साढ़े आठ लाख मजदूरों के लिए जमा 28 हजार करोड़ खर्च नहीं कर सकी सरकारें

साढ़े आठ लाख मजदूरों के लिए जमा 28 हजार करोड़ खर्च नहीं कर सकी सरकारें

निर्माण क्षेत्र में काम कर रहे असंगठित क्षेत्र के लाखों मजदूरों को न तो सामाजिक न्याय मिला है और न ही आर्थिक। उनके लिए बने दो मुख्य कानूनों का कोई राज्य सरकार पालन नहीं करना चाहती। सेस एक्ट के जरिए निर्माण मजदूरों के कल्याण के नाम पर 37,400 करोड़ रुपये जमा किए गए, लेकिन इसमें केवल साढ़े नौ हजार करोड़ रुपये ही खर्च किए गए। बाकि 28 हजार करोड़ रुपयों का क्या हुआ? क्यों देश के मजदूर इस राशि से लाभ नहीं पा सके? ये वे सवाल हैं, जिनका जवाब तलाशना होगा।’ साढ़े आठ लाख मजदूरों के लिए जमा 28 हजार करोड़ खर्च नहीं कर सकी सरकारें

 सुप्रीम कोर्ट ने कड़े शब्दों से मजदूरों के हालात को बयां करते हुए एक याचिका पर केंद्र व राज्य सरकारों को महत्वपूर्ण निर्देश जारी किए हैं। जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस दीपक गुप्ता द्वारा दिए गए निर्णय में सरकार को समयबद्ध तरीके से मजदूरों और उनसे काम ले रहे संस्थानों का पंजीकरण और लाभकारी योजनाओं को उन तक पहुंचाने के लिए कहा गया है।

यह याचिका नेशनल कैंपेन कमेटी फॉर सेंट्रल लेजिस्लेशन ऑन कंस्ट्रक्शन लेबर द्वारा दायर की गई थी। कमेटी का कहना था कि सभी सरकारें असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के प्रति घोर उपेक्षापूर्ण रवैया रखती हैं। मजदूरों के लिए बने भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार अधिनियम 1996 और कल्याण सेस अधिनियम 1996 को उचित तरीके से लागू ही नहीं किया जा रहा है।

सेस अधिनियम के तहत सभी तरह के निर्माण करवा रही संस्थान से सरकारों को शुल्क लेने का भी अधिकार है, जिसका उपयोग मजदूरों के कल्याण के लिए बने बोर्ड को फंड उपलब्ध करवाने में होगा। इन अधिनियम के जरिए मजदूरों की सुरक्षा और कल्याण की जिम्मेदारी सरकार की बनती है। इसे लागू नहीं करना उनके सम्मान के साथ जीने के संविधानिक अधिकार का भी उल्लंघन है। 

राज्यों ने ट्रांसफर नहीं किया पूरा पैसा

पंजीकरण तक नहीं करवा पाए मजदूरों का

याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इन अधिनियम को लागू करने के लिए उसने समय पर निर्देश दिए हैं। जिनमें मजदूरों के पंजीकरण, इसके लिए विशेषज्ञ समिति बनाने, नियमावली तैयार करने के लिए कहा गया था। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार द्वारा बताया गया कि देश में 4.5 करोड़ मजदूरों का पंजीकरण हो चुका है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस आंकड़े को विश्वसनीय नहीं मानते हुए केवल ‘गेस्टीमेट’ करार दिया।

पैसा मजदूरों के लिए खर्च करना था, कल्याण बोर्ड के लिए नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अधिनियमों के तहत कल्याण बोर्ड बनाकर यह पैसा मजदूरों के कल्याण में खर्च होना था। बोर्ड को वित्त वर्ष में संग्रह की गई कुल राशि का अधिकतम 5 प्रतिशत बोर्ड पर खर्च करने की छूट थी, बाकी 95 प्रतिशत मजदूरों के कल्याण पर खर्च होना चाहिए। लेकिन सामने यह आया है कि अधिकतर पैसा बोर्ड के कल्याण पर खर्च हुआ। ‘यह त्रासदी नहीं न्याय का उपहास है।’

वॉशिंग मशीन, लैपटॉप खरीद डाले बोर्ड ने

विभिन्न राज्यों द्वारा वसूले गए सेस को लेकर कैग की रिपोर्ट के आधार पर कोर्ट ने कहा कि अधिकतर राज्यों ने पूरा पैसा बोर्ड को ट्रांसफर नहीं किया। कई जगह मजदूरों के लिए वॉशिंग मशीन और लैपटॉप खरीदे गए। यह हतप्रभ करने वाली बात है कि गरीब और अशिक्षित मजदूर इन वॉशिंग मशीन और लैपटॉप का क्या करेंगे? अगर इस तरह के खर्च को मिला दें, तब भी संग्रह हुई राशि का बमुश्किल 10 प्रतिशत पैसा मजदूरों के लिए खर्च हुआ।

 
 
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