ही।

इससे पिछड़ों, दलितों और अल्पसंख्यकों की काफी हद तक एकजुटता हुई। इसी समीकरण को विपक्षी दल भविष्य की उम्मीद के रूप में देख रहे हैं। इसी को धुरी बनाकर गठबंधन का ताना-बाना बुनने की तैयारी है।

क्रेडिट देने में पीछे नहीं रहे अखिलेश

जीत के बाद अखिलेश ने दूसरे दलों को क्रेडिट देने में कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने देश की लड़ाई में बसपा के समर्थन के लिए मायावती का खासतौर से आभार जताया। उन्होंने रालोद अध्यक्ष अजित सिंह, एनसीपी, वामपंथी दलों, निषाद व पीस पार्टी समेत सभी दलों को बार-बार धन्यवाद दिया।

हालांकि इनमें से कुछ दलों का गोरखपुर, फूलपुर में नाममात्र का जनाधार है लेकिन विपक्षी दलों को जोड़ने की रणनीति के तहत अखिलेश ने सभी के प्रति सम्मान का भाव दिखाया। मायावती से मिलने के लिए उनके आवास पर जाना भी उनका बड़ा और साहसिक फैसला रहा।

सीटें तय हो गईं तो बनेगा महागठबंधन

सपा के सूत्रों के मुताबिक महागठबंधन के लिए जल्दबाजी नहीं की जाएगी। अभी कैराना लोकसभा सीट व बिजनौर जिले की नूरपुर विधानसभा सीट पर भी विपक्षी दल गठबंधन करके चुनाव में उतरेंगे। ये दोनों सीट पश्चिमी यूपी में हैं और भाजपा सांसद हुकुम सिंह व विधायक लोकेन्द्र सिंह के निधन से रिक्त हुई हैं। जिस तरह गोरखपुर में निषाद पार्टी व पीस पार्टी को अहमियत दी गई उसी तरह वेस्ट यूपी में रालोद को तवज्जो दी जाएगी।

कांग्रेस को जगह मिलेगी या नहीं तय नहीं

हालांकि भारतीय समाज पार्टी प्रदेश में भाजपा की सहयोगी है और सरकार में भी शामिल है लेकिन गठबंधन के शिल्पकारों की नजरें पूर्वांचल में ओमप्रकाश राजभर पर भी हैं। राजभर प्रदेश सरकार में काबीना मंत्री हैं लेकिन सरकार को असहज करने वाले बयान देते रहे हैं। गठबंधन में तमाम छोटे दलों को जोड़ने की योजना है लेकिन इसकी धुरी सपा और बसपा ही रहेंगे। इन दोनों के बीच सीट बंटवारे पर सहमति बनने के बाद ही गठबंधन को लेकर बातचीत शुरू होगी। महागठबंधन के खांचे में कांग्रेस की भी जगह है लेकिन आने वाला समय बताएगा कि यह अमली जामा पहन पाएगा या नहीं। 
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