भारत ने तेल की कीमतों पर मोलभाव के लिए ‘तेल खरीदारों का क्लब’बनाने की संभावना के बारे में चीन के साथ चर्चा की है. इसके पीछे सोच यह है कि बाजार में उत्पादकों के दबदबे के मुकाबले आयातकों का भी एक मजबूत समूह हो, जो उनसे बेहतर मोल-भाव करने की स्थति में हो तथा अधिक मात्रा में अमेरिकी कच्चे तेल की आपूर्ति हासिल की जा सके. पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने अप्रैल में अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा मंच (आईईएफ) की बैठक में इसका विचार रखा था. इसी के तहत इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन के चेयरमैन संजीव सिंह ने चाइना नेशनल पेट्रोलियम कॉर्प (सीएनपीसी) के चेयरमैन वांग यिलिन से चर्चा के लिए इस महीने बीजिंग का दौरा किया. अमेरिकी क्रूड के ज्यादा आयात पर बल बैठक के दौरान एशिया में अधिक अमेरिकी क्रूड की आपूर्ति के लिए संरचना पर चर्चा हुई ताकि करीब 60 प्रतिशत कच्चा तेल की आपूर्ति करने वाले ओपेक देशों का दबदबा कम किया जा सके. सूत्र ने कहा कि आईईएफ की बैठक में तेल उत्पाद देशों के गुट के खिलाफ बेहतर मोल-भाव करने की स्थिति में पहुंचने के लिए भारत-चीन हाथ मिलाने पर सहमत हुए थे. सिंह की यह यात्रा इसी तालमेल को ठोस प्रस्तावों के साथ आगे बढ़ाने के लिए थी. उन्होंने कहा कि तेल के संयुक्त आयात तथा एशियाई प्रीमियम को कम करने के लिए साझे मोलभाव की संभावनाओं पर चर्चा की गई. जापान और दक्षिण कोरिया को भी इसी तरह की पेशकश की जाएगी. चीनी कंपनियों से कच्चा तेल लेने में दिलचस्पी सीएनपीसी और उसकी सहयोगी कंपनियां तीसरे देशों में अपने तेल क्षेत्र से उत्पादित कच्चा तेल विदेशी बाजारों में बेचती है. भारत ने चीनी कंपनियों से सीधे कच्चा तेल खरीदने में भी दिलचस्पी जाहिर की. गौरतलब है कि दोनों देश मिलकर दुनिया के तेल खपत में करीब 17 फीसदी हिस्सेदारी रखते हैं. इसके पहले साल 2005 में तत्कालीन पेट्रोलियम मंत्री मणिशंकर अय्यर ने यह प्रस्ताव दिया था कि भारत-चीन को एक साझा मोर्चा बनाकर मोलभाव करना चाहिए ताकि वाजिब कीमत पर कच्चा तेल मिल सके. इसमें यह भी प्रस्ताव था कि साल 2006 में इसके लिए दोनों देशों के बीच एमओयू होगा, लेकिन द्विपक्षीय बातचीत की तमाम जटिलताओं की वजह से ऐसा संभव नहीं हो पाया. लेकिन अब जब वैश्विक मार्केट में तेल की आपूर्ति जरूरत से ज्यादा हो गई है और बिक्री का केंद्र एशिया हो गया है, ऐसे में इस तरह की संभावना पर बातचीत फिर से जोर पकड़ने लगी है. इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी को ऐसा लगता है कि अगले पांच साल दुनिया की वैश्विक तेल मांग का करीब 50 फीसदी हिस्सा भारत-चीन में जाएगा.

सस्ता तेल हासिल करने के लिए भारत-चीन मिलाएंगे हाथ, शुरू हुई चर्चा

भारत ने तेल की कीमतों पर मोलभाव के लिए ‘तेल खरीदारों का क्लब’बनाने की संभावना के बारे में चीन के साथ चर्चा की है.भारत ने तेल की कीमतों पर मोलभाव के लिए ‘तेल खरीदारों का क्लब’बनाने की संभावना के बारे में चीन के साथ चर्चा की है.  इसके पीछे सोच यह है कि बाजार में उत्पादकों के दबदबे के मुकाबले आयातकों का भी एक मजबूत समूह हो, जो उनसे बेहतर मोल-भाव करने की स्थति में हो तथा अधिक मात्रा में अमेरिकी कच्चे तेल की आपूर्ति हासिल की जा सके.  पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने अप्रैल में अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा मंच (आईईएफ) की बैठक में इसका विचार रखा था. इसी के तहत इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन के चेयरमैन संजीव सिंह ने चाइना नेशनल पेट्रोलियम कॉर्प (सीएनपीसी) के चेयरमैन वांग यिलिन से चर्चा के लिए इस महीने बीजिंग का दौरा किया.  अमेरिकी क्रूड के ज्यादा आयात पर बल  बैठक के दौरान एशिया में अधिक अमेरिकी क्रूड की आपूर्ति के लिए संरचना पर चर्चा हुई ताकि करीब 60 प्रतिशत कच्चा तेल की आपूर्ति करने वाले ओपेक देशों का दबदबा कम किया जा सके.  सूत्र ने कहा कि आईईएफ की बैठक में तेल उत्पाद देशों के गुट के खिलाफ बेहतर मोल-भाव करने की स्थिति में पहुंचने के लिए भारत-चीन हाथ मिलाने पर सहमत हुए थे. सिंह की यह यात्रा इसी तालमेल को ठोस प्रस्तावों के साथ आगे बढ़ाने के लिए थी.  उन्होंने कहा कि तेल के संयुक्त आयात तथा एशियाई प्रीमियम को कम करने के लिए साझे मोलभाव की संभावनाओं पर चर्चा की गई. जापान और दक्षिण कोरिया को भी इसी तरह की पेशकश की जाएगी.  चीनी कंपनियों से कच्चा तेल लेने में दिलचस्पी  सीएनपीसी और उसकी सहयोगी कंपनियां तीसरे देशों में अपने तेल क्षेत्र से उत्पादित कच्चा तेल विदेशी बाजारों में बेचती है. भारत ने चीनी कंपनियों से सीधे कच्चा तेल खरीदने में भी दिलचस्पी जाहिर की.  गौरतलब है कि दोनों देश मिलकर दुनिया के तेल खपत में करीब 17 फीसदी हिस्सेदारी रखते हैं. इसके पहले साल 2005 में तत्कालीन पेट्रोलियम मंत्री मणिशंकर अय्यर ने यह प्रस्ताव दिया था कि भारत-चीन को एक साझा मोर्चा बनाकर मोलभाव करना चाहिए ताकि वाजिब कीमत पर कच्चा तेल मिल सके.  इसमें यह भी प्रस्ताव था कि साल 2006 में इसके लिए दोनों देशों के बीच एमओयू होगा, लेकिन द्विपक्षीय बातचीत की तमाम जटिलताओं की वजह से ऐसा संभव नहीं हो पाया.  लेकिन अब जब वैश्विक मार्केट में तेल की आपूर्ति जरूरत से ज्यादा हो गई है और बिक्री का केंद्र एशिया हो गया है, ऐसे में इस तरह की संभावना पर बातचीत फिर से जोर पकड़ने लगी है. इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी को ऐसा लगता है कि अगले पांच साल दुनिया की वैश्विक तेल मांग का करीब 50 फीसदी हिस्सा भारत-चीन में जाएगा.

इसके पीछे सोच यह है कि बाजार में उत्पादकों के दबदबे के मुकाबले आयातकों का भी एक मजबूत समूह हो, जो उनसे बेहतर मोल-भाव करने की स्थति में हो तथा अधिक मात्रा में अमेरिकी कच्चे तेल की आपूर्ति हासिल की जा सके.

पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने अप्रैल में अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा मंच (आईईएफ) की बैठक में इसका विचार रखा था. इसी के तहत इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन के चेयरमैन संजीव सिंह ने चाइना नेशनल पेट्रोलियम कॉर्प (सीएनपीसी) के चेयरमैन वांग यिलिन से चर्चा के लिए इस महीने बीजिंग का दौरा किया.

अमेरिकी क्रूड के ज्यादा आयात पर बल

बैठक के दौरान एशिया में अधिक अमेरिकी क्रूड की आपूर्ति के लिए संरचना पर चर्चा हुई ताकि करीब 60 प्रतिशत कच्चा तेल की आपूर्ति करने वाले ओपेक देशों का दबदबा कम किया जा सके.

सूत्र ने कहा कि आईईएफ की बैठक में तेल उत्पाद देशों के गुट के खिलाफ बेहतर मोल-भाव करने की स्थिति में पहुंचने के लिए भारत-चीन हाथ मिलाने पर सहमत हुए थे. सिंह की यह यात्रा इसी तालमेल को ठोस प्रस्तावों के साथ आगे बढ़ाने के लिए थी.

उन्होंने कहा कि तेल के संयुक्त आयात तथा एशियाई प्रीमियम को कम करने के लिए साझे मोलभाव की संभावनाओं पर चर्चा की गई. जापान और दक्षिण कोरिया को भी इसी तरह की पेशकश की जाएगी.

चीनी कंपनियों से कच्चा तेल लेने में दिलचस्पी

सीएनपीसी और उसकी सहयोगी कंपनियां तीसरे देशों में अपने तेल क्षेत्र से उत्पादित कच्चा तेल विदेशी बाजारों में बेचती है. भारत ने चीनी कंपनियों से सीधे कच्चा तेल खरीदने में भी दिलचस्पी जाहिर की.

गौरतलब है कि दोनों देश मिलकर दुनिया के तेल खपत में करीब 17 फीसदी हिस्सेदारी रखते हैं. इसके पहले साल 2005 में तत्कालीन पेट्रोलियम मंत्री मणिशंकर अय्यर ने यह प्रस्ताव दिया था कि भारत-चीन को एक साझा मोर्चा बनाकर मोलभाव करना चाहिए ताकि वाजिब कीमत पर कच्चा तेल मिल सके.

इसमें यह भी प्रस्ताव था कि साल 2006 में इसके लिए दोनों देशों के बीच एमओयू होगा, लेकिन द्विपक्षीय बातचीत की तमाम जटिलताओं की वजह से ऐसा संभव नहीं हो पाया.

लेकिन अब जब वैश्विक मार्केट में तेल की आपूर्ति जरूरत से ज्यादा हो गई है और बिक्री का केंद्र एशिया हो गया है, ऐसे में इस तरह की संभावना पर बातचीत फिर से जोर पकड़ने लगी है. इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी को ऐसा लगता है कि अगले पांच साल दुनिया की वैश्विक तेल मांग का करीब 50 फीसदी हिस्सा भारत-चीन में जाएगा.

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