सिर्फ 25 रुपए के लिए जान खतरे में डालते हैं यवतमाल के खेतिहर मजदूर

सिर्फ 25 रुपए के लिए जान खतरे में डालते हैं यवतमाल के खेतिहर मजदूर

खेतों में काम करने वाले मजदूर महज 25 रुपए के बदले अपनी जान को खतरे में डाल रहे हैं. यही वो रकम है जो जहरीले प्रभाव वाले कीटनाशकों के 15 लीटर के कनिस्तर का खेतों में छिड़काव करने के लिए मजदूरों को मिलती है. कई जगह तो पाया गया कि मजदूरों ने दो-दो पालियों में लगातार काम कर एक दिन में ही 300 लीटर तक कीटनाशकों का स्प्रे किया.  सिर्फ 25 रुपए के लिए जान खतरे में डालते हैं यवतमाल के खेतिहर मजदूरअभी-अभी: निर्वाचन आयोग ने नामांकन प्रक्रिया में किया ये बड़ा बदलाव…

महाराष्ट्र के यवतमाल जिले में अगस्त से अब तक कीटनाशकों के जहर से 18 किसानों और खेती मजदूरों की मौत हो चुकी है. महाराष्ट्र सरकार इसका दोष चीन के बने पावर स्प्रे को दे रही है. इन्हें बैन भी किया जा चुका है. लेकिन कृषि एक्टिविस्ट्स और किसान संगठनों ने प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर जो फेक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट तैयार की है वो कुछ और ही कहानी बयान कर रही है. इस रिपोर्ट के मुताबिक कम से कम छह मामले ऐसे हैं जहां स्प्रे के लिए चीनी नहीं घरेलू स्प्रे पम्पों का इस्तेमाल किया गया. रिपोर्ट में हालिया मौतों के लिए कीटनाशकों को लेकर सुरक्षा उपायों की महाराष्ट्र सरकार की ओर से अनदेखी और और प्रशासन की नाकामी को जिम्मेदार ठहराया गया है. यवतमाल जिले समेत अकेले विदर्भ क्षेत्र में ही 36 से ज्यादा किसानों और मजदूरों की मौत हो चुकी है.

रिपोर्ट तैयार करने वाली टीम की अगुआई कृषि एक्टिविस्ट कविता कुरुगंती ने की. उनके संगठन का नाम आशा (एलायंस फॉर सस्टेनेबल एंड होलिस्टिक एग्रीकल्चर) है. टीम ने यवतमाल जिले के कलांब और आरनी ब्लॉकों में जाकर कीटनाशकों के प्रभाव से मृत लोगों के घरों में जाकर उनके परिजनों से बात की. आरनी ब्लॉक में विशेषज्ञों ने पाया कि जितने कीटनाशकों के जितने कनिस्तर स्प्रे किए जाते हैं, उसी के हिसाब से भुगतान किया जाता है. जब चीन के पावर स्प्रे किराए पर लेकर कीटनाशकों का छिड़काव किया जाता है तो 25 रुपए प्रति कनिस्तर मिलने वाले भुगतान में से 15 रुपए छिड़काव करने वाले मजदूर और 10 रुपए चीनी पावर स्प्रे के मालिक को जाते हैं.

कविता कुरुगंती ने इंडिया टुडे टीवी को बताया, हमने देखा कि कीटनाशक को स्प्रे करने का मेहनताना अन्य कृषि कार्यों के समान ही है. बहुत से मामलों में कीटनाशकों का स्प्रे करने वाले जब दूसरे के खेतों में छिड़काव करते हैं तो ये भी नहीं जानते कि कितनी मात्रा में छिड़काव करना है और क्या ये उनके लिए सुरक्षित भी है या नहीं.

कविता के मुताबिक जो मजदूर ऐसे कृषि कार्य करते हैं, वो दलित और आदिवासी परिवारों से होते हैं. कुछ मामलों में देखा गया कि युवा मजदूर कई कई दिन लगातार अलग अलग रसायनों का छिड़काव करते रहते हैं. जहरीले असर वाले एक व्यक्ति के मामले में देखा गया कि उसने एक दिन में 500 रुपए कमाने के लिए लगातार दो-दो पालियों में काम किया. 

रोजगार के अवसर कम मिलने की वजह से कृषि मजदूर कीटनाशकों के स्प्रे वाले दो महीनों में अधिक से अधिक मेहनताना जुटा लेने के लिए अपनी जान खतरे में डालकर ये काम करते हैं. रिपोर्ट बताती है कि यवतमाल में कीटनाशक के जहर वाली सभी मौतों के मामले में पैसा और वक्त बचाने के लिए कीटनाशकों के मिश्रणों का इस्तेमाल किया गया. किसानों ने दौरा करने वाले विशेषज्ञों को बताया कि उन्हें कई खतरों का सामना एकसाथ करना पड़ता है. जैसे कपास की फसल को हानिकारक कीटों से बचाने के लिए स्प्रे किया जाता है. वहीं फसल बढ़िया दिखाई दे इसके लिए ग्रोथ प्रमोटर्स (खास रसायनों) का भी इस्तेमाल किया जाता है. फेक्ट फाइंडिंग टीम ने पाया कि एक मौत के मामले में तीन अलग अलग कीटनाशकों के मिश्रण को स्प्रे किया गया था.     

जहरीले प्रभाव वाले मामलों में ऑरगनोफास्फेट, फिनाइलपाइराजोल, सिंथेटिक पाइरेथ्रॉएड, कार्बामेट्स और निओ-निकोटिनॉयड के अकेले या मिश्रण में इस्तेमाल की बात सामने आई. कविता कुरगंती का कहना है कि भारत सरकार को तत्काल उन सभी कीटनाशकों को बैन करना चाहिए जिनके असर से मौतों के मामले की बात सामने आई है. महाराष्ट्र सरकार को इन कीटनाशकों को राज्य में बेचने के सारे लाइसेंसों को तत्काल प्रभाव से निरस्त कर देना चाहिए और भविष्य में ऐसे लाइसेंस जारी करना बंद कर देना चाहिए.

फेक्ट फाइंडिंग टीम ने सरकार से मौतों के मामले में व्यापक सर्वेक्षण कराने की मांग भी की. साथ ही इसके लिए डेटा सिस्टम तैयार कर इस समस्या पर काबू पाने की जरूरत भी जताई. रिपोर्ट में जोर देकर कहा गया है कि मौतों का असली अपराधी वो जहर है जिसे रजिस्टर करने, बनाने और बेचने की अनुमति दी जाती है.

रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि कीटनाशक विक्रेता गलत सलाहें देने के गुनहगार हैं. वहीं कीटनाशक निर्माता, कीटनाशक नियामक, स्वास्थ्य और कृषि विभाग के साथ साथ राज्य और केंद्र सरकार भी जिम्मेदार हैं.

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