सिनेमा का हाथ थाम आगे निकल रही भाषा, ऐसा है दबदबा

हिंदी हिंदुस्तान की राजभाषा है. दुनिया भर में 50 करोड़ से ज्यादा लोग हिंदी बोलते हैं और हिंदी में फिल्में देखते हैं. हिंदी आज दुनिया की पांच सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है. जमाना इंटरनेट का है तो भाषाओं के प्रचार-प्रसार के तमाम माध्यम आ चुके हैं. लेकिन आज भी इसका सबसे अच्छा माध्यम है सिनेमा. तो देखिए इस खास पेशकश में, सिनेमा के साथ दशक दर दशक कैसे बदलती और बढ़ती रही है हिंदी.

भाषा के लिहाज से हिंदी के सामने अपनी चुनौतियां हैं, अपना संघर्ष है. लेकिन उसके साथ जब सिनेमा जुड़ता है, तो सफर अपने आप में सुनहरा हो जाता है. कथा, कहानियों और दिलचस्प किरदारों का ऐसा सिलसिला, जिसमें हिंदी सजती है सुरीले गीतों और सुनहरे संगीत के साथ. हिंदी सिनेमा के साथ वो जुबान बन जाती है, जिसके संवाद से सरहदों की लकीरें दरकती नजर आती है.

सिनेमा की हिंदी को शुद्धता की दरकार नहीं

गौर करेंगे तो समझ आएगा कि सिनेमा की हिंदी को शुद्धता की दरकार नहीं, ना ही ये भाषाई बंदिशों की पैरोकार है. बल्कि ये हिंदी तो मेल-जोल और घुलने-मिलने में यकीन रखती है. कोई हिकारत से इसे “हिंगलिश” कहता फिरे, मगर इसी अंदाज से सिनेमा की ये हिंदी बॉलीवुड से लेकर हॉलीवुड तक झंडा बुलंद कर आती है. दुनिया में परचम ऐसा कि आज हिंदी में हैरी पॉटर भी हैं और स्पाइडरमैन भी.

हिंदी की वजह से ही हॉलीवुड में बढ़ी भारतीय अभिनेत्रियों की पूछ

इनके साथ और भी तमाम किरदार हैं हॉलीवुड के, जो हिंदी में आने को मजबूर हैं. जमीन पर हिंदी का जितना बड़ा बाजार है, हॉलीवुड के आसमान में उतने उतने ही बड़े हमारे सितारे. हिंदी सिनेमा में शोहरत की बदौलत आज का हॉलीवुड दीपिका पादुकोण और प्रियंका चोपड़ा जैसी हमारी नायिकायों के लिए रेड कार्पेट लगाए बैठा है. हिंदी की ही बदौलत हमारे सुपरस्टार्स लोकप्रियता से लेकर बिजनेस और कमाई के पैमाने पर हॉलीवुड सितारों को पीछे छोड़ रहे हैं.

भारतीय भाषाओं के साथ सिनेमाई पुल भी है हिंदी 

दुनिया के पैमाने पर “बाहुबली” तभी हिंदुस्तान की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बनती है, जब वो दक्षिणी भाषाओं के साथ हिंदी में रिलीज होती है. हिंदी में आज की बनी वेब सीरिज पुरी दुनिया के मंच पर मशहूर हो रही है. अपने देशी ठेठ मुहावरों के साथ. इस रूप में हिंदी के साथ सिनेमा का नया बाजार है. यही बाजार हिंदी के लिए चुनौती भी है और जिंदा रहने का औजार भी.

जब तक फिल्में साइलेंट थीं, वो राष्ट्रीय फिल्म कहलाती थी, जिस समय ध्वनि आ गई, उसके बाद मराठी हिंदी, बंगाली तमिल तेलुगू का विभाजन आ गया, लेकिन जैसे ही पार्श्वगायन की विधि आई, मधुर संगीत बनने लगी, तो इसकी कोई जुबान नहीं रह गई. मधुरता की कोई जुबान नहीं होती. सिनेमा के साथ हिंदी की ये सुरीली कहानी आखिर किन-किन मोड़ों से गुजरती है, ये उतना ही दिलचस्प है, जितना बॉलीवुड का सिनेमा और इसके साथ बलखाती हिंदी.

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