सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को संविधान पीठ द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के विरुद्ध याचिकाओं पर 10 जुलाई को प्रस्तावित सुनवाई स्थगित करने की मांग करने वाली केंद्र सरकार की याचिका खारिज कर दी. भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत समलैंगिकता एक अपराध है. केंद्र ने मामले के संबंध में जवाब दाखिल करने के लिए अदालत से समय मांगा, जिसके बाद चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए.एम. खानविलकर और जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ ने मामले को स्थगित करने से इंकार कर दिया.

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 2013 में दिए अपने फैसले में दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा 2 जुलाई, 2009 को दिए फैसले को खारिज कर दिया था. दिल्ली उच्च न्यायालय ने समलैंगिक सैक्स को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के पक्ष में फैसला सुनाया था.

शीर्ष कोर्ट ने कहा कि मामला कुछ समय से लंबित पड़ा हुआ है और केंद्र को अपना जवाब दाखिल करना चाहिए. इसके साथ ही अदालत ने कहा, “हम प्रस्तावित सुनवाई करेंगे. हम इसे स्थगित नहीं करेंगे. आप सुनवाई के दौरान कुछ भी दाखिल कर सकते हैं.” मामले की सुनवाई के लिए सर्वोच्च न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की नई संविधान पीठ गठित की गई है.

जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा अब चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए.एम. खानविलकर और जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ के साथ मामले की सुनवाई करेंगे. ये दोनों जस्टिस ए.के.सीकरी और न्यायमूर्ति अशोक भूषण का स्थान लेंगे.

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में समलैंगिक सैक्स को दोबारा गैर कानूनी बनाए जाने के पक्ष में फैसला दिया था, जिसके बाद कई प्रसिद्ध नागरिकों और एनजीओ नाज फाउंडेशन ने इस फैसले को चुनौती दी थी. इन याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट ने संविधान पीठ के पास भेज दिया था.

शीर्ष न्यायालय ने आठ जनवरी को कहा था कि वह धारा 377 पर दिए फैसले की दोबारा समीक्षा करेगा और कहा था कि यदि ‘समाज के कुछ लोग अपनी इच्छानुसार साथ रहना चाहते हैं, तो उन्हें डर के माहौल में नहीं रहना चाहिए.’